मैं अपनी लेखनी की शुरुआत कर रहा हूं। किन्तु आप सभी पाठको से माफी चाहूंगा ।। यदि मुझसे कोई भी लेखनी में त्रुटि मिले तो उसे क्षमा करें।।
मैं अपनी लेखनी की शुरुआत करने से पहले अपना संक्षिप्त परिचय देना चाहता हूं क्युकी पुरा परिचय तो मेरी लेखनी के अंत में मिलेगा ।।
मै एक शिक्षक हूं , और जो भी हूं अपने माता - पिता के आशीर्वाद से हूं । उनका ही संघर्ष मुझे ये कहानी संघर्ष एक जीवन कथा लिखने को प्रेरित किया है।।
अब मैं अपनी कहानी की चर्चा करता हूं । मै यह कथा की शुरुआत वाहा से करूंगा जहां मेरा जन्म या मेरे पिता जी की भी जन्म नहीं हुआ था साथ ही मेरे और भी बहुत से पूर्वजों के या यूं कहें कि बहुत से इस कथा के महत्वपूर्ण नायक का जन्म भी नहीं हुआ था ।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस कथा में मै आपको सिर्फ पारिवारिक रिश्ते की ही कहानी नहीं बताने जा रहा हूं वल्कि एक परिवार में होने वाले छल - कपट , ईर्ष्या, द्वेष एवं राजनीतिक सडयंत्र का भी अनुभव भी होगा।।
कहानी की शुरुआत भारत के गौरव राज्य जहां से कई ओजस्वी वीर क्रांति कारी देशभक्त , संगठन कर्ता , बड़े - बड़े ज्ञानी , जिसने विश्व में शून्य दिया ।। जिसने देश को प्रथम राष्ट्रपति दिया । जिसने देश को एकत्रित होकर अहिंसा का पाठ पढ़ाने , अनुशासन की शिख की शुरुआत का स्थल रहा ।। जी हां हम बात कर रहे हैं #बिहार की और ये कहानी है बिहार की बौद्ध धर्म स्थल जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई ,जी हां ये कहानी धार्मिक स्थल #गया की जहां भगवान बुद्ध को सिर्फ ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई बल्कि यहां एक बड़े कर्मठ व्यक्ति जिन्होंने अपनी पत्नी के प्रेम और एक मात्र देहांत से आहत होकर पहाड़ से दुश्मनी ले लिया और उसे काटकर आम आदमी के हित के लिए रास्ता बना डाला , लाखो मुसीबतों से सामना करते हुए वर्षों तक संघर्ष करते हुए आदरणीय दशरथ मांझी जी ने जी हां ये वही दसरथ मांझी जी है जिनके नाम से बॉलीवुड में एक फिल्म भी बनाई गई है ।। इन्होंने अपनी लगन से तपोवन से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। 22 वर्षों के परिश्रम के बाद, दशरथ जी ने यह सड़क अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 किमी से 15 किलोमीटर कर दिया।
ये कहानी शुरू होती है , मेरे दादा जी के पिता जी के पिता जी आदरणीय स्वर्गीय बाबू तिलक धारी जी से जिनकी शुरुआती दौर आज से तकरीवान लगभग 250 वर्ष पूर्व हुई थी एक बड़े परिवार के एक मात्र बेटे एवं वैसे ये भाई के तौर पे दूसरे नंबर के थे कितुं भाई साथ हुए लेकिन आचनक उस समय एक बहुत ही बड़ा आज के जैसा ही कोरोना जैसी ही भयानक महामारी आ गई थी और एक - एक करके इनके सभी भाइयों की मौत हो जाती हैं , तभी चुकी , इनका जन्म एक बहुत ही बड़ा जमींदार खानदान में हुआ था, और इनका ननिहाल भी एक बड़े जमींदार परिवार में ही था , तो उन्हें एक मात्र अपने वंश को आगे लेकर जाने की जिम्मेदारी सौंपकर इनके पिता ने अपनी पत्नी को मिले तड़के के तौर पर मिले धन सम्पदा को और वाहा इनके ननिहाल की जमींदारी व्यवस्था में ही रहने नाना के एकमात्र बचे हुए नाती और भी संतान नाना के ना होने की वजह से ही इनकी माता के बचे हुए एक मात्र संतान होने के नाते भी इन्हें अपने ननिहाल में ही रहना पड़ा।।
