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शीर्षक -सोच बदलना है !

28 अक्टूबर 2023

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                   शीर्षक -सोच बदलना है!
                                
                     रचनाकार -क्रान्तिराज
                         
                   .
                     (   पटना ,बिहार )











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              अनिल ने जोड तोड मेंहनत से अपनी बच्ची की 

खुशी के लिए रात दिन एक करके थोडा पैसा कमाया और 

इक्ठा किया ,पत्नि उर्मीला  अपनी बच्ची के लिए  अपनी 

कुटीया को मानो महलों से प्यारी बना दिया ,अब बर्थ डे दिन 

सारे समान केक ,बर्थ के गुबारा ,रंग -बिरंगे सजाने वाले  

समान को लेते हुए,अपनी कुटीया खुशी से पहुँचा तो देखा कि 

ये  मेरी कुटीया की रौनक महलों से प्यारी ,उर्मीला सुनती हो ऐ 

तेरा  कमाल है ,तेरे दिल की खुशी देखकर आज मै बहुत ही 

खुश हुँ ,आज तो मेरा दिल की ,अरमान में खुशीयों की बारिश 

हो गई !आज मै बहुत बहुत खुश हुँ,बहुत बहुत धन्यवाद दाता,ईश्वर!

उर्मीला -शितल के पापा आप आ गये ,आप आये मानों मेरे 

आंगन में बहार आ गये !बहुत बहुत धन्यवाद मेरा बच्ची की 

पिता बनने के लिए !

अनिल-आपको भी उर्मीला बहुत बहुत धन्यवाद क्योकि मेरा 

बच्ची शितल के लिए कुटीया को महल से प्यारी बना दिये ,मैं 

फुले न समा रहा हुँ कि मेरे खुशीयां में खुशी आप का मिला 

,मेरी बच्ची की अपनी बच्ची की खुशी में शामिल होने के लिए,

सिर्फ आप की शितल की हम दोनो की शितल है ,अनिल हाँ 

उर्मीला हम दोनो का एक दुसरे गले लग गया,मानो खुशी की 

सागर  में नेहाने लगा !


चलो उर्मीला आपने ने तो मन कुछ संशय था वो भी खतम हो 

गया ,चलो हम दोनो की खुशी में चार चाँद लगाते है !

अब बर्थ डे की सारी तैयारी कर लिया ,अब अपने महल्ला के 
.
लोग अमंत्रित करते है ,सारे परिवार ,दोस्त,कटुम्ब को कह दिये 

है ,उर्मीला मैने सभी को कह दिया है,आप भी दोस्त को कह दे ,

आज खुशी के मौके पर कोई संबंधी छुटे ना !

        सभी सगी संबंधी को अमंत्रित किया गया  कुटीया में रंग 

-बिरंगे गुबारों से सजी कुटीया बहुत ही प्यारी लग रही है ,सजे 

हुए दिवारे ,दूार ,सभी चमकिली सजी हुई ,चमचमाती रंगीन 

धागो से बंधा हुआ त्रिकोण कटे रंगीन कागज की त्रिकोग 

दिखने  में बहुत ही प्यारी सी अनुभुति दे रही हो ,अकाश में 

गुंजती हुई साँड की आवाजे बर्थ गीतो से खुशी की सागर में 

दौड  लगा रही हो !प्रेम से मिला हुआ,रिस्ते की मिलन भी चार 

चाँद लगा रही हो ,खुशी छोटी छोटी बच्चे -बचीयां डांस रही हो 

,प्यार की गंगा में नेहा रही हो !


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रचनाएँ
सोच बदलना है .
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शीर्षक-सोच बदलना है ! रचनाकार- क्रान्तिराज ( पटना,बिहार) यह कहानी की पात्र ,घटनाए सभी कालपनिक है किसी व्यक्ति विशेष से मिलता जुलता नही है ,नही नाम वस्तु सात्विक है ! यह कहानी के दूारा समाज में उभरते भेद भावना ,गलत मानसिकता ,गलत नजरीये वाले लोगो को सही समाज की रूप रेखा को बदलने की क्रोशिश करने की कथन है ,जिससे समाज में नई दिशा मिल सके! भाग -1 ---------- एक रिक्साचालक अनिल झुगीं झोपडी में नाले के किनारे रह कर रिक्सा चलाकार अपने परिवार का पालन पोषण करता है ! अनिल की शादी का करीब दस साल हो गया था लेकिन एक भी संतान नहीं था दोनो पति पत्नि उदास रहती ,लेकिन उदास रहने से पेट न चल पायेगी !खुश रहने का बहुत ही क्रोशिश करता लेकिन खुश न रह पाता ! जाडे के मौसम में घने कोहरे लगी हुई ,हल्के ओस की फालसी की फुहारे गिर रही थी ! अनिल के मारा सुवह कोहरे में ही रिस्सा निकाल कर सडक पर चले जा रहा था कि अचानक एक बच्ची के रोने की अवाज सुनाई दी फिर सुनिल आगे बढे जा रहा था जैसे जैसेअनिल निकट जा रहा था कि बच्ची की रोने की अवाजे और गुँज रही थी !जब . पहुँचा तो देखा कि बहुत ही मनमोहक दुध का प्यासा भुख कारण रो रही थी कपडे शीत से उपर वाला कपडा तौली भींगा हुआ हाड कपने वाली ठंड मे सर्द हवाओ की झेको प्राकृति के गोद में घिरे उस छोटी बच्ची को ढक रही थी कि इसे जाडा का ऐहसास न हो ! बेचारा अनिल सोचा कि हमारे भाग्य ऐही बच्ची लिखी हुई थी ऐ मेरी न्यन प्यारी पत्नि उर्मीला की सुनी गोद इसी कारण थी !अनिल उस बच्ची को गोद में लेता है और गले लगा लेता है !अनिल के दिल में मानों खुशी लहरो में उछल पडा हे ईश्वर तेरा लाख लाख दुआ मेरी आंगन में नन्ही सी पडी मेरे सुखे बगीया को तुने हरा भरा कर दिया !

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