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सोनू की चतुराई

Pawan Kumar Sharma kavi kautilya

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जून में गर्मी के दिन थे बहुत बेहाल सूरज ने भी रूप बनाया था विकराल तभी की बात बताता हू एक छोटा सा किस्सा आपको सुनाता हूं। कि विचारो का द्वंद कैसे हावी हो जाता है किसी को समझे बिना भला बुरा कह जाता है जीवन परिचय के दर्शन का बोध करता हू । मै एक दिन बाजार जा रहा था गर्मी के कारण रोड गलियां थे खाली सभी घर में ले रहे थे कूलर और पंखे की ठंडाई तभी मुझे हुआ मुझे कुछ ज्यादा ही गर्मी का अहसास, पसीने पानी की तरह बह रहा था वही मुझे हुआ कुछ गर्मी खास एक नीम का पेड़ था एक पास दरक्त के नीचे जाकर हुआ कुछ ठंडक का अहसास पर अब बहुत जोर से लग रही थी प्यास कही से ठंडे पानी की तलाश जिससे की मैं अपना गला तर कर जाऊंगा ठंडा पानी अगर मिल जाए तो अपनी प्यास बुझाऊंगा पर कोई नहीं थी मुझे आस तभी सामने घर का दरवाजा खुला एक साधारण सा व्यक्ति मुझसे आकर बोला मेरे घर आकर थोड़ा आराम फरमाने गर्मी बहुत है भारी हे जल से अपनी प्यास बुझ ले बात सुन मानो मेरे लिए तो मिल गए भगवान मैने भी उन्हे किया बारंबार किया उन्हे प्रणाम मैं उनके साथ उनके घर चला गया । बैठा उनके साथ , मेरा मन घबराया वहा पंखे कूलर लाइट सब थी बंद मन में विचार आया कैसे है कंजूस जो बिजली बचत करते है । भरी गर्मी में ही पंखे बंद रखते मेरा माथा ठनक गया कुछ बोलूं उससे पहले ही उन्होंने बताया किसी कारणवश मोहल्ले की बिजली दो दिन से बंद है तभी उनके परिवार का एक सदस्य पानी लेकर आया पानी था हल्का हल्का गुनगुना उन्होंने मुझे पिलाया गुस्सा तो बहुत आया परंतु मैने अपने आप को समझाया मै पूछने वाला ही था कि उन्होंने बताया की आप भी बाहर से आए हो पसीना आपके झलक रहा है कही ठंडा पानी पीकर आप हो न जाए बीमार इसीलिए आपके लिए थोड़ा कुनकुना पानी मंगवाया ये आपकी प्यास मिटाएगा आपको बीमारियों से भी बचाएगा बात तो उनकी एकदम थी सही थोड़ी देर बाद उन्होंने मंगवाई चाय बातो बातो मैने पीली चाय क्या कहूं चाय थी पूरी फीकी चीनी का एक दाना न था मैने सोचा चाय तो एक बहाना था मुझे भी गुस्सा बहुत आया । परन्तु उन्होंने जो बात बताई वो मेरे मन भाई कही आपको मधुमेह की बीमारी तो नही इसी कारण आपके लिए फीकी चाय मंगाई अब में अंदर से झिल्ला रहा था पर मंद मंद भी मुस्कुरा रहा था । उन्हे किया प्रणाम और बाहर निकल गया रास्ते में उस परिवार के बारे में सोच मेरा मन बदल गया । कितने भले लोग है जो मेहमानो का इतना ख्याल रखते है मेहमान को भी भगवान समझते है मित्रो , विचारो का द्वंद तो मस्तिष्क में चलता रहता है विचार तो क्षण प्रतिक्षण बदलते रहते है। हम सामने वाले परिस्थिति देखे बिना तुरंत अपना निर्णय कह जाते है । विपरीत परिस्थितियों में हम तुरंत तुरंत निर्णय ले ये मन नहीं कहता है । मन मस्तिष्क का समायोजन कर अपनी बात कहना और सोच समझ कर निर्णय लेना यही इस कविता के माध्यम से कवि कौटिल्य कह जाता है । जय हिंद , जय भारत पवन कुमार शर्मा कवि कौटिल्य  

sonu ki chaturai

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