चुकी आपको पहले ही बता चुका हूं मै की इनके पैतृक गांव में भयानक महामारी से इनके खनदान
में एक मात्र बेटे यही बचे इसलिए इन्हे ननिहाल में ही मिले तड़के पर ही मिली जमींदारी व्यवस्था को आगे लेकर जाने एवं परिवार की वंश को आगे लेकर जाने की जिम्मेदारी मिली थी ।।
अब आगे कहानी यहां से अपने एक नए युग की शुरुआत करेगी बाबू तिलकधारी जी साथ जिनका लालन पालन बड़े ही प्यार से उनके ननिहाल में होने लगा और चुकी ये बचपन से हिसाब किताब में माहिर थे इसलिए इन्हे ननिहाल में अपने नाना के संग हिसाब - किताब करने और जमींदारी व्यवस्था को सही तरीके से चलाने की शिक्षा अपने नाना के मार्गदर्शन में लेने लगे ।।
समय बीतता है तभी इनकी शादी आदरणीय स्वर्गीय श्री मती गायत्री देवी जी से होता है जो एक अच्छे घर की बेटी होती हैं।। हालांकि इनका घरवाले पैसे की तंगी से जूझ रहे थे तभी इनके नाना जी ने अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी और यूं कहे कि उनको मदद करने के लिए अच्छी दोस्ती को रिश्ते में बदल लिए , मै आपको ये बता दूं की इनके नाना बहुत ही दयालु थे और बड़े ही सज्जन व्यक्ति , और एक बात मै आपको बताता चलूं की पहले समय के लोग बड़े ही खुद्दार हुआ करते थे तभी इनके नाना जी ने अपनी दोस्ती को दारी में पहले बदले और उसके बाद उन्हें मदद किए ।।
अब ये कहानी एक नया मोड़ लेने जा रहा है, जहां इनके नाना जी का देहांत हो गया है और अब सारी सत्ता के कार्य भार इनके छोटे नाना जी संभालना शुरू करते हैं और इन्हें बतौर मुंशी या यूं कहें कि खाता धारक के पद सौंप दिया जाता है , शादी के कुछ ही वर्ष बाद इन्हे एक बेटे की प्राप्ति हुई जिनका नाम आदरणीय तिलक धारी जी ने डोमन सिंह रखते हैं ।।
अब कहानी के तीसरे भाग की प्रतीक्षा समाप्त होती हैं , तीसरे भाग की शुरुआत होता है आदरणीय स्वर्गीय श्री बाबू बंधु सिंह से जो की अपनी बल बुद्धि के कारण उन्हें जमींदारी व्यवस्था के बहुत ही बड़े रक्षक गौमस्ता के पद पर रखा गया ।।
बाबू बंधु सिंह जी को दो पुत्र होते हैं एक आदरणीय स्वर्गीय श्री चमारी सिंह और दूसरे आदरणीय स्वर्गीय श्री डोमन सिंह जी हुए ।।
दोनों की समय बितने तक पढ़ाई लिखाई, शिक्षा दिया दिया जाता है , आपको मै यहां बताता चलूं की दोनो ही भाई पढ़ाई लिखाई के मामले में बड़े शजग रहे और बड़े वाले जहां बहुत बड़े वैध चिकित्सक बने वही छोटे भाई अपने पिता के काम काज में हाथ बढ़ाने लगे , दोनो की अपनी - अपनी कार्य क्षेत्र देख कर बाबू बंधु सिंह जी ने दोनों समय पे शादी कर दिए ।।
अब आगे की कहानी जानेंगे कहानी के मूल भाग में ...