कहने को हम कुछ शब्दों में ही कह देते हैं कि
*'बोतल में शराब है'।*
किन्तु इस एक 'शराब' शब्द में बहुत भयंकर अर्थ छिपा है। जैसे एक छोटे से बम में कहने को थोड़ी सी बारुद अथवा विस्फोटक है, किन्तु उसका विस्फोटक रुप अत्यन्त भयंकर होता है। उसी प्रकार शराब रुपी विस्फोटक का रुप भी विकराल होता है।
संस्कृत साहित्य के एक ग्रन्थ में इस रहस्य को एक रोचक कथा द्वारा समझाया गया है।
आज जो शराब बोतलों में रखी जाती है,पहले यह घड़ों में रखी जाती थी।एक गणिका सिर पर घड़ा (सुरा पात्र) रखे जा रही थी। मार्ग में खड़े जाँचकर्त्ता राजपुरुष (सिपाही) ने गणिका से पूछा-इस घड़े में क्या लिये जा रही हो?
गणिका ने उत्तर दिया-हमारा पेय पदार्थ है।
राजपुरुष ने कहा-सही-सही बताओ कि इसमें क्या है?
गणिका ने कहा-सही-सही पूछना चाहते हो तो सुनो-
*मदः प्रमादः कलहश्च निद्रा, बुद्धिक्षयो धर्मविपर्ययश्च।*
*सुखस्य कन्था दुःखस्य पन्थाः, अष्टावनर्थाः सन्तीह कर्के।।*
अर्थात् इस सुरापात्र में मैं आठ अनर्थ एक साथ लिये जा रही हूँ,वे हैं-
१.मद (नशा),
२. प्रमादः (आलस्य),
३. कलहः (लड़ाई-झगड़ा),
४. निद्रा (नींद),
५. बुद्धिक्षयः (बुद्धि का नाश),
६. धर्मविपर्यय (अधर्म और अनर्थ का मूल),
७. सुखस्य कन्था (सुख का विनाश) और
८. दुःखस्य पन्था (दुःखदायक मार्ग) ।
अर्थात् इन सबकी प्रतीक पेयवस्तु है इसमें और उसका नाम है-'मदिरा' अर्थात् 'शराब' ।यह मदिरा इतने सारे दुःखों-अनर्थों को उत्पन्न करती है।