भारत एक कृषि प्रधान देश हैं जिसमे विभिन्न धर्मो के लोग निवास करते है। प्रत्येक धर्म में अलग अलग जाति के लोग रहते है। संसार में भी विभिन्न धर्मो को मानने वाले लोग निवासरत है। हम चाहे कितने धर्म सम्प्रदाय को माने इस पृथ्वी में दो वर्ग के लोग रहते है (1) पुरुष (2) स्त्री
इस सृष्टि पर पुरुष का व्यवहार सक्रिय बलशाली कर्म के रूप में है। जबकि स्त्री कोमल धैर्यशील है। शुरु से ही इतिहास ये बताता है कि पुरुष ने राज किया और महिला पर्दे पर रही। स्त्री जगत जननी है उसी से संसार आगे बढ़ रहा है। स्त्री ही एक पुरुष या महिला को जनती है। जिससे संसार चलायमान है। घर के सारे काम काज एक महिला ही करती है जिसे पुरुष से करना सम्भव नही है। इस तरह से देखा जाय तो स्त्री भी शक्तिशाली व सक्रिय है हालाकि उसके काम करने के ढंग अलग है वह समर्पण भाव से जीवन जीती हैं। पुरुष की अपेक्षा स्त्री 5 से 10 साल ज्यादा जीवन जीती है । ऐसा लगता है कि महिलाओं को कमजोर समझ कर उसे घर तक ही सीमित रखा गया है।
अब आज के आधुनिक युग में सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने भाग लिया है।उनके प्रतिभाओं को निखरने दिया जा रहा है। वह हर चरित्रो में बेहतर प्रदर्शन कर रहे है। महिलाएं पूर्ण भी होती हैं याने जहाँ पर है वहाँ वह संतुष्ट है। शहरो में तो अधिकतर उसे सम्मान ही करते दिखाई देता है। किसी बस या आटो में उसे जगह बैठने दे दी जाती है। क्या यह उसका सम्मान है या उसे अन्य नजरो से देखा जाता है। कही उसे आवश्यकता से अधिक तो नही देखा जा रहा है।मसलन मैं औरत हूँ मुझसे दूर से बात करो मैं अलग हूँ मेरे अनुसार समाज ढले वगैरह वगैरह।
भारत में हर वर्ष 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।यह सरोजिनी नायडू की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस सभ्यता में महिलाओं के लिए आरक्षण व कानून तो बन रहे है।उसके अनुसार ढल भी गए है। एक साथ कई भुमिका मां बहन बेटी बहू पत्नी निभाती है कई पदो पर पदस्थ भी है । कई राज्यो में लिंगानुपात में कमी है ।क्या घर के अन्दर अब भी स्त्री स्वंतत्र जीवन जी रही है।