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सोच बदलना है !

29 अक्टूबर 2023

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                            भाग -6

            article-image                           शीर्षक-सोच बदलना है !   
                            
                        रचनाकार-क्रान्तिराज

            



  अगले भाग में पढे कि शितल की बर्थ डे अवसर पर 

सारे रिस्तेदार ,परिवार  आये हुए है ,बच्चीयाँ बर्थ सांग में डांस 
.
कर रही हो ,मानो सरोवर में डुबकी लगा रहा हो !हर तरफ 

खुशी की कली खिल गई हो ,आजाद पंछी भी चहचहा के 

..खुशीयां मना रही हो !


हर तरफ खुशीयां की सरगम बज रही हो ,प्यार की बारिश हो 

रही हो , रिस्ते से बंधे रिस्तेदार आपस में बातचीत  कर रहे है ,

.
कि अनिल की  खुशी आज दुगनी हो गई,लेकिन किसी इस 

बच्ची  का ना माँ का पता ,ना बाप का पता ,न जात ,न धर्म का 

पता किसकी  बच्ची थी जिसको अपना बच्ची बनाया ,आज 


एक सच्चे माता पिता बनकर अपनी बच्ची मानकर  बहुत ही 

उपकार  के काम किया ,ऐ नेक काम अच्छे व्यक्ति ही करता है,

आज तो खुशीयो की बारिश हो रही है ,अनिल की कुटीया 

महलो से प्यारी लग रही है ,खाना की हर प्रकार की व्यंजन से 

चार चांद लगा रही है ,रिस्ते के बंधन कोई भी उर्मीला अनिल से 

सिखे  ,ताकि किसी बच्ची या बच्चा को आभागीन माँ के छोड 

जाने पर अपना बना सके ! सभी रिस्तेदार हर प्रकार की सोच 

को  अपने अपने  पक्ष  रख रहे है , किसी ने कहा कि न धर्म 

का पता ,ना जात का पता ,न मां के  पता और उस बच्ची के 

लिए खुशीयां मनाया जा रहा है ! आज सब लोग अंधे है जो 

खुशीया  लुटाने चल आया ,सब. 

हर लोग की अपना अपना विचार व्यक्त करने की  क्षमता है ,

हर व्यक्ति का अपना अपना नजरीया है !  

अनिल को इन सारी बातों से कोई फर्क न पड रहा ,क्योकि हर

लोगो को  बोलना काम ही है , हम सारी बातो को सोच विचार 

कर ही गोद लेने की फैसला किया था ,हम लोग की मुँह क्यो 

लगना ,लोगो की बात पर अमल यदि किये तो या दिल से 

लगाये तो झुठ की जंजाल फैलाया जायेगा,इससे बढीयां मौन 

ही  रहना अच्छा है !

दुनिया की नजर से बच के रहने में ही भलाई है ,क्योकि  अरोप 


किसी पर भी लगा देते है ,जब बेचारी सीता को न छोडगया 

एक धोवी तान दिया और राम को विवस होकर सीता को 

वनवास भेजने पडा था ! इसी कारण कहा गया कि  दुनिया की 

नजरो से दुर ही रहने में ही परिवार की भलाई है ! 

