आदमी से आदमी तक
कविता नंबर -१
अपनी हद से गुजर गिर गया आदमी
कैसा था आज कैसा हुआ आदमी
खुद ही खुद की नजर में गिरा आदमी
आदमी ही नहीं अब रहा आदमी ।
खूनी रिश्ते हि कत्लों का कारण बनें
भाई खुद ही बहन का हरण कर रहे
इस कदर हमनें लूटा है खुद को यहाँ
कुछ बचा ही नहीं अब सिवा देंह के।
पैसा ही आदमी का धरम बन गया
पैसा ही आदमी