मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु काह बिस्वासा।।७/४५/३---------------------------------------------------------------श्रीरामचरितमानस के उत्तरकांड में श्रीरामजी अपनी प्रजा के सम्मुख जो अपने विचार रख रहे हैं उनमें यह एक चौपाई बड़ी मार्मिक और गूढ़ है। प्रायः हम अपने आप को रामभक्त मान इतराते हैं और यह भी म