आसनसोल (जहाँगीर नेमतपुरी) :- कहा जाता है, जो दिखता है वही
आकडा होता है. हुक्मरान तो कुछ भी कह देते है और उसे आज़ादी भी है. मगर सच्चाई की
लकीर सिर्फ कह देना ही नहीं होता है. क्योकि आकडे, स्थिति,
तस्वीर और वर्तमान भी बोलती रहती है. जी हाँ कुछ ऐसी ही स्थिति
तस्वीर और आकड़ो से हमारा देश गुजर रहा है. मगर अफ़सोस सत्ताधारी को सत्ता से,
हुक्मरान को हुक्म से ही लेना देना है. लोकतंत्र, प्रजातंत्र देशहीत का दायरा सिमटता जा रहा है. इसकी वजह क्या है, सारे लोग अच्छी तरह से जानते है. भारत का हर राज्य राजधानी समेत कमोबेश
किसी न किसी मर्ज से मुब्तिला दिखाई दे रहा है. समाधान और सावधान पर कोई विधान अब
कार्य ही नहीं करना चाहती है. बात घाटी की तो कश्मीर करीब 109 दिनों से कैद
में है, सबकुछ ठप. सेना का मसला, आतंक
का खौफनाक छाया से निबटने और उबरने को लेकर कोई कहने और पूछने को भी तैयार नहीं है,
स्कुल, कॉलेज, दुकान
सारे के सारे बंद मानो जीवन एक बंद बक्शे में पड़ गया हो. राजनितिक दांव-पेंच,
खींचातानी, बहानेबाजी का असर कश्मीरियों की
जिंदगी पर बुरा असर डालने में जरा भी संकोच नहीं कर रही है. कहने और बताने की
जरुरत भी नहीं है. मसला और मसाईल का हल मुमकिन नहीं है. इस तरह की बात कहने वालो
की भी कमी नहीं है.अगर और मगर का डगर आसान भी कहाँ होता है. उत्तर प्रदेश राज्य
जहाँ सत्ता बलुआ मिट्टी की घर से बनी हो और अचानक किसी बड़ी अंधी ने उसे बिखेर कर
रख दिया हो हंसी भी आती है पर देश के हालत को देखकर गमगीन होना पड़ता है. हँसना मानो
ज्यादती सा लगता है. कुर्सी तो बस एक ही है, मगर हर कोई उसी
पर आसीन क्यों होना चाहता है? सवाल और फिर उसके बाद सावालिया
निशान. गद्दी सत्ता और धन, रिश्ते और मानवता को कत्ल करने
वाले सबसे सफल हथियार साबित हो रहे है. मगर नुकसान में हमेशा जनता ही रही है. हद
तो तब हो जाती है जब सारा धीगरा उसके ही सर पर फोड़ दिया जाता है. सीधे शब्दों में
कहा जाय तो राजनीति खींचातानी का बुरा और व्यापक प्रभाव प्रजा को ही झेलनी पड़ती
है. बात अब महारष्ट्र की, देश की आर्थिक व्यवस्था तय करने
वाला शहर मुम्बई और देश का अहम राज्य महारष्ट्र के अगर राजीनीति में कठोरपन आ जाये,
ठहराव और अनुशासनहीनता पैदा हो जाये तो सरकार भी घेरे में आ जाती
है. महाराष्ट्र में शिक्षा रोजगार के लिए आरक्षण आन्दोलन और देशभक्ति का बंधक
मामले से हर कोई बाखबर है. ऐसी स्थिति में हमें समझना होगा, समझाना
होगा क्योकि जब बात देशहित की हो तो सबको एक कतार में खड़ा होना होगा. सरकार और
जनता की गलती ढूँढना लोकतंत्र में सबके बस की बात भी नहीं है. रुख बिहार की तो यह
राज्य हत्या, अपहरण, कालेधंधे में
मुब्तिला दिखाई देता है. सत्ताधारी जाति की दबंगई खुले आम कानून को चुनौती देने
में जरा भी चुक नहीं रही है. दावे करना और दावे में सफल होना दोनों में असमान-जमीन
का फर्क होता है. कब बदलेगे कैसे बदलगे और कौन बदलेगा एक ऐसी किताब जो आज भी सादे
पन्ने की है. बात अब अपने देश की राजधानी दिल्ली की करे तो यहाँ जनता दरकिनार है
और पीएम, सीएम और उपराज्यपाल ही त्रिकोणीय फंदे में फंसे नजर
आ रहे है कौन किसपे काबू पाना चाहता है किससे किसको क्या शिकायत है. इन्हें खुद
पता नहीं है. मानो जनता दर्शक बनी हो और क्रिकेट का त्रिकोणीय सीरिज हो रहा हो.
कोई झुकने और मानने को तैयार ही नहीं. इधर राजधानी में डेंगू, चिकनगुनिया, बर्डफ्लू जैसे बीमारीयों ने कोहराम
मचाना शुरू कर दिया है. मगर के बाद लिखने के बजाय सवालिया निशान लगा रहा हूँ ???
बात फिर से दोहरा रहा हूँ की आकडे ही बोलती है. आकड़ो के किताब
में हमारा केंद्र सरकार और हमारे माननीय प्रधानमन्त्री. ढाई बरस में प्रधानमन्त्री
मोदी ने पचास से अधिक देशो का दौरा किया. उन्होंने विदेशी निविसको से कहा कि हमारे
देश में कारोबार बढाईये हम आपको हर सहूलत प्रदान करेगे. मगर विश्व बैंक ने बिजनस
में सहुलत देने वाले देश की सूचि तैयार की है. जिसमे
भारत बीते साल में सिर्फ एक पायदान ही आगे बढा है यानी भारत 131 वें से 130 वें
पायदान पर आया है. जबकि पाकिस्तान 148 से 144 वें और चीन 80 से 78 वें पायदान पर.
तो क्या भारत महज बाजार बनकर ही दुनिया के पटल पे उभरेगा या हमारी भी कोई पहचान
बनेगा. बिजली क्षेत्र को छोड़कर अन्य किसी भी आर्थिक क्षेत्रो में भारत ओसतन 130
वीं पायदान के पार ही रही है. अब सवाल यही उठता है की क