कुछ समय पहले श्रद्धा की बहन सौम्या की शादी शेखर से हुई थी। सौम्या बहुत खुले विचारो वाली लड़की थी. शादी के बाद भी उसका अपने दोस्तों के साथ घूमना फिरना। वो बेपरवाह सा स्वभाव था। वो अक्सर मायके आ जाया करती थी। माँ उसे समझाती कि तुझे घर की ज़िम्मेदारी संभालनी चाहिए। शेखर का ध्यान रखना चाहिए। तो सौम्या गुस्से में कहती है कि शेखर कोई बच्चा है क्या जो मैं उसका ध्यान रखू। घर में कामवाली किसलिए है जब मुझे ही सब करना है तो। शेखर और मैं बहुत अच्छे दोस्त हैं। जब शेखर को कोई समस्या नहीं है तो तुम्हें क्यों होती है। श्रद्धा पूछती दीदी क्या तुम जीजू से प्यार करती हो। तो वो कहती प्यार व्यार कुछ नहीं होता। अपनी जिंदगी के मजे करो बस।
वही शेखर बहुत ही सुलझा समझदार लड़का था। जब उसकी मां सौम्या की कमियां गिनाती है तो वो यही कहता है कि सौम्या मेरी पत्नी है कोई गुलाम नहीं जो उसे बांध कर रख लूं।
शेखर कभी-कभी उसके मायके जाता था। श्रद्धा भी शेखर से चाव से बात करती मज़ाक कर लिया करती थी। शेखर भी उसकी मासूमियत पर मुस्कुरा दिया करता था। शेखर और सौम्या थे तो पति पत्नी पर कहीं शेखर के मन में अभी भी प्यार की तलाश थी जो वो जान गया था कि उसे सौम्या से कभी नहीं मिल पाएगा । पर वो उससे कभी शिकायत नहीं करता।
1 साल बाद सौम्या की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई। धीरे-धीरे शेखर का उसके ससुराल जाना भी बंद हो गया। कभी-कभी सौम्या के पापा से फोन पर बात कर लिया करता था।
ऐसे ही साल बीता और उन्होने श्रद्धा की शादी करवाने की सोची। तो सबसे पहले शेखर का ही ध्यान उनके मन में आया। देखा भाला घर है और इतना अच्छा लड़का। बस इसी बात को सोच कर वो शेखर के घर रिश्ता लेकर पहुंच गए। तो शेखर ने कहा कि उसने कभी दूसरी शादी करने के बारे में नहीं सोचा। पर उसकी माँ के कहने पर उसने कहा कि पहले वो श्रद्धा से बात करना चाहता है।
तब श्रद्धा ने उसे बताया कि वो अपने कॉलेज के एक लड़के पराग को पसंद करती है। दोनों शादी करना चाहते हैं पर पापा नहीं मानेंगे इस डर से कह नहीं पाई। तो शेखर ने कहा कि वो उसके पापा को मना लेगा। उसने बताया कि कुछ दिन से उनकी बात नहीं हो पाई है। वो अपने परिवार के किसी काम में उलझा हुआ है। शेखर पराग का पता लेकर उससे मिलने चला गया। वहां पता चला कि उसकी किसी और से मंगनी हो गई है। उसके परिवार में आर्थिक तंगी के चलते उसे यह शादी करनी पड़ रही है। पर वो श्रद्धा से ये बात कह नई पा रहा था। जब शेखर ने श्रद्धा को ये बात बताई तो वो टूट सी गई। पराग उसे पैसों के चलते छोड़ देगा उसने ऐसा सोचा भी नहीं था। उसके पापा अलग से उस पर गुस्सा होने लगें। अब वो जल्दी ही श्रद्धा की शादी करवा देना चाहते थे। तब शेखर को लगा कि कहीं जल्दबाजी में पापा उसका हाथ किसी ग़लत इंसान के हाथ में न सोंप दे। तो उसने कहा पापा अगर श्रद्धा को ऐतराज़ ना हो तो मैं उसके साथ शादी के लिए तैयार हूं। श्रद्धा ने भी सर हिला कर हामी भर दी।
एक हफ्ते में दोनों की कोर्ट मैरिज हो गई। लाल रंग की साड़ी पहने श्रद्धा ससुराल आ गई। जो कभी पहले उसकी बहन का ससुराल था।
रात को श्रद्धा जब शेखर के कमरे में गई तो उसे असहज देखकर शेखर ने कहा कि अगर वो सहज नहीं है तो वो किसी दूसरे कमरे में शिफ्ट हो जाएगा। पर श्रद्धा ने कहा कि आपको अपना कमरा छोड़ने की ज़रूरत नहीं है। और वो दोनों पलंग का एक एक कौना पकड़ कर सो गए।
अगले दिन जब शेखर सुबह ऑफिस जाने लगा तो श्रद्धा ने उसके लिए नाश्ता बनाया। शेखर ने नाराज़ होते हुए कहा कि तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। कामवाली किसलिए है। तो श्रद्धा ने उसकी बात काटते हुए कहा कि अपने घर का काम करने में कैसी परेशानी। श्रद्धा रोज शेखर के उठने से पहले उठ जया करती थी उसकी चाय नाश्ता कपड़ो हर छोटी बड़ी चीज, पसंद नापसंद का पूरा ध्यान दिल से रखती थी। शेखर की माँ अब निश्चिंत और खुश थी। शेखर को भी ये सब बहुत अच्छा लगा। वो श्रद्धा से प्यार करने लगा था और हर दिन के साथ ये प्यार बढ़ता जा रहा था।
