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शातिर : द मर्डरर (अध्याय 1 )

1 अगस्त 2023

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वो मल्होत्रा प्राइवेट लिमिटेड का ऑफिस था जहां पर एक कार आकर रूकी, और उस कार से एक 40 - 45 साल का दिखने वाला आदमी बाहर निकला। वो मोहन मल्होत्रा था, उस कंपनी का मालिक जिसकी उम्र पचास से कम नहीं थी पर, अच्छी देख रेख की वजह से वो अभी मुश्किल से ही 40 का लगता होगा, उसकी पर्सनेलिटी भी एक अलग ही रौब लिए हुए थी । वो सफेद शर्ट के ऊपर काला कोट और काले रंग का ही पैंट पहने हुए था, उसने कार से निकलने के बाद अपनी आंखों से धूप का चश्मा उतार लिया और अब उसकी चमकती हुई आँखें को साफ़ देखा जा सकता था, नीली चमकती हुई आँखें जिनमें दुनिया जहान की चालाकी छिपी हुई थी ।

वो आराम से चलते हुए ऑफिस के अंदर गया, वहां सब पहले से ही मौजूद थे । सब उसे देख कर लाइन से खड़े होते गए, ये देख कर मोहन के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई ,वो चलते हुए सीधा अपने केबिन में चला गया। और उसके पीछे पीछे उसकी सेक्रेटरी रोमा भी चली गई। रोमा,40 साल की एक बला की खूबसूरत औरत थी,वो तलाकशुदा थी , पर इस उम्र में भी उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी ।   व्हाइट कलर की शर्ट के साथ, ब्लैक कलर की घुटनों तक आती पेंसिल स्कर्ट पहन रखी थी। 
वो अपने हाथों में कुछ फाइल्स पकड़े अंदर गई और
अपने पीछे गेट लगाते हुए गई  ताकि कोई और अंदर न आ सके।
अंदर पहुंचते उसने सबसे पहले फाईल्स को टेबल पर एक तरफ़ रखा और फिर जाकर उसने कुर्सी में बैठे मोहन को पीछे से गले लगा लिया।

" क्या कर रही हो रोमा, ऑफिस है ये और राजीव भी यहां आता जाता रहता है,  तो ध्यान रखो ।" मोहन ने उसके हाथों को झटकते हुए कहा, वो इस वक्त कोई फाइल पलट रहा था।

" सीधे सीधे बोलो ना मोहन, मन भर गया है मुझसे तुम्हारा। पहले भी ये ऑफिस ही था और राजीव भी आता जाता था, तब तो तुम्हें कोई प्रोब्लम नहीं होती थी ।" रोमा ने गुस्से से कहा ।

उसे ऐसे गुस्सा होता देख, मोहन ने फाइल बंद की और उसकी तरफ़ मुड़ कर उसने खींच कर उसे अपनी गोद में बिठा लिया।
"रोमा,स्वीट हार्ट नाराज़ क्यों हो रही हो, मैं तो मज़ाक कर रहा था। वैसे मैंने आज शाम पर्ल हार्बर में डिनर का प्लान बनाया था।" मोहन ने उसके बालों को कान के पीछे करते हुए कहा,जो। उसके गाल पर आ गए थे।

" सच!"रोमा ने खुश होते हुए कहा ।

" मैं कभी झूठ नहीं बोलता, ये तुम्हें भी पता है।" मोहन ने कहा ।

" ओ मोहन तुम इतने अच्छे क्यों हो, आई लव यू।" रोमा ने उसकी गोद में बैठे हुए ही उसे गले लगाते हुए कहा, इतना सुनते ही मोहन के चेहरे पर एक टेढ़ी मुस्कान खेल गई उसे अच्छे से पता था कि रोमा को कैसे हैंडल किया जा सकता है ।

"आई लव यू टू, वैसे मुझे कॉफी पीनी थी ।" मोहन ने कहा तो रोमा ने हां में सिर हिला दिया और कॉफी लाने के लिए बाहर चली गई ।
उसके जाते ही मोहन ने अपना सिर झटका " बेवकूफ औरत !" वो हल्के से बड़बड़ाया और फिर फाइल पलटने लगा ।
वो फाइल पलट ही रहा था कि उसका फोन घनघना उठा, स्क्रीन पर श्रद्धा नाम फ्लैश हो रहा था ।

