शीर्षक -सोच बदलना है!
रचनाकार-क्रान्तिराज
( पटना ,बिहार )
भाग -1 में पढा कि रिक्साचालक अनिल को
एक बच्ची मिली जिसे गोद में उठा कर अपने शीने से लगा
और भगवान का दिया हुआ शौगात मान कर भगवान को
शुक्रीया अदा किया !हे भगवान मेरा सुखा जीवन की बगीया
को हरा भरा कर दिये इसे सर्मीली देखेगी तो फुले नही
समाएगी बहुत बहुत धन्यवाद भगवन !
लेकिन इस बच्ची को किस निर्दय माँ ने सडके
किनारे ठंड से कपती हुई हाड यानि बदन में लोग अपनी तन
को ऊनी कपडे से ढँक कर चलता लेकिन कैसी वो माँ थी जो
इस ठंड में सडक किनारे छोड कर चली गई उस औरत को
ममता अपने बच्ची के न आई !
धन्य हो भगवान जो ऐसी धरती की बोझ नारी को भी जगह
इस मृत्युलोक में दिया ,धन्य उसकी परिवरीश की ऐसी नारी
को पैदा किया ! अनिल को भरा बुरा जो लगा जो कहा ! पर मै
कहना या लिखना उचित समझता हुँ किसने तुझे हक दी
बासना रूपी आग में जलने की क्यो किया छोटी सी गलती जो
तुझे सडक के किनारे सिहरन वाली नन्हीं सी बच्ची को फेकने
के लिए मजबुर किया ,क्या तेरी माँ होने की नजरीया सही था
जो कुढ समाज की सोच की पैरो तले नन्हे सी बच्ची रौदने
पडा ,क्या जिसने रिस्ता की बास्ता देकर तुम्हारे संग चंद मिनट
की हँसी ठिठोली के कारण चंद मिनट की खुशीयां के चलते
अपने जिंदगी को बरवाद करना समाज के नजर में गिर सही है!
क्या तुम्हारा दिल कबुल कर रहा था जब नजायज बच्ची को
जन्म दिया ,उसके बाद सडक किनारे फेंक दिया तो थुकता हुँ
ऐसी सोच को जो नई जिंदगी को बरवाद कर ,उसे मारने पर
मजबुर करे ! भगवान भी प्रार्थना करता हुँ हे संसार के
रचयता ऐसी नारी की कोख में न नन्ही सी जान दे ,जिसे
समाज के घिनौना की मर्यादा पार न कर सके !