उक़ाबी गिद्ध पक्षी जैसी शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर बिना बालों और परों के निकले
सितारे शाम को ख़ूने-फ़लक़ सूर्यास्त-समय की क्षितिज की लालिमा में डूबकर निकले
हुए मदफ़ूने-दरिया दरिया में दफ़्न ज़ेरे-दरिया दरिया की निचली सतह पर तैरने वाले
तमाँचे थपेड़े मौज लहर के खाते थे जो बनकर गुहर मोती निकले
ग़ुबारे-रहगुज़र रास्ते की धूल हैं कीमिया Alchemy,अन्य धतुओं को स्वर्ण में परिवर्तित करने की कला पर नाज़ गर्व था जिनको
जबीनें माथे ख़ाक पर रखते थे जो अक्सीरगर निकले
हमारा नर्म-रौ सुस्त चाल वाला क़ासिद सन्देशवाहक पयामे-ज़िन्दगी जीवन का सन्देश लाया
ख़बर देतीं थीं जिनको बिजलियाँ वोह बेख़बर निकले
जहाँ में अहले-ईमाँ ईमानदार लोग सूरते-ख़ुर्शीद सूर्य की भाँति जीते हैं
इधर डूबे उधर निकले , उधर डूबे इधर निकले