कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय
जहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर
कैसी होगी ज़मीन, वो कैसा होगा शहर
हाथो मे हाथ रहे, तू हरदम साथ रहे
कुछ मै तुझसे कहूँ, कुछ तू मुझसे कहे
मै सब कुछ सहुं, तू कुछ ना सहे
सुबह शुरू तुझसे, ख़त्म हो तुझपे सहर
जहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ...
कुछ तुम चलोगी, तो कुछ मै चलूँगा
कभी तुम थकोगी, तो कभी मै रुकुंगा
मंज़िल है एक ही, क्यो अकेला बढ़ुंगा
चलते रुकते योही, कट जाएगा सफ़र
जहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ...
बात मे बाते हो, रात मे फिर राते हो
गम आए ना कभी, खुशियो की बरसाते हो
नज़रो मे हो चेहरा तेरा, ख्वाबो मे भी मुलाक़ते हो
साथ रहने की कोई कसमे ना हो, ना हो बिछड़ने का डर
जहाँ हम तुम रहे, बना खुशियो का घर ..