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शीर्षक -सोच बदलना है !

17 अक्टूबर 2023

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                     शीर्षक -सोच बदलना है!
                      
                        रचनाकार-क्रान्तिराज
                           
                      (  पटना ,बिहार  )

                     भाग -1  में पढा कि रिक्साचालक अनिल को 

एक बच्ची मिली जिसे गोद में उठा कर अपने शीने से लगा 

और भगवान का दिया हुआ शौगात मान कर भगवान को 

शुक्रीया अदा किया !हे  भगवान  मेरा सुखा जीवन की बगीया 

को  हरा भरा कर दिये इसे सर्मीली देखेगी तो फुले नही 

समाएगी  बहुत बहुत धन्यवाद भगवन !
   
              लेकिन  इस बच्ची को किस निर्दय माँ ने सडके 

किनारे ठंड से कपती हुई हाड यानि बदन में लोग अपनी तन 

को ऊनी कपडे से ढँक कर चलता लेकिन कैसी वो माँ थी जो 

इस ठंड में सडक किनारे  छोड कर चली गई उस औरत  को 

ममता अपने बच्ची के न आई ! 

धन्य हो भगवान जो ऐसी  धरती की बोझ नारी को भी जगह 

इस  मृत्युलोक में दिया ,धन्य उसकी परिवरीश की ऐसी नारी 

को पैदा  किया ! अनिल को भरा बुरा जो लगा जो कहा ! पर मै 

कहना या लिखना  उचित समझता हुँ  किसने तुझे हक दी 

बासना रूपी आग में जलने की क्यो किया छोटी सी गलती जो 

तुझे सडक के किनारे सिहरन वाली नन्हीं सी बच्ची को फेकने 

के  लिए मजबुर किया ,क्या तेरी माँ होने की नजरीया सही था 

जो   कुढ समाज की सोच की पैरो तले नन्हे सी बच्ची रौदने 

पडा ,क्या जिसने रिस्ता की बास्ता देकर तुम्हारे संग चंद मिनट 

की हँसी ठिठोली के  कारण चंद मिनट की खुशीयां के चलते 

अपने जिंदगी को बरवाद करना समाज के नजर में गिर सही है!

क्या तुम्हारा दिल कबुल कर रहा था जब  नजायज  बच्ची को 

जन्म दिया ,उसके बाद सडक किनारे फेंक दिया  तो  थुकता हुँ

ऐसी  सोच को जो नई जिंदगी को  बरवाद कर ,उसे मारने पर 

मजबुर  करे ! भगवान  भी प्रार्थना करता हुँ हे संसार के 

रचयता  ऐसी नारी की कोख में  न नन्ही सी जान दे ,जिसे 

समाज के घिनौना  की मर्यादा पार न कर सके !

    
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रचनाएँ
सोच बदलना है .
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शीर्षक-सोच बदलना है ! रचनाकार- क्रान्तिराज ( पटना,बिहार) यह कहानी की पात्र ,घटनाए सभी कालपनिक है किसी व्यक्ति विशेष से मिलता जुलता नही है ,नही नाम वस्तु सात्विक है ! यह कहानी के दूारा समाज में उभरते भेद भावना ,गलत मानसिकता ,गलत नजरीये वाले लोगो को सही समाज की रूप रेखा को बदलने की क्रोशिश करने की कथन है ,जिससे समाज में नई दिशा मिल सके! भाग -1 ---------- एक रिक्साचालक अनिल झुगीं झोपडी में नाले के किनारे रह कर रिक्सा चलाकार अपने परिवार का पालन पोषण करता है ! अनिल की शादी का करीब दस साल हो गया था लेकिन एक भी संतान नहीं था दोनो पति पत्नि उदास रहती ,लेकिन उदास रहने से पेट न चल पायेगी !खुश रहने का बहुत ही क्रोशिश करता लेकिन खुश न रह पाता ! जाडे के मौसम में घने कोहरे लगी हुई ,हल्के ओस की फालसी की फुहारे गिर रही थी ! अनिल के मारा सुवह कोहरे में ही रिस्सा निकाल कर सडक पर चले जा रहा था कि अचानक एक बच्ची के रोने की अवाज सुनाई दी फिर सुनिल आगे बढे जा रहा था जैसे जैसेअनिल निकट जा रहा था कि बच्ची की रोने की अवाजे और गुँज रही थी !जब . पहुँचा तो देखा कि बहुत ही मनमोहक दुध का प्यासा भुख कारण रो रही थी कपडे शीत से उपर वाला कपडा तौली भींगा हुआ हाड कपने वाली ठंड मे सर्द हवाओ की झेको प्राकृति के गोद में घिरे उस छोटी बच्ची को ढक रही थी कि इसे जाडा का ऐहसास न हो ! बेचारा अनिल सोचा कि हमारे भाग्य ऐही बच्ची लिखी हुई थी ऐ मेरी न्यन प्यारी पत्नि उर्मीला की सुनी गोद इसी कारण थी !अनिल उस बच्ची को गोद में लेता है और गले लगा लेता है !अनिल के दिल में मानों खुशी लहरो में उछल पडा हे ईश्वर तेरा लाख लाख दुआ मेरी आंगन में नन्ही सी पडी मेरे सुखे बगीया को तुने हरा भरा कर दिया !

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