कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय
जो भी आए पास
सब दूर हो गये
तोड़ा हुए बदनाम
तो मशहूर हो गये||
कल तक जो दूसरो से
माँगकर के जिंदा थे
जीता चुनाव आज जो
वो हुजूर हो गये||
हम भी तो कल तक
दफ़न थे चन्द पन्नो मे
बाजार मे बिके जो
सबको मंजूर हो गये||
पहाड़ो से टकराकर के
मैने चलना सीखा था
सीसे के दिल के आंगे
हम चकनाचूर हो गये||
तुमको बड़ा गुमान था
हुस्न की जागीर पर
किसी की आँखो के
हम भी नूर हो गये||