जिस तरह से एक हाथ से ताली नही बजती उसी प्रकार नारी के बिना घर-परिवार नहीं चल सकता है। अगर नारी ग्रहणी है तो जिम्मेदारी से अपना काम करती है।बच्चो के पालन पोषण से लेकर पतिदेव के टिपीन तक गृहणी का महत्वपूर्ण योगदान होता है। एक पत्नी के रूप में घर में प्रवेश करते ही वह पति के साथ साथ सास व ससुर का ख्याल रखती है।सुबह का चाय-नाश्ता दोपहर का भोजन व रात्रि के भोजन का पूरा प्रबंध बहू ही करती है।बुढ़े सास ससुर को समय पर दवाई देना व माता पिता के समान देखभाल एक गृहणी ही कर सकती है। ससुराल पक्ष के सभी रिश्तेदारों का मान सम्मान करने में कोई कोताही नहीं बरतती। उसे भी अपने रिश्तेदार जैसा समझती है व प्रेम बरसाती है।आवारा देवर का भी ख्याल रखती है।सुबह घर का पोछा व किचन की तैयारियाँ के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाती है। जब घर में नन्हा खिलता है तो पुरा ससुराल पक्ष खिलखिला उठता है। अपने नवजात को नौ महीने पेट में धारण तो करती उस समय भी अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटती है।अपने शिशु को दुध पिलाकर उसे भावी बीमारीयों से सरक्षण प्रदान करती है।
ग्रहणी का अगला कदम बढ़ते बच्चे की देखभाल व पढ़ाई पर भी फोकस होती है। इस स्टेप में पति से थोड़ा मन मुटाव होता है उसे भी वह कण्ट्रोल कर लेती है। बचत करने में सहयोग प्रदान करती है। कई लोग पति के बिजनेस में भी हाथ बटाती है। आसपास के नेबर (पडौसी) से मधुर संबंध रखती है। बच्चो को खाली समय मिलने पर उसे टीच भी कराती है।होमवर्क को साल्व करने मदद करती है। बेटी की स्कूल तैयारी बाल संवारती है घर का माहौल खुशनुमा बनाती है।एक मां होने के नाते अब वह अपने परिवार के लिए चिंतित रहती है। उसके बच्चे अब बड़े हो रहे होते है सास ससुर के कुछ ताने भी सह लेती है। अपने जवानी को दांव लगाकर पूरे परिवार के परवरिश में लग जाती है।
समय गुजरता जाता है बेटा व बेटी की शादी में वह अपना कार्य चुपचाप करती है।बेटी को बिदा करती उसके ससुराल पक्ष का मान सम्मान में कोई कसर नही छोड़ती।नया बहू लाती है उसे अपनी बेटी की तरह मानती है उसके कामो में सहायता करती है।अपने बेटे को समझाता है कि वह बहू का ख्याल रखे। वह गृहणी दादी व नानी बनकर दोनो पक्षों का हितैषी होती है।
यदि गृहणी नौकरी भी करती है तो वह घर के कामो को निपटाकर आफिस जाती है।उसे दोहरे दायित्व निभाने होते है।वह बखूबी अपने कर्तव्यों दायित्व को निभाती है।
मृत्यु के अन्त तक वह प्रेम ही बरसाती है।पर उसका सम्मान कहाँ होता है। कौन समाज देश गृहणी को पुरस्कार से सम्मानित करती है। उसकी व्यथा घर की चार दिवारी में दब जाती है।उसके सपने सपने रह जाते है। स्त्री विध्वंसक नही होती वह तो जोड़ने वाली निर्माता होती है जो प्रकृति के साथ चलती है।