" हां,श्रद्धा !" मोहन ने फ़ोन उठाते हुए बहुत ही नर्मी से कहा ।

"हां, पापा वो वाणी का फ़ोन आया था वो आज वापस आ रही, शाम तक मुंबई पहुंच जाएगी ।" दूसरी तरफ़ से श्रद्धा की आवाज़ आई ।

" हां ठीक है, मैं पहुंच जाऊंगा और बेटे तुम भी आ रही हो ना ?" मोहन ने श्रद्धा से कहा ।

" हां पापा, और साथ में राजीव भी आएंगे आखिर  इतने सालों बाद वाणी इंडिया लौट रही है।"श्रद्धा की आवाज़ आई,वो खुशी से चहक रही थी ।

" और श्रद्धा,वो मृणाल...... मोहन के कहते कहते ही श्रद्धा बोल पड़ी 
" हां, पापा उसे भी बता दूंगी । वैसे वो आएगी या नहीं इसका तो पता नहीं पर बात वाणी की है तो शायद वो आ जाए।" श्रद्धा की आवाज़ में उदासी थी पर उसने तुरंत अपनी उदासी को बाजू रखते हुए कहा ।

" कोई बात नहीं पापा, हम लोग तो आ ही रहे हैं। " 

" हम्म .." मोहन ने कहा ।

" अच्छा पापा रखिए, आपको बहुत काम होगा ना । बाय !" श्रद्धा ने कहा और मोहन ने भी बाय कहते हुए फ़ोन रख दिया और फिर कुर्सी से सिर टिका कर आँखें बंद कर लीं। और मृणाल के बारे में सोचने लगा, कितनी ज़िद्दी लड़की है वो । पहले तो मल्होत्रा मेंशन छोड़ कर चली गई और फिर उसने कंपनी संभालने से भी मना कर दिया और ख़ुद की गेमिंग कंपनी खोल ली । मोहन जानता था कि मृणाल कितनी काबिल लड़की है, उसने कुछ सालों में ही अपनी कंपनी को इंडिया की टॉप गेमिंग कंपनी बना ली थी, अगर वो उसका बिजनेस टेक ओवर करती तो उसे भी टॉप पर आने से कोई नहीं रोक सकता था। पर बात वही थी कि वो कभी भी इसके लिए नहीं मानेगी क्योंकी वो नफ़रत करती है उससे।
उसकी अपनी बेटी, क्यों उसे नहीं पता । मृणाल ने कभी ये बात नहीं कहीं पर कुछ चीज़ों को सुनने के लिए शब्दों की ज़रूरत नहीं होती ।

वो अपनी सोच में इतना ज़्यादा गुम था कि उसे पता ही नहीं चला कि कब रोमा दरवाज़ा खोल कर अंदर आ गई  ।
रोमा ने उसे ऐसे देख कर उसके बालों को सहलाने लगी, जिसकी वज़ह से मोहन मल्होत्रा ने अचानक अपनी आँखें खोल लीं ।

" क्या हुआ, तुम बहुत परेशान लग रहे हो ?" रोमा ने कहा ।

" कुछ नहीं, हां वो आज शाम श्रावणी वापस आ रही है तो, हमें अपना पर्ल हार्बर वाला प्लान कैंसल करना पड़ेगा।" मोहन ने वापस अपनी आंखों को बंद करते हुए कहा ।
श्रावणी का नाम सुनते ही रोमा के चेहरे के भाव अचानक से कठोर हो गए, उसने फिर भी ख़ुद को नियंत्रित करते हुए, जबरदस्ती की मुस्कान के साथ कहा " वाव ये तो बहुत अच्छी बात है,वो इतने सालों बाद वापिस आ रही है । तुम कहो तो मैं भी चलूं तुम्हारे साथ ।"

" नहीं, मैं चला जाऊंगा ।" मोहन ने सपाट लहज़े में कहा,वो अच्छे से जानता था कि रोमा उसकी बेटियों को  पसंद नहीं करती थी , वैसे ये फीलिंग म्यूचुअल थी उसकी बेटियों को भी रोमा कुछ ख़ास पसंद नहीं थी ।

आगे क्या होगा कहानी में जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।

धन्यवाद !


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रचनाएँ
शातिर: द मर्डरर
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रिश्तों के भंवर में उलझी एक कहानी जहां हर रिश्ते की अपनी कहानी है!
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