नई दिल्ली: दिल्ली के तिहाड़ जेल में बनी रोटियां सिर्फ वहां बंद कैदी ही नहीं खाते हैं. यहां बनी रोटियां मछलियों और मुर्गियों को भी खिलाया जाता है. फर्क सिर्फ इतना है कि ये रोटियां फंगस लगी होती है और इसे मुर्गी और मछली के दाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. जेल में बची रोटियों को मुर्गी और मछली पालक खरीद कर ले जाते हैं और अपने जानवरों का खाने में देते हैं.
हर महीने बचती है 30 हजार रोटियां
आप को जान कर हैरानी होगी की तिहाड़ जेल में हर महीने करीब 30 हजार रोटियां बचती है. आपको बता दें कि तिहाड़ की 10 जेले हैं जिसमें से जेल नंबर-2 और जेल नंबर-5 में कम रोटियां बचती है बाकी के आठ जेलों में भारी मात्रा में रोटियां बचती है. इन रोटियों को फोंकने के बजाए जेल प्रशासन इन रोटियों को सहेज कर रखता है और फिर महीने के अंत में इन रोटियों को बेच दिया जाता है.
इस वजह से बचती है रोटियां
बताया दाता है कि जेल के अंदर खाना बनाने के कांट्रेक्ट किसी प्राइवेट कंपनी को दिया गया है जो अपने आंकड़ो के हिसाब से रोटियां बनाती है. मोसम के हिसाब से ना तो रोटियों की संख्यां घटायी जाती है और ना ही बढ़ाई जाती है. जिस वजह से रोज हजारों रोटियां बच जाती है. इसके पीछे एक कारण और बताया जाता है कि जेल के अंदर बनने वाली सब्जियों और दालों का स्वाद इतना ज्यादा खराब होता है कि उसके साथ रोटियां खाने का मन ही नहीं करता है जिस वजह से कैटी ज्यादा रोटियां नहीं खा पाते हैं.
रोटियां रखने के लिए अलग बैरक
रोज जमा होने वाली इन रोटियों को महीने दो महीने में एक बार बेचा दाता है. इसलिए हर जेल में एक बैरक रोटियों को रखने के लिए सुरक्षित रखा गया है. जहां रोज बचने वाली रोटियों को रखा जाता है. बाद में जब काफी रोटियां जमा हो जाती है तो उसे बेच दिया जाता है.