               अब अनिल अपनी पत्नि उर्मीला और अपनी बच्ची 

शितल भारती  के साथ साथ कई रिस्तेदार और मेज के चारो 

तरफ सारे लोग  शीतल की केक काटने के लिए एकत्रित लोगो 

की खुशी भरी निगाहे ,चाँक चौंध रंगीन सजी धजी समाग्री से 

दमकता हुआ जमीं पर चाँद की रोशनी भी खुशीयां बरसा रही 

हो ,उर्मीला शितल को केक कटाने के लिए चाकु देती 

हुए,मोमवती  को जलाती हुए,रोडी चंदन की टिके सुशोभीत कर

रही , जलती हुई मोमवती  को बुझाने के लिए शितल को 

कहती हुई,मोमवती बुझते ही हैप्पी बर्थ डे टु यू की आवाजो से 

धरती अम्वर गुंज उठती है ,सारे लोग अपनी तालियों से 

सुशोभित  करती हुए ,खुशी से आंगन झुम उठती है ,सारे लोगो 

को केक की मिठास मुँह  और चेहरो पर सुशोभित कर रही हो ,

प्यार से सभी लोग गले लगा रहे है ,बर्थ डे सांग से मन को 

सुशोभित कर रही हो ! अब सभी लोग को खाने के लिए कुर्सी 

मेज पर बैठ कर बने शकाहारी समाग्री को लोग बडे चाब से 

खा रहे है ,सभी खुशी सरोवर में डुबकी लगा रहे है ,कुछ लोग 

अनिल के विचार  को बहुत ही उतम बता रहे है ,लेकिन गरीव 

सुनिल कैसे अपनी बच्ची को धुम धाम से बर्थ डे मनाया ,बडे 

बडे लोग भी देखते रह गये ,बहुत ही अच्छा अनिल ,धीरे धीरे 

सारे लोग अपनी अपनी घर के लिए रवना होते हुए,शितल 

,उर्मीला,अनिल को बधाई देते है !
       
        बाह बहुत खुब 
        सारे रिस्तेदार चले जाते हुए कहते है ,अनिल और उर्मीला 

की मन फुले न समा रही है !मानो खुशीया भगवान अनिल के 

दिलो में समा दिया हो ,खुशी की आँसु से सागर भी सर्मा गई 

हो !
.
उर्मीला -बहुत बहुत धन्यवाद ईश्वर 

अनिल -शितल को गोद में लेकर खुशी लाख लाख दुआ 

भगवान दे रहे है !

                  अब अगले भाग -7में पढे कि शितल धीरे धीरे 

जवान होती है ,अपने मम्मी पापा को कैसे खुश करके आगे 

संघर्ष करते हुए कैसे आगे बढती है !
  
                      सभी स्त्रोतागण से आग्रह है कि पढे तो 

समीक्षा जरूर करे ताकी हमें भी स्क्रीप्ट लिखने में मन 

सुशोभित हो!

                  (   सधन्यवाद   )



    


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रचनाएँ
सोच बदलना है .
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शीर्षक-सोच बदलना है ! रचनाकार- क्रान्तिराज ( पटना,बिहार) यह कहानी की पात्र ,घटनाए सभी कालपनिक है किसी व्यक्ति विशेष से मिलता जुलता नही है ,नही नाम वस्तु सात्विक है ! यह कहानी के दूारा समाज में उभरते भेद भावना ,गलत मानसिकता ,गलत नजरीये वाले लोगो को सही समाज की रूप रेखा को बदलने की क्रोशिश करने की कथन है ,जिससे समाज में नई दिशा मिल सके! भाग -1 ---------- एक रिक्साचालक अनिल झुगीं झोपडी में नाले के किनारे रह कर रिक्सा चलाकार अपने परिवार का पालन पोषण करता है ! अनिल की शादी का करीब दस साल हो गया था लेकिन एक भी संतान नहीं था दोनो पति पत्नि उदास रहती ,लेकिन उदास रहने से पेट न चल पायेगी !खुश रहने का बहुत ही क्रोशिश करता लेकिन खुश न रह पाता ! जाडे के मौसम में घने कोहरे लगी हुई ,हल्के ओस की फालसी की फुहारे गिर रही थी ! अनिल के मारा सुवह कोहरे में ही रिस्सा निकाल कर सडक पर चले जा रहा था कि अचानक एक बच्ची के रोने की अवाज सुनाई दी फिर सुनिल आगे बढे जा रहा था जैसे जैसेअनिल निकट जा रहा था कि बच्ची की रोने की अवाजे और गुँज रही थी !जब . पहुँचा तो देखा कि बहुत ही मनमोहक दुध का प्यासा भुख कारण रो रही थी कपडे शीत से उपर वाला कपडा तौली भींगा हुआ हाड कपने वाली ठंड मे सर्द हवाओ की झेको प्राकृति के गोद में घिरे उस छोटी बच्ची को ढक रही थी कि इसे जाडा का ऐहसास न हो ! बेचारा अनिल सोचा कि हमारे भाग्य ऐही बच्ची लिखी हुई थी ऐ मेरी न्यन प्यारी पत्नि उर्मीला की सुनी गोद इसी कारण थी !अनिल उस बच्ची को गोद में लेता है और गले लगा लेता है !अनिल के दिल में मानों खुशी लहरो में उछल पडा हे ईश्वर तेरा लाख लाख दुआ मेरी आंगन में नन्ही सी पडी मेरे सुखे बगीया को तुने हरा भरा कर दिया !

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