जब मनुष्य जन्म लेता है तो सबसे करीब उसे जन्म देने वाली माँ होती है। वह माँ के भावो को समझती है।उस समय वह शिशु कोई भाषा नहीं जानता है। केवल स्पर्श की भाषा समझता है। धीरे-धीरे वह बच्चा अपने करीबी को पहचानने लगता है।आवाज को सुनने लगता है। और निरर्थक आवाज भी बोलने लगता है। उसे अपने चारो ओर से बोले जाने वाले भाषा की निरंतर आवाज सुनाई देती है जिसे वह बच्चा भी बोलने सीख जाता है। इसे ही मातृभाषा ही कहा जायेगा।माता की भाषा जिसे एक क्षेत्र विशेष में कही जाने वाली "बोली"कहा जाता है। बच्चा अपने घर की भाषा या बोली को सीखकर ही बड़ा होता है। यह एक अभिव्यक्त करने की पहली पाठशाला होती है।
इसके बाद बच्चा स्कूल में प्रवेश लेता है जहाँ वह जिस देश या राष्ट्र का निवासी है उसकी भाषा को वह पढता है जिसे राष्ट्रभाषा भी कहा जाता है। प्रत्येक देश का एक राष्ट्रभाषा होता है जो सरकारी कामकाज में भी इस्तेमाल किया जाता है।सविधान द्वारा सर्वसम्मति से यह भाषा चुना जाता है।
मातृभाषा दिवस 21 फरवरी को मनाया जाता है। 17 नवंबर 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी।इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।आजकल मातृभाषा को बचाने पाठ्यक्रम में कुछ अध्याय शामिल किया जाता है जो उस क्षेत्र की भाषा से होती है। राष्ट्रभाषा या यूनिवर्सल भाषा के तले हम सबकी मातृभाषा विलुप्त हो जाती है। यह उस देश के राज्यो पर निर्भर करता है कि वह अपने मातृभाषा को कैसे बचाये उसका प्रसार कैसे करे? एक व्यक्ति सही सम्प्रेषण अपना विचार अपने मातृभाषा से कर सकता है।
हम अपने बच्चे को भारत में शुरु से इंग्लिश मिडियम में पढ़ाते है लेकिन आगे की कक्षाओं में वह बच्चा कमजोर हो जाता है।वह न समझकर रटने लगता है।क्यो? क्योकि घर मे तो अंग्रेजी बोली नहीं जाती है।और न ही आसपास के माहौल में इंग्लिश में बातचीत की जाती है। (दिल्ली और कुछ राज्यो को छोड़कर जहाँ इंग्लिश बोली व पढ़ी जाती है) ऐसे में उसे उसके मातृभाषा/राष्ट्रभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि उसका स्तर ऊँचा हो सके।