भाग-7
शीर्षक- सोच बदलना है !
रचनाकार-क्रान्तिराज
( पटना,बिहार )
शितल की जैसे जैसे उम्र बढ रही है ,ओइसे ओइसे सुंदरता
की चार चाँद लग रही हो,मोहनी रूप सभी को मन को मोह
रही हो ,जगत की सारी गुण लगता है ,शितल में समाहित
हो,मीठे,सुरीली आवाज मानो कोई कोयल बोल रही हो ,अब
पढने के लिए अनिल भेजना चाह रहा है ,लेकिन परिवार को
देखते हुए, शितल की जीवन में आगे बढना जरूरी है ,लेकिन
शितल पढने के लिए कौन स्कुल में भेजे ,सरकारी में भेजते है
तो क्या भविष्य सुरक्षित होगा कि नहीं ,प्राइवेट में पढाने के
लिए मंहगाई के जमाने में पढना मुश्किल है ,कैसे शितल के
विकास के लिए सोचना भी जरूरी है !
शितल की खेल खेल में पढने की शौक देखकर
अनिल सोच में पडा हुआ है ,क्या करे कि शितल की जिंदगी में
खुशी दे सके !
क्या करे या ना करे अनिल के मन में सोच की
आंधी लपेटे हुए है ,कैसे क्या करे मेरी खुशी की किरणे मेरे
जीवन में और शितल की जिंदगी खुशी मिले !
हर पिता अपने बारे में न सोच के अपने बच्चे के बारे सोचता
है ,क्योकि हर पिता हर हाल बच्चे को खुश रखना और खुश
देखना चाहते है ,ताकि बच्चे जीवन में खुशी का बहार हो !
माँ के तो कहना या तौलना असम्भव है क्योकि माँ की ममता
या प्यार की गहराई कोई तौल नही सका ,ना तौल पायेगा !
अब आगे भाग-8 में पढे की अनिल अपनी बच्ची का भविष्य
के बारे क्या फैसला लेता है!
( सधन्यवाद )
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