इक़बाल की प्रतिनिधि रचनाएँ
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सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा ग़ुर्बत परदेस में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया पड़ोस
तस्कीन तसल्ली न हो जिस से वो राज़ बदल डालो जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है अंजाम का जो हो खतरा आगाज़ शुरुआत बदल डालो पुर-सोज़ दु:खी दिलों को जो
डरते-डरते दमे-सहर सुबह से, तारे कहने लगे क़मर चाँद से । नज़्ज़ारे रहे वही फ़लक पर, हम थक भी गये चमक-चमक कर । काम अपना है सुबह-ओ-शाम चलना, चलन, चलना, मुदाम लगातार चलना । बेताब है इ
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी ज़िन्दगी शमा की सूरत दीपक की भाँति हो ख़ुदाया मेरी दूर दुनिया का मेरे दम से अँधेरा हो जाये हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये हो मेरे दम से यूँ ही मेरे व
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब क्या लुत्फ़ अंजुमन महफ़िल का जब दिल ही बुझ गया हो शोरिश शोर से भागता हूँ दिल ढूँडता है मेरा ऐसा सुकूत शांति जिस पर तक़रीर भी फ़िदा हो मरत
क्यूँ ज़ियांकार बनूँ, सूद फ़रामोश रहूँ फ़िक्र-ए-फ़र्दा कल की चिन्ता न करूँ, महव खोया रहना -ए-ग़म-ए-दोश रहूँ नाले बुलबुल की सुनूँ और हमा-तन-गोश चुपचाप सुनना रहूँ हमनवा साथी मैं
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है । पर नहीं, ताकत-ए-परवाज़ मगर रखती है । क़दसी अलासल है, रफ़ात पे नज़र रखती है । ख़ाक से से उठती है गर्दू पे गुज़र रखती है । इश्क था फ़ितनागर व सरकश व चालाक मेर
आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है वहाँ कुंतर सब बिल्लोरी है, यहाँ एक पुराना मटका है इस दौर में सब मिट जायेंगे, हाँ बाक़ी वो रह जायेगा जो क़ायम अपनी राह पे है, और पक्का अपनी हट का
ख़िर्द के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं रंगों में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल हय
उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो गरमाओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना जो नक
असर करे न करे सुन तो ले मेरी फ़रियाद नहीं है दाद का तालिब ये बंद-ए-आज़ाद ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअत-ए-अफ़लाक करम है या के सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद ठहर सका न हवा-ए-चमन में ख़ेम-ए-गुल यही
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा अगर हँगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा उसे सुब्ह-ए-अज़
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो शोरिश से भागता हूँ दिल ढूँढता है मेरा ऐसा सुकूत जिस पर तक़रीर भी फ़िदा हो मरता हूँ ख़ामुशी पर ये आरज़ू है मेरी
उक़ाबी गिद्ध पक्षी जैसी शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर बिना बालों और परों के निकले सितारे शाम को ख़ूने-फ़लक़ सूर्यास्त-समय की क्षितिज की लालिमा में डूबकर निकले हुए मदफ़ूने-दरिया दर
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं हाय क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं है मेरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं बज
परीशाँ होके मेरी खाक आखिर दिल न बन जाये जो मुश्किल अब हे या रब फिर वही मुश्किल न बन जाये न करदें मुझको मज़बूरे नवा फिरदौस में हूरें मेरा सोज़े दरूं फिर गर्मीए महेफिल न बन जाये कभी छोडी हूई मज़िलभी
है कलेजा फ़िगार घायल होने को दामने-लालाज़ार होने को इश्क़ वो चीज़ है कि जिसमें क़रार चैन चाहिए बेक़रार होने को जुस्तजू-ए-क़फ़स पिंजरे की अभिलाषा है मेरे लिए ख़ूब समझे शिकार होन
अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा भूले-भटके की रहनुमा हूँ मैं दिल ने सुनकर कहा-ये सब सच है पर मुझे भी तो देख क्या हूँ मैं राज़े-हस्ती अस्तित्व के रहस्य को तू समझती है और आँखों से देखता हूँ मैं
बच्चा-ए-शाहीं बाज़(पक्षी)के बच्चे से से कहता था उक़ाबे-साल -ख़ुर्द बूढ़ा उक़ाब ऐ तिरे शहपर पंख पे आसाँ रिफ़अते- चर्ख़े-बरीं आकाश की ऊँचाई है शबाब यौवन अपने लहू की आग मे जल
जहाने-ताज़ा नये संसार की अफ़कारे-ताज़ा ताज़ा चिंतन से है नमूद कि संगो-ख़िश्त ईंट-पत्थर से होते नहीं जहाँ पैदा ख़ुदी में डूबने वालों के अज़्मो-हिम्मत हिम्मत और इरादे ने इस आबे-
इक वलवला-ए-ताज़ा नया भाव दिया मैंने दिलों को लाहौर से ता-ख़ाके-बुख़ारा-ओ-समरक़ंद बुख़ारा और समरकंद की भूमि तक लेकिन मुझे पैदा किया उस देस में तूने जिस देस के बन्दे हैं ग़ुलामी पे रज़ाम
ढूँढने वाला सितारों की गुज़रगाहों का अपने अफ़कार फ़िक्र का बहुवचन/चिंताएँ की दुनिया में सफ़र कर न सका अपनी हिकमत दुस्साहस के ख़मो-पेच उलझनों में उलझा ऐसे आज तक फ़ैसला-ए-नफा-ओ-ज़रर लाभ-हानि का नि