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सपना ( पार्ट -2 )

1 अगस्त 2024

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मैने पीछे मुड़कर देखा तो लाल रंग की नेट की ड्रेस, खुले बालों में वो बहुत ही सुंदर लग रही थी। मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी। तभी मैने झट से दो हज़ार का नोट अपनी जेब से निकाल के डाल दिया। और कहा कि ये दिखावे या शर्म के मारे नहीं दिया है। बस खुशी से दिया है। तो वो हंसने लगी । और कहा की पहले और लोगों से चंदा इक्ट्ठा कर ले। फिर आकर मुझसे बात करेगी।

जब वो आई तो मैने सबसे पहले यही पूछा कि इतने दिन कहां थी। किसी पार्टी में नज़र नही आई। तो वो हंसते हुए बोली, ओह तो आप मेरा इंतजार कर रहे थे। आप तो कह रहे थे की आपको पार्टीज में आना पसंद नहीं है।

मैने कहा बस यूं ही चला आया था। पर तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया। उसने कहा कि उसके इम्तिहान चल रहे थे। बस कल ही खत्म हुए है। आप नहीं जानते कि इस महीने कॉलेज के इम्तिहान होते है। ओह मैं तो सच में ये भूल ही गया था। फिर बात बात में मैंने उससे उसका फोन नम्बर मांग लिया और अपना दे भी दिया। उस दिन पार्टी से निकलते हुए मेरे मन में सुकून था।

अब तो मैं उससे मैसेज पे बात करने लगा था। पापा की तबियत ठीक ना होने की वजह से वो लोग किसी पार्टी में नहीं जा रहे थे। तो विशाखा से मिलना नहीं हो पा रहा था। कई बार मैने उसे मिलने के लिए बुलाया। पर उसने टाइम नही है, कह कर मना कर दिया । पर मैं भी कहां पीछे हटने वाला था। एक दिन उसके कॉलेज के बाहर उसका इंतजार करने लगा। सोचा था, आज तो लिफ्ट के बहाने से उसको अपनी कार में बिठा ही लूंगा। पर ये क्या वो तो अपनी कार से आई थी।

पर आज का मौका नहीं छोड़ सकता था। सीधे जाकर उसकी कार के आगे खड़ा हो गया। वो एक दम से डर गई। आप यहां क्या कर रहे हैं। मैने कहा कुछ नहीं बस यहां मेरी कार खराब हो गई थी, तुम्हे देखा तो सोचा तुमसे लिफ्ट ले लूं। वो मुस्कुराई और कहा ठीक है बैठ जाओ। कहां छोड़ दू। मैने कहा जहां तुम्हारा मन हो। वो फिर मुस्कुराई और कहने लगी सच में कार खराब हुई थी या।

अब झूठ नहीं बोल पाया। कहा तुमसे मिलना चाहता था। तुम आई नहीं तो बस मैं खुद चला आया। तुम्हे शायद मुझसे मिलना पसंद ना हो। वो बोली सच में फुरसत ही नही थी। कॉलेज, पढ़ाई और संस्था का काम। अगर आपके पास फुरसत है तो रविवार को मैं संस्था के बच्चों के साथ पिकनिक पर जा रही हूं। मैने कहा क्यों नहीं मेरी भी छुट्टी है जरूर चलूंगा।

रविवार को हम पिकनिक मनाने पहुंच गए। उसका हंसता खिलखिलाता चेहरा मेरे सामने था। आज उसने हरे रंग सलवार सूट पहना था। और हमेशा की तरह उसके लंबे खुले रेशमी बाल। जो उसकी खूबसूरती को और भी चार चांद लगा देते थे। बच्चों के साथ खूब मस्ती की हमने। बीच बीच में हम कुछ बातचीत भी कर लेते थे। उसका साथ होना बहुत अच्छा लग रहा था। अब लगने लगा था, मैं उसके बिना रह ही नहीं पाऊंगा। बस अपने दिल की बात उसे बताना चाहता था। फिर कोई सही समय का इंतजार करने लगा। वो अपना ज्यादातर खाली समय संस्था के काम में ही बिताती थी। कभी कभी मुझे भी मिलने के लिए वहीं बुला लेती थी। मैं भी संस्था के काम में हाथ बटा देता था।

देखते देखते एक साल बीत गया। उसका एम.ए भी पूरा हो गया। मैं भी अपनी कंपनी शुरू करने वाला था। मैने कंपनी के रजिस्ट्रेशन का सारा काम पूरा कर लिया था। मम्मी भी अब मुझसे शादी करने के लिए कहने लगी थी। अभी तक तो मैं बस टाल ही रहा था। पर जब एक दिन मम्मी कुछ लड़कियों की तस्वीर लेकर जिद्द करने लगी कि इनमे से एक पसंद करके बता दो तो हम उससे मिलने जाएंगे। तो मैने उन्हे साफ साफ कह दिया कि मुझे तो विशाखा पसंद है। अगर शादी करूंगा तो सिर्फ उससे। वरना तो नहीं करूंगा।

मम्मी विशाखा का नाम सुनते ही खुश हो गई। पहले क्यों नहीं बताया। मैं उसके घरवालों से बात कर लेती। आज ही उनसे बात कर लूंगी। पर मैने उन्हे ये कह कर रोक दिया कि पहले मैं खुद विशाखा से कहूंगा। फिर आप लोग उसके घर जा कर बाकी के रीति रिवाज़ कर लेना। मम्मी तो बहुत खुश हो गई। सब तैयारियों की सूची बनाने लगी। मैं भी अब विशाखा को बताने के लिए बैचैन हो गया। उससे मिलने की योजना बनाई।

आज मैं बहुत खुश था। मैं और विशाखा मिलने वाले थे। मैने उसे एक बगीचे में बुलाया था। फूलों से भरा महकता हुआ बगीचा बिलकुल उसकी तरह। मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था। समय से दस मिनट पहले ही बगीचे में पहुंच गया था। उसके लिए एक गुलाब का गुलदस्ता लिया था। आज मैं उससे अपने दिल की बात कह देने वाला था। उसने ब्लू जींस और हल्का गुलाबी टॉप पहना था। उसका हंसता मुस्कुराता चेहरा, बिल्कुल गुलाब की पंखुड़ी लग रही थी वो। धीमे कदमों से मेरी तरफ बड़ रही थी।

उसके आते ही मैने उसकी तरफ गुलाब का गुलदस्ता बड़ाया। वो मुस्कुराते हुए पूछने लगी, ये किस खुशी में। मैने कहा अब जीवन में तुम्हारा साथ चाहता हूं, हमेशा के लिए। अब तुमसे और दूर नहीं रह पाऊंगा। शादी करोगी मुझसे। वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी। अचानक से ये सब क्या है। मैने कहा अचानक नहीं जबसे तुम्हे पहली बार देखा था। बस तभी से अपना मान लिया था। मैने अब अपनी कंपनी भी शुरू कर ली है। तुम्हे किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा। बस तुम हां कर दो। 

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रचनाएँ
लघु कथाएं
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ये किताब कुछ प्रेम कहानियों का संग्रह है। जिसमे प्रेम के अलग-अलग रूप को दर्शाया गया है।
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सपना ( पार्ट - 3 )

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