आज फिर मेरी एक नई कविता अख़बार मे छपी थी। सुबह से ही बधाई के फोन आ रहे थे। इसलिए नहीं कि कविता छपी है, पर इसलिए क्युकी आज मेरा जन्मदिन है। विकास का फोन आया, मेरा छोटा भाई। बधाई दी और ये भी कहा कि आज वो
और उसकी पत्नी मुझसे मिलने नही आ सकेंगे। फिर ऐसे ही दो फोन मेरी छोटी बहनों के आए।
मैं जाकर बालकनी में बैठ गई। अपनी पुरानी यादों में खो गई। अभी कॉलेज पास ही किया था कि एक कार हादसे में पापा की मौत हो गई। मां इतनी पड़ी लिखी नही थी कि घर का खर्च उठा सकती। तो मैने ही घर की जिम्मेदारी अपने कंधो पर ले ली।
मां, एक छोटा भाई और दो छोटी बहनों की जिम्मेदारी। एक कंपनी में नौकरी करने लगी। साथ में प्राइवेट में पढ़ाई भी करती रही।
निखिल और मैं कॉलेज में साथ में पड़ते थे। और एक दूसरे को पसंद भी करते थे। शादी करना चाहते थे। पर मैने उसे कहा की थोड़ा इंतजार कर ले। जैसे ही भाई की नौकरी लग जाएगी, हम शादी कर लेंगे।
पांच साल बीत गए। जब भाई की नौकरी लगी तो उसने कहा कि वो एक लड़की से प्यार करता है। अगर अभी उसकी शादी नही करवाई तो लड़की के घरवाले उसकी शादी कहीं और कर देंगे।
हमने उसकी शादी करवा दी। उसके बाद वो कम्पनी के फ्लैट में रहने चला गया। घर के लिए पैसे देने से भी इंकार कर दिया, ये कह कर की अब उसकी जिम्मेदारियां बड़ गई है। अपना घर संभाले या उनका। मैं ठगी सी देखती रह गई।
कुछ दिन बाद निखिल ने भी शादी की जिद्द पकड़ ली। उसके घरवाले अब और इंतजार नही करना चाहते थे। उस पर शादी का जोर देने लगे थे। पर मैं मां और बहनों को अकेला नहीं छोड़ सकती थी।
निखिल ने कहा कि वो अपने घरवालों से अलग हो जाएगा। और कुछ साल मेरा इंतजार कर लेगा। पर मैं नही जानती थी कि ये इंतजार और कितने साल होगा। मैं उसके घरवाले को अपनी वजह से और दुखी नहीं करना चाहती थी। तो मैने खुद ही उसे इस बंधन से मुक्त कर दिया। उसे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर कर दिया। ना चाहते हुए भी उसे मेरी बात माननी ही पड़ी।
धीरे धीरे दोनों बहनों की पढ़ाई और शादी में ऐसे वक्त बीत गया कि मैं कब पैंतीस बरस की हो गई पता ही नहीं चला। पापा के जाने के बाद से ही मां बहुत कमज़ोर हो गई थी। मेरी शादी करवाना चाहती थी। उन्होंने बहुत जोर दिया पर अब मुझे लगता था कि शादी की उमर ही निकल गई है। और अब भी मेरे दिल में निखिल ही बसता था। मैं किसी और से शादी नहीं करना चाहती थी।
एक दिन मां भी मुझे अकेला छोड़ कर चली गई। अब बस इस घर में मैं ही अकेली रहती हूं।
एक साल से लगातार अख़बार के लिए कविताएं लिख रही हूं। शायद यहीं मेरे समय काटने का सहारा बन गया है। अब सोचती हू कि इन सब में मुझे क्या मिला। जिन के लिए मैने अपने सारे सपने खत्म कर दिए, वो ही मुझे छोड़ कर चले गए। और जो मेरा साथ निभाना चाहता था, उसे मैने ही छोड़ दिया था।
"शायद यहीं है मेरी जिंदगी की विडंबना। "