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सोच बदलना है !

23 अक्टूबर 2023

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               शीर्षक-सोच बदलना है !
  
                         रचनाकार-क्रान्तिराज
       
                        (   पटना,बिहार   )





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                         शीतल भारती  धिरे धिरे उम्र बढती जा रही 



है ,सुदरता तो चार चांद  मानो तारो की तरह चमकती आँखे 

कोयल से भी मीठी सुरीली बोली सब का मन को मोह लेती है ,

अपनी माता पिता की सेवा में तत्पर रहना ,हमेशा मम्मी पापा 

की बातो पर अमल करना ,हमेशा अपनी छोटी सी गुडिया के 

साथ खेलना और समय बिताना नित दिन का काम को बढे 

रोचक तरीके से करती रहती , जब हँसती तो उर्मीला को खुशी 

का  ठिकाना न रहता , शीतल एक वर्ष की होने वाली है, 

लेकिन  मानों की संसार की सभी उसमें समाहित हो ,किसी के 

भी बातों को सुनती और उसके बाद बोलने की क्रोशिश करती 

सारे मुहल्ले वाले बच्ची को देखते और खुश हो जाते ,मानो वह 

बच्ची भगवान का स्वारूप हो ,दिन पर दिन बढती उम्र के साथ 

साथ संस्कार कुट कुट के समाहित हो ,धिरे धिरे शितल की 

पहली बर्थ डे निकट आ रही है ,उर्मीला  अनिल से  कहती है 

अपनी बच्ची को खुशी में चार चाँद लगाने की समय आता जा 

रहा  है !

अनिल-क्या बोल रही हो उर्मीला हम समझे ना

उर्मीला-शितल के बर्थ डे निकट आ रहा है ,बर्थ डे के लिए 

तैयारी तो करनी है ,शितल की कुछ नये कपडे तो लेना होगा,

केक के साथ समाग्री भी लेना होगा , हम खुशनशीव है जो मेरी 

बच्ची भगवान के दुआ से मिली ,मेरी सुखी बगीया में हरियाली 

छा गई,वरना ऐ दुनिया तना दे देकर परेशान करती ,कहती की 

एक भी छुछुंदर भी न हुआ,हमें लोग बांझी कहकर बोलाता ,

इस ताना को सुनना बडी कष्टदायक यानि दिल में दुख की 

पीडा होता ,ये जमाने किसी भी नही छोडती यदि खुशी से दो 

वक्त के कोई रोटी खाता तो लोग जलते है और दुख रहीये तो 

लोग हँसते यहि दुनिया की रित है!

    अनिल-ऐ सब क्यो सोच रही हो उर्मीला  भगवान घर देर 

होता है,अंधेर नही होता ,हमें भगवान दुख दिया कि गरीव घर 

जन्म हुआ,लेकिन अपनी तन की बदौलत दो रोटी खा रहा 

हुँ,भगवान से ऐही मिनती करूगा कि हमपे सदा हाथ रखना 

सदा हमारे परिवार को खुश रखना !

अनिल-शितल को बच्ची की तरह नही बच्चा की तरह परवरिश 

करूगा,कपडे भी अपनी मनपसंद पेहनाऊगा ,बर्थ डे के लिए 

जितोड मेहनत करूगा ,कल हमें खाना घर नही रिक्शे पर 

खाना रात  दिन जागना पडे ,लेकिन शितल के बर्थ डे शान 

शौकत से मनाऊगा !

बातो ही बातों कब सवेरा हो जाता है ,पता नही चलता ,अनिल 

अपना रिक्शा लेकर  शहर की गलियों में निकलता है ,हे 

भगवन मेरा मन का मुरादा पुरा करना ,अपनी शितल की 

खुशीया में चार चाँद लगा सकुँ !

                        आगे की कहानी भाग-5 में पढे क्या शितल 

की बर्थ डे मना पाता है कि नही या खुशी से मनाता अगले 

भाग  में पढे !

                   (     सधन्यवाद  )

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रचनाएँ
सोच बदलना है .
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शीर्षक-सोच बदलना है ! रचनाकार- क्रान्तिराज ( पटना,बिहार) यह कहानी की पात्र ,घटनाए सभी कालपनिक है किसी व्यक्ति विशेष से मिलता जुलता नही है ,नही नाम वस्तु सात्विक है ! यह कहानी के दूारा समाज में उभरते भेद भावना ,गलत मानसिकता ,गलत नजरीये वाले लोगो को सही समाज की रूप रेखा को बदलने की क्रोशिश करने की कथन है ,जिससे समाज में नई दिशा मिल सके! भाग -1 ---------- एक रिक्साचालक अनिल झुगीं झोपडी में नाले के किनारे रह कर रिक्सा चलाकार अपने परिवार का पालन पोषण करता है ! अनिल की शादी का करीब दस साल हो गया था लेकिन एक भी संतान नहीं था दोनो पति पत्नि उदास रहती ,लेकिन उदास रहने से पेट न चल पायेगी !खुश रहने का बहुत ही क्रोशिश करता लेकिन खुश न रह पाता ! जाडे के मौसम में घने कोहरे लगी हुई ,हल्के ओस की फालसी की फुहारे गिर रही थी ! अनिल के मारा सुवह कोहरे में ही रिस्सा निकाल कर सडक पर चले जा रहा था कि अचानक एक बच्ची के रोने की अवाज सुनाई दी फिर सुनिल आगे बढे जा रहा था जैसे जैसेअनिल निकट जा रहा था कि बच्ची की रोने की अवाजे और गुँज रही थी !जब . पहुँचा तो देखा कि बहुत ही मनमोहक दुध का प्यासा भुख कारण रो रही थी कपडे शीत से उपर वाला कपडा तौली भींगा हुआ हाड कपने वाली ठंड मे सर्द हवाओ की झेको प्राकृति के गोद में घिरे उस छोटी बच्ची को ढक रही थी कि इसे जाडा का ऐहसास न हो ! बेचारा अनिल सोचा कि हमारे भाग्य ऐही बच्ची लिखी हुई थी ऐ मेरी न्यन प्यारी पत्नि उर्मीला की सुनी गोद इसी कारण थी !अनिल उस बच्ची को गोद में लेता है और गले लगा लेता है !अनिल के दिल में मानों खुशी लहरो में उछल पडा हे ईश्वर तेरा लाख लाख दुआ मेरी आंगन में नन्ही सी पडी मेरे सुखे बगीया को तुने हरा भरा कर दिया !

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