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साप्ताहिक_प्रतियोगिता

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मेरी सारी तमन्नाये टूट जाती है जब माँ मुझसे रूठ जाती है मेरी सारे दर्द नासूर बन चुभते है जब माँ को दर्द होता है मेरी माँ जब भी मुझे पुकारतीहै तब सम्मोहन खीच लेता है 

अब्ज ज्यू बजता है नभ मे अधर धरा का लगता सिन्दूरी खग की उत्पत्ति से नभ मे बहती अचल समीर जिसके उत्तर से अब्धि की धरा लेती मधु हिलोर खग खग की चीत्कार से उत्पन्न राग से गता कण कण अ

शब्दों की लड़ जब लड़ लड़ की आवाज़ के साथ तड तड़ाती   है बड़े तूफ़ान खड़े हो जाते है आपस मे लड़ते लड़ रुपी पटाखे बड़ी आवाज़ से कानो में तड तडातेहै शब्दों की फटन से कान भी फट जाते है पर जब

  मेरे देश का कानून है कमजोर पर फिर भी मुझे भरोसा है सरकारों में नहीं देश चलने का दम फिर भी मुझे भरोसा है दरोगा बन बैठा है आज डकैत फिर भी मुझे भरोसा है सन्यासी जो सबसे बड़ा है चोर

मै समय हूँ हाँ हाँ मै ही समय हूँ यह बात और है की आज कोई भी आज मेरी ही खाट खड़ी कर देता है फिर भी मै ही समय हूँ इतना हंस मत यह जो फटीचर से हालत है मेरी वो कुछ नेता और सरकारी नौकरों

आ तेरे आसू मै पोछु तेरे सारे दर्द को खुशी के शीतल जल से में सींचू तेरा मै बन के हमसाया तेरे परछाई से दुःख सारे मै खींचू तूने मुझे अपनाया है तेरे सरे गम को अपना लूँ आ में तेरे

तुतलों की भाषा आज जाके मेरी समझ आई तभी तो आज मेने ८० रूपये किलो की चटनी कमाकर खायी डीजल और पेट्रोल की कहे ही क्या गाड़ी हमने अपनी तमन्ना के होसले से हुर्र हुर्र कर चलाई चूल्हे की आ

बेटी पापा से बोली शाम को घर आ के मुझे कहीं घुमाने ले चलो ना पापा झुला झुलना है गोद में लेके झुलाओ न पापा थक गयी हूँ कंधे पर बिठा लो न पापा डर लग रहा अँधेरे में सीने से लगाओ न पाप

कलम आज फिर हुयी शांत किसी शब्द के लिखने पर स्याही हुयी फिर आज ख़तम के कुछ शब्दों को हमने मोड़ना चाहा पर कलम हुयी आज फिर शांत के मंजर आज जुबान पर था वो मंजर जो तड़पाता था हमको ह

ओह मेरे भगवान् आज फिर में भूल गया अपने ही घर का रास्ता जो इन्ही में से कोई एक था में भूल गया उस टूटी सी देहरी का रास्ता जिसे माँ मिट्टी से लीप कर सजाकर सुगन्धित अगरबत्ती लगाकर यह कहती

कभी मै जेब को बड़ा परेशान करता था गलियां सी दे कर जेबों में ठूंसा जाता था जिसने चाहा जैसे चाहा लिया तोड़ा मरोड़ा मुह में दवा लिया थूंक लगा अंगूठे पर मुझे चिपचिपा दिया बच्चे तो जैसे मुह म

खुशियों का कारवां ऐसा बढ़ता चला के गमो की काली घटा छंटती चली पड़ी प्रेम की फुहार ऐसी के तन बदन मेरा भीगता गया मौसम की तरह बदलता है जीवन रंगों की तरह बिखरती है हर ख़ुशी और गम की

वो लंकेश भी क्या रावण था जेसको धेनु मां का अभिमान था वो दशानन भी क्या रावण था जिसे अव्धि मां का ज्ञान था वो दैत्येन्द्र भी क्या रावण था जेसको सहोदर से अनुराग था वो दशशीश भी क्या

   शब्दों का वजन तो बोलने के भाव पर आधारित होता है..झूठ में आकर्षण..एवं..सत्य में अटलता होती है.          गलत इंसान आपकी अच्छाई से भी नफरत करते हैं...और...सही इंसान

  यह जरुरी नहीं कि जीवन में हमेशा प्रिय क्षण ही आएं दूसरे लोगों का अनुकूल व्यवहार ही हमें प्राप्त हो। अपमान, शोक, वियोग, हानि, असफलता आदि तमाम स्थितियां आती रहती हैं और जाती भी रहती है। दुनिया का

इन्सान उन चीजों से, कम बीमारहोता है जो वो खाता है...ज्यादा बीमार वो उन चीजों सेहोता है, जो उसे अन्दर ही अन्दरखाती रहती हैं ।कम सोचे पर सही सोचेकुछ भी पाल लेना           

गणित और मापन के बीच घनिष्ट सम्बन्ध है। इसलिये आश्चर्य नहीं कि भारत में अति प्राचीन काल से दोनो का साथ-साथ विकास हुआ। लगभग सभी प्राचीन भारतीय ने अपने दैनिक-ग्रन्थों में मापन, मापन की इकाइयों एवं मापनयन

उजाले में हर असलियतकहां नज़र आती है.....!अंधेरा ही बता सकता हैकि सितारा कौन है.....!!गलतियां और "खामियांढूँढना गलत नहीं है,बस शुरुआत खुद से करनी चाहिए !महत्व इंसान का नही, उसके अच्छे स्वभाव का होता है

"वह जीवन ही क्या जो जीवनदाता के लिए पुकार न करे ।जिस व्यक्ति में थोड़ा-बहुत भी संयम है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह धारणा-ध्यान के मार्ग में जल्दी आगे बढ़ जायेगा।हृदयमें भगवान्‌के प्रति सच्चा प्रेम

 इस दुनिया में सदैव ही दो तरह की विचारधारा के लोग जीते हैं।एक इस दुनिया को निःसार समझकर इससे दूर और दूर ही भागते हैं।दूसरी विचारधारा वाले लोग इस दुनिया से मोहवश ऐसे चिपटे रहते हैं कि कहीं यह छूट

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