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अधूरी दास्तान

17 जून 2024

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एक साल पहले मैं फौज़ में भर्ती हुआ था। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद मेरी पोस्टिंग कश्मीर में हो गई थी। घर से इतनी दूर सब बहुत अजीब सा लगता था। मन करता था घर वापिस लौट जाऊं। फिर एक दिन सब अच्छा लगने लगा । जब मैंने उसे पहली बार देखा। हल्के पीले रंग के सूट सलवार में। खुले बाल, हाथ मे किताब। वो कॉलेज जा रही थी।

कॉलेज का पहला दिन। फिर हर रोज़ उसे कॉलेज से आते जाते देखता। उसके आने से पहले से वहां खड़ा हो जाता। उसके जाने तक वहां से हटता नहीं। अब तो दोस्त भी मुझे छेड़ने लगे थे।

कई बार सोचा उससे बात करूं। पर डर से नही कर पाया। एक दिन मेजर साहब के घर हमे किसी काम से भेजा गया। वहां मैने उसे फिर से देखा। वो मेजर साहब की बेटी थी। उसका नाम सुहाना था। अब तो किसी ना किसी बहाने मेजर साहब के घर पहुंच जाया करता था।

उसके हाथ का खाना खाने का मौका भी मिलता और उससे बात करने का भी। वो मुझसे थोड़ा शर्माती थी। शायद कहीं ना कहीं मेरे दिल की बात समझती थी।

मेरे दोस्तों के उकसाने पर मैने उसे सब बताने का फैसला कर लिया। सुबह कॉलेज जाते हुए मैने उसे रोका और कहा की मैं उससे बात करना चाहता हूं। उसने कहा कि अभी उसे कॉलेज के लिए देर हो रही है। कॉलेज से लौटते वक्त वो उसकी बात इत्मीनान से सुनेगी। अभी वो उसे जाने दे। और उसके लौटने का इंतजार करे।

उसके आने का समय हो रहा था। मैं लंबी सांसे भर रहा था। मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। कॉलेज से कुछ दूर उसके आने का इंतजार कर रहा था। वो दूर से अपनी सहेलियों के साथ आती दिख रही थी।

उसने भी मुझे देख लिया था। अपनी सहेलियों को अलविदा कह वो धीमे कदमों से मेरी तरफ बड़ रही थी। उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी। जैसे वो जानती हो की मैं क्या कहना चाहता हूं। और उसे भी ये सुनने का कबसे इंतज़ार था।

जैसे जैसे वो मेरे नज़दीक आ रही थी। मेरे दिल की धड़कन और तेज़ होती जा रहीं थीं। तभी एक धमाका हुआ और सब बदल गया। कॉलेज के पास बॉम्ब ब्लास्ट हुआ था। और उस धमाके में सुहाना की भी जान चली गई थी।

उस काले धुएं में मैं उसे पागलों की तरह ढूंढ रहा था। परन्तु उसकी लाश तक ना मिली। बस एक लॉकेट मिला जो वो हमेशा अपने गले में पहनती थी।

और इस धमाके के साथ ही मेरे प्यार की दास्तान भी अधूरी रह गई!!!

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रचनाएँ
लघु कथाएं
5.0
ये किताब कुछ प्रेम कहानियों का संग्रह है। जिसमे प्रेम के अलग-अलग रूप को दर्शाया गया है।
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मैं बारह साल की थी। जब पहली बार अपने परिवार के साथ वृंदावन गई थी। कृष्ण की महिमा और उनकी लीला को देखकर इतना प्यार में भर गया कि मैंने तय कर लिया कि मैं भी  कृष्ण की दासी बनूंगी और यहीं वृंदावन में रहक

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