शेखर की छोटी बहन प्रिया जो श्रद्धा की उमर की थी। उसकी श्रद्धा से खूब बनती थी। वो अक्सर श्रद्धा को उसकी बहन सौम्या के बारे में बताती थी कि कैसे वो अक्सर शेखर को इग्नोर कर अपनी सहेलियों के साथ चली जाती थी। श्रद्धा को बुरा लगता था कि दीदी इतने अच्छे इंसान के साथ ऐसा कैसे कर सकती थी।
श्रद्धा शेखर को पसंद तो करती थी उसका सम्मान भी करती थी, पर उसके अतीत के दुख में वो कभी पूरी तरह शेखर को अपना नहीं पा रही थी। उससे प्यार नहीं कर पाई थी। शेखर ने भी उसपर कभी हक जताने की कोशिश नहीं की। श्रद्धा शेखर से ज्यादा बात नहीं करती थी। एक रात शेखर ने पूछा कि पहले तो वो शेखर से काफी बातें करती थी। पर अब वो ज्यादा बात नहीं करती. तो श्रद्धा ने कहा कि पहले उनका रिश्ता अलग था, अचानक से रिश्ता बदल गया तो अब समझ नहीं आता क्या बात करे।
श्रद्धा हर छोटी बड़ी बात के लिए शेखर से अनुमति मांगती थी तो शेखर उसे कहता था कि ये तुम्हारा घर है तुम जो चाहो कर सकती हो। तुम्हें हर चीज़ के लिए मुझसे पूछने की ज़रूरत नहीं है। श्रद्धा को शेखर की ये सब बातें बहुत अच्छी लगती थीं। वो श्रद्धा को पूरी आज़ादी देता था।
उनकी शादी को 3 महीने बीत गए। एक दिन शेखर ने उसे कमरे में आता देख उसका हाथ पकड़ कर उसको बाहों में भर लेना चाहा। जैसे ही उसने चूमने के लिए अपने को उसकी तरफ बढ़ाया तो श्रद्धा ने अपना मुंह एक तरफ करते हुए कहा कि वो अभी असहज है। फिर भी अगर आप चाहते हैं तो मेरे पति होने के नाते आपका मुझपर पूरा अधिकार है। मैं आपको मना नहीं करूंगी। तो शेखर मुस्कुरा कर पीछे हट गया और कहने लगा कि तुम एक अच्छी लड़की हो मैं ये जानता था। पर शादी के अगले ही दिन जब तुमने मेरे लिए खाना बनाया और मेरा ध्यान रखा। मुझे उसी समय तुमसे प्यार हो गया और अब हर दिन ये बड़ता जा रहा है। तुम मेरी दूसरी बीवी जरूर हो। पर मेरा पहला प्यार हो। जो मैंने कभी किसी और लड़की के लिए महसूस नहीं किया। मुझे पति होने के नाते तुम पर अधिकार नहीं चाहिए। तुम जिस दिन मुझे प्यार से अपनाओगी मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा। तो श्रद्धा ने कहा कि अगर ये इंतज़ार कभी ख़त्म ही नहीं हुआ तो। शेखर फिर मुस्कुरा दिया कि कोई बात नहीं, जो तुम मुझे अभी दे रही हो तुमसे प्यार करने के लिए वो ही काफी है।
शेखर भी श्रद्धा का बहुत ध्यान रखता था। वो कभी-कभी घूमने भी जाते थे। श्रद्धा भी थोडा शेखर के साथ खुलने लगी थी। वो उससे थोड़ी बात भी करने लगी थी। ऐसे ही समय बीत रहा था। श्रद्धा को भी अहसास होने लगा कि वो भी शेखर से प्यार करने लगी है। पर वो कहने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी।
आज श्रद्धा ने शेखर के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। उसने नारंगी रंग की बनारसी साड़ी पहनी थी। श्रद्धा बहुत सुंदर थी उसका गोरा रंग, काले लम्बे खुले बाल। आज तो वो बला की खूबसूरत लग रही थी। शेखर खुश था पहली बार किसी ने उसके लिए व्रत रखा था। वो भी ऑफिस से जल्दी घर आ गया था।
सब पूजा ख़त्म करके खाना खा के दोनों अपने कमरे में आ गए। शेखर बिस्तर की तरफ जा ही रहा था कि श्रद्धा ने उसका हाथ पकड़ लिया, अपनी उंगली को उसकी उंगली में फंसा लिया, उसके सीने पर अपना सर रखते हुए पूछा कि क्या आप अभी भी मेरा इंतजार कर रहे हैं। शेखर ने हा मे सर हिलाया. तो श्रद्धा ने कहा कि अगर मैं कहूं की ये इंतजार अब खत्म हो गया। तो शेखर ने कहा कि मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत इस दुनिया में कोई और नहीं होगा। और उसने श्रद्धा को अपनी बाहों में भर लिया।
श्रद्धा कहने लगी काश आप मुझे पहले मिले होते, मुझे लगता था पराग के धोखे के बाद में किसी से कभी प्यार नहीं कर पाऊंगी, पर आपने मेरा दिल जीत ही लिया। मेरे दिल पर राज़ करने लगे। और मैं एक चंचल नदिया की तरह आपके प्यार में बहती चली गई। मुझे माफ कर देना मैंने आपको बहुत लंबा इंतजार करवाया। तो शेखर ने कहा, अब और कुछ कहने की जरूरत नहीं है, फिर उसने और कस के श्रद्धा को अपनी बाहों में जकड़ लिया।
अब दोनों के बीच की सब दूरियां मिट गई थी और इंतज़ार की घड़िया ख़त्म हो गई थी।