नई दिल्ली: जो खिलाड़ी कभी मैदान पर दौड़ता था। वो आज भी दौड रहा है। फर्क सिर्फ इतना है। पहले वो हाथ में हॉकी स्टिक लेकर दौडता था आज वो चाय की केतली लेकर दौड़ता हैं। पहले उसका टारगेट गोल करने का होता था। आज उसका ध्यान चाय बेचकर परिवार पालने पर है। बचपन में हॉकी स्टिक थामी थी चट्टान जैसे मजबूत इरादे लेकर मेजर ध्यान चंद जैसा बनने की ठानी लेकिन देश के सिस्टम के आगे उसके इरादे बालू की तरह बह गए। हम बात कर रहे हैं हरियाणा के अंबाला के सिद्धांत शर्मा की जो नेशनल लेवल पर अंडर-19 खेल चुके हैं। आज वो चाय की छोटी सी दुकान लगाने को मजबूर हैं।
मजबूरी में बेचनी पड़ रही है चाय
सिद्धांत शर्मा नेशनल लेवल पर अंडर-19 खेल चुके हैं लेकिन आगे नहीं बढ़ सके। वजह थी सरकारी मदद ना मिलना। शहर में किसी तरह की कोई सुविधा नहीं थी बाहर जाकर खेलने के पैसे नहीं थे तो खेल बंद करना पड़ा। पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ उन पर था तो खेल छोडकर चाय बेचने लगे।
झलक आया दर्द
सिद्धांत का कहना है कि खेलों के लिए उन्हें अब भी किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती है। अंबाला कैंट के खालसा स्कूल में हॉकी खिलाड़ियों के लिए इकलौता मैदान है, लेकिन इसकी भी हालत खराब है। इस ग्राउंड में प्रैक्टिस करने वाले खिलाड़ियों का कहना है कि इन्हें कभी भी ये मैदान अच्छी हालात में नहीं मिला और ना ही नियमित कोच मिला।
अब भी करते हैं प्रैक्टिस
भले ही सिद्धांत का देश के लिए खेलने का सिद्धांत का सपना टूट गया हो, लेकिन अभी भी वो सुबह-शाम प्रैक्टिस करते हैं और दूसरे बच्चों को भी हॉकी सिखाते हैं वो चाहते हैं कि अंबाला कोई खिलाडी देश के लिए खेले।