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एक झलक....

29 जुलाई 2023

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रात का समय था जब उस आधी अधूरी सी बनी हुई बिल्डिंग कुछ खटर पटर की आवाज़ आ रही थी। वो बिल्डिंग कई मंजिल ऊंची थी पर, सही से बनी हुई नहीं थी, उसकी जो सबसे नीचे वाली मंज़िल थी वही कुछ अच्छी हालत में थी, और वही से आवाज़ें भी आ रहीं थीं।

उस कमरे में एक जीरो वाट का बल्ब जल रहा था और उसके ठीक नीचे एक आदमी कुर्सी से बंधा हुआ था, और वो लगातार उन रस्सियों से आज़ाद होने की कोशिश कर रहा था जिसके कारण उसकी कुर्सी हिल रही थी, और वो आवाज़ें हो रहीं थीं ।
उस आदमी की उम्र 50 से 60 के बीच की रही होगी, और उसके  कपड़ों को देख कर साफ़ बताया जा सकता था कि वो काफ़ी अमीर था ।

"कौन हो तुम? और मुझे यहां क्यों बांध रखा है तुमने ?" उस आदमी ने छटपटाते हुए कहा,वो सामने की तरफ़ देख रहा था जहां अंधेरा था पर उसका इतना कहना ही , अंधेरे से एक साया निकल कर उस आदमी के ठीक सामने जाकर खड़ा हो गया था । उस साये ने काली हुडी और काली जींस के साथ काले जूते और हाथों में काले रंग के ही दस्ताने पहन रखे थे । उसने अपने हुडी की कैप से अपना सिर ढका हुआ था जो उसकी आंखों को भी ढके हुए था, और साथ ही उसके चेहरे पर काले रंग क मास्क भी लगा हुआ था,।

"कौन हो तुम ?" आदमी ने फिर से सवाल किया । पर साए ने कोई जवाब नहीं दिया , उसने अपने पीछे टंगे हुए बैग को आगे किया और उसमें से कुछ निकालने लगा । इसी बीच वो आदमी लगातार चिल्लाए जा रहा था " तुम जो कोई भी हो, शायद मुझे जानते नहीं हो । अगर तुमने मुझे मार दिया तो तुम्हारा अंज़ाम बहुत बुरा होगा ।"
साये ने कुछ नहीं कहा और अपने बैग से दो केमिकल की बोतलें निकाल लीं ।

उस आदमी ने उन सबको देखा तो उसके चेहरे पर डर की लकीरें खिंच गई । उसने अटकते हुए कहा"क.. कौन हो तुम और, क्या करने वाले हो ।"

उस साए ने फिर से कुछ नहीं कहा तो मोहन ने अबकी बार तेज़ आवाज़ में चीखते हुए कहा" मैंने पूछा कौन हो तुम ?"

उस साए ने एक गहरी सांस ली, उसने अपना सिर उठाया और अपना मास्क निकाल दिया ।

उस साये के चेहरे को देखते ही उस आदमी की नीली आंखें हैरानी से फैल गई ।
उसके मुंह से आवाज़ निकली "तुम!"

कुछ देर तक उस बिल्डिंग से लगातार  उस आदमी के चीखने की आवाज़ें आती रही और अंत में एक ज़ोरदार चीख आई और उसके बाद सन्नाटा पसर गया, ऐसा सन्नाटा जैसे वहां कुछ हुआ ही ना हो ।

थोड़ी देर बाद वो साया अपना बैग टांगे हुए बाहर आया, उसके हाथ में ख़ून से सना हुआ एक चाकू था  ।

बिल्डिंग के बाहर एक ड्राइविंग लाइसेंस पड़ा हुआ था , चांद की हल्की हल्की रौशनी उस पर पड़ रही थी, वो उसी मरने वाले आदमी का था ,उस पर नाम था" मोहन मल्होत्रा " ।

उस चांदनी रात में भी आसमान में बादल तैर रहे थे और कभी कभी वो बादल चांद को ढंक देते थे जिसके कारण,कुछ देर के लिए चारों तरफ़ अंधेरा हो जाता और वो खूबसुरत सी चांदनी रात अमावस की काली रात की तरह लगने लगती, पर उस साए को उससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था ।इसी के बीच वो साया गुनगुनाते हुए चले जा रहा था । उसने वो खून से सना हुआ चाकू पकड़ रखा था जिसकी नोक नीचे की तरफ़ थी और उससे लगातार खून टपक रहा था, जो कि उस मरे हुए आदमी यानी मोहन मल्होत्रा  का था ।

कौन था मोहन मल्होत्रा और कौन था वो साया जिसने उसे मारा,जानने के लिए पढ़िए 'शातिर: द मर्डरर '।


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शातिर: द मर्डरर
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रिश्तों के भंवर में उलझी एक कहानी जहां हर रिश्ते की अपनी कहानी है!
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