महाशिवरात्रि के दिन शंकर की पूजा की जाती है। शिवलिंग पर पुष्प,बिल्ब पत्र व दूध चढ़ाई जाती है। शंकर हाथ में त्रिशुल व डमरू लिये जटाधारी गले में सर्प लिपटे माथे पर भभूत लगाये रहते है। कही कही अर्धनारीश्वर रूप में भी मिलते है। क्या अर्थ होगा इनका।क्या यही इनकी वेशभूषा है या प्रतीक है जिसका अन्य अर्थ होता होगा।
शिवलिंग की पूजा की जाती है क्यो? शिवलिंग का आकार अंडाकार है ऐसा माना जाता है कि निराकार का रूप इसी आकृति जैसी है। जब हम अपने अन्दर प्रवेश करते है तो विचार शून्य होते हैं तब हम अ मनी अवस्था में आ जाते हैं।
बिल्ब पत्र तीन पत्तो वाला होता हैं जिसे रजस तमस व सत्व गुण का प्रतीक है। भभूत एक राख है जिसका अर्थ नष्ट या मृत्यु से है।सभी को एक दिन मिट्टी में मिलना है राख होना है जो सदा स्मरण दिलाता रहेगा की इस संसार में हम सदा के लिए नही रहेंगे।पुष्प या फूल अर्पित करना हमारे ताजा मन से है।हमारा मन शुद्ध व ताजा हो हम इसी स्वच्छ मन से आपकी उस निराकार निर्गुण की उपासना करते हैं। सर्प सीधा खड़ा रहता है फ़न फैलाए जो ऊर्जा के ऊपर संचार का प्रतीक है। ऊपर चेतना का खिलना सहस्त्रार का खिलना है।
अर्धनारीश्वर रूप ये बताता है कि हर व्यक्ति स्त्री व पुरुष दोनो है। एक पुरुष 60 प्रतिशत पुरुष व 40 प्रतिशत स्त्री है। एक स्त्री 60 प्रतिशत स्त्री व 40 प्रतिशत पुरुष है। इसलिए शिव का एक रूप में आधे भाग नर व आधा भाग नारी को दिखाया गया है। शिव को महाध्यानी कहा जाता है।
ओशो के अनुसार"ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। ध्यान का अर्थ है: न विचार,न वासना, न स्मृति, न कल्पना ? ध्यान का अर्थ है : भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का विनाश का देवता कहा है, क्योंकि ध्यान विध्वंस है- विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है । मन गया तो प्रलय हो गयी। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आयेगा जब प्रलय हो जायेगी और सब विध्वंस हो जायेगा । नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु- मन की मृत्यु, 'मैं' की मृत्यु, विचार का अंत । शुद्ध चैतन्य रह जाये- दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिम्ब न बने।"
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