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सोच बदलना है !

3 नवम्बर 2023

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                           भाग-7

                 शीर्षक- सोच बदलना है !

                     रचनाकार-क्रान्तिराज

                     ( पटना,बिहार )















  शितल की जैसे जैसे उम्र बढ रही है ,ओइसे ओइसे सुंदरता 

की चार चाँद लग रही हो,मोहनी रूप सभी को मन को मोह 

रही हो ,जगत की सारी गुण लगता है ,शितल में समाहित 

हो,मीठे,सुरीली आवाज मानो कोई कोयल बोल रही हो ,अब 

पढने के लिए अनिल भेजना चाह रहा है ,लेकिन परिवार को 

देखते हुए, शितल की जीवन में आगे बढना जरूरी है ,लेकिन 

शितल पढने के लिए कौन स्कुल में भेजे ,सरकारी में भेजते है 

तो क्या भविष्य सुरक्षित होगा कि नहीं ,प्राइवेट में पढाने के 

लिए मंहगाई के जमाने में पढना मुश्किल है ,कैसे शितल के 

विकास के लिए  सोचना भी जरूरी है !

         

      शितल की खेल खेल में पढने की शौक देखकर 

अनिल सोच में पडा हुआ है ,क्या करे कि शितल की जिंदगी में 

खुशी दे सके !

               क्या करे या ना करे अनिल के मन में सोच की 

आंधी  लपेटे हुए है ,कैसे क्या करे मेरी खुशी की किरणे मेरे 


जीवन में और शितल की जिंदगी खुशी मिले !

हर पिता अपने बारे में न सोच के अपने बच्चे के बारे  सोचता 

है ,क्योकि हर पिता हर हाल बच्चे को खुश रखना और खुश 

देखना चाहते है ,ताकि बच्चे जीवन में खुशी का बहार हो !

माँ के तो कहना या तौलना असम्भव है  क्योकि माँ की ममता 

या प्यार की गहराई कोई तौल नही सका ,ना तौल पायेगा !

अब आगे भाग-8  में पढे की अनिल अपनी बच्ची का भविष्य 

के  बारे क्या फैसला लेता है!

                 (       सधन्यवाद   )





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रचनाएँ
सोच बदलना है .
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शीर्षक-सोच बदलना है ! रचनाकार- क्रान्तिराज ( पटना,बिहार) यह कहानी की पात्र ,घटनाए सभी कालपनिक है किसी व्यक्ति विशेष से मिलता जुलता नही है ,नही नाम वस्तु सात्विक है ! यह कहानी के दूारा समाज में उभरते भेद भावना ,गलत मानसिकता ,गलत नजरीये वाले लोगो को सही समाज की रूप रेखा को बदलने की क्रोशिश करने की कथन है ,जिससे समाज में नई दिशा मिल सके! भाग -1 ---------- एक रिक्साचालक अनिल झुगीं झोपडी में नाले के किनारे रह कर रिक्सा चलाकार अपने परिवार का पालन पोषण करता है ! अनिल की शादी का करीब दस साल हो गया था लेकिन एक भी संतान नहीं था दोनो पति पत्नि उदास रहती ,लेकिन उदास रहने से पेट न चल पायेगी !खुश रहने का बहुत ही क्रोशिश करता लेकिन खुश न रह पाता ! जाडे के मौसम में घने कोहरे लगी हुई ,हल्के ओस की फालसी की फुहारे गिर रही थी ! अनिल के मारा सुवह कोहरे में ही रिस्सा निकाल कर सडक पर चले जा रहा था कि अचानक एक बच्ची के रोने की अवाज सुनाई दी फिर सुनिल आगे बढे जा रहा था जैसे जैसेअनिल निकट जा रहा था कि बच्ची की रोने की अवाजे और गुँज रही थी !जब . पहुँचा तो देखा कि बहुत ही मनमोहक दुध का प्यासा भुख कारण रो रही थी कपडे शीत से उपर वाला कपडा तौली भींगा हुआ हाड कपने वाली ठंड मे सर्द हवाओ की झेको प्राकृति के गोद में घिरे उस छोटी बच्ची को ढक रही थी कि इसे जाडा का ऐहसास न हो ! बेचारा अनिल सोचा कि हमारे भाग्य ऐही बच्ची लिखी हुई थी ऐ मेरी न्यन प्यारी पत्नि उर्मीला की सुनी गोद इसी कारण थी !अनिल उस बच्ची को गोद में लेता है और गले लगा लेता है !अनिल के दिल में मानों खुशी लहरो में उछल पडा हे ईश्वर तेरा लाख लाख दुआ मेरी आंगन में नन्ही सी पडी मेरे सुखे बगीया को तुने हरा भरा कर दिया !

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