प्रेम क्या है? प्रेम कैसे करे? प्रेम दो जीवो के बीच एक भावनात्मक हार्दिक संबंध है। प्रेम के कई स्तर होते है जैसे लेन देन वाला प्रेम जिसमे हमें कुछ जरुरत होती है वो चीज उसके पास होता है उसे पाने के लिए हम उससे प्रेम करते है। जब वस्तु की पूर्ति हो जाती है तो वे अलग हो जाते है। बिजनेस इस प्रेम का उत्तम उदहारण है। किसी शाप में हम सामान खरीदने जाते है दुकानदार हमसे मुस्कुरा के बात या अभिवादन करता है हम उसके दुकान से सामान खरीद कर पैसा अदा करते है।हम दोनो के बीच एक संबंध बन गया ग्राहक दुकानदार का। यदि इस दुकान की सामग्री ग्राहक के खरे नही उ तरती है या ग्राहक पैसे नही देता है तो दोनो के सम्बंध टुट जायेगा मतलब ग्राहक दुसरे शॉप में चला जायेगा। तो यह एक तरह का उथला प्रेम है जो किसी वस्तु पर टिकी है।
एक दुसरे तरह का प्रेम होता है जिसमे आकर्षण के कारण प्रेम होता है या रिलेशन के कारण प्रेम होता है। जैसे एक उम्र के बाद लड़के लड़कियों का एक दुसरे के प्रति आकर्षण का होना।कई लोग करीब आ जाते हैं एक दुसरे को छूना चाहते है ये प्रेम बायोलोजीकल स्तर का प्रेम है। इसी प्रकार रिलेशनशिप में प्रेम का होना माता पिता का बच्चो से प्रेम,मामा मामी,चाचा चाची सगा सम्बंधी से प्रेम का होना याने खून का रिश्ता। विद्यार्थी शिक्षक का प्रेम।पहले की अपेक्षा ये प्रेम मजबूत होता है। किसी जानवर के बच्चो से हम उसके सुन्दरता देखकर उसे गले लगाते है उसके साथ बाते करते हैं उसके साथ समय बिताते है। हम अपने आस पास पडौसी से एक रिलेशन से बन्धे रहते है। एक मजदूर किसी काम को प्रेमपूर्वक कर सकता है।किसी देश का नागरिक अपने देश के संविधान के नियमों का पालन करता है वह भी अपने देश से प्रेम करता है।
एक तीसरे तरह का प्रेम होता है जो अटूट रहता है जिसे बेशर्त प्रेम कहते है। यह प्रेम किसी में भी हो सकता है।एक पुत्र अपने माता-पिता से बेशर्त प्रेम कर सकता है यदि वह समझता है कि आज वो जो कुछ भी मुकाम पर है उसी की बदौलत है। एक प्रेमी प्रेमिका में सच्चा प्यार हो सकता है यदि वह शारीरिक ना हो तो। मीरा का श्याम के प्रति प्रेम बेशर्ते था तभी वह श्याम में समा गई। एक भक्त का भगवान के प्रति प्रेम सत्य हो जाता है जब वह पूरी तरह समर्पण भाव रखे। एक सच्चे मित्रो में अटूट प्रेम हो सकता है। यदि कोई एक दुसरे की स्वंतंत्रता में बाधा न डाले तो यह प्रेम ऊँचा है। पति पत्नी में कही कही ये दिखाई देता है। एक बैलगाड़ी को आपने देखा होगा दोनो के आरे चक्का बराबर रहता है तभी वह चलता आगे बढ़ता है। इसी तरह से दो एक दुसरे को प्रेम तभी करेगा जब दोनो समान रूप से दुसरे को अपने जैसा समझता है।
प्रेम हम करते नही हम प्रेम में होते हैं।अक्सर मेरा उनसे प्रेम है कहते है लेकिन हम प्रेम में होते है।प्रेम में गिरकर ऊपर उठना प्रेम की ऊंचाईयों को छूना है। प्रेम वह जो बन्धन से मुक्त करे और एक दिन प्रेम परमात्मा हो जाता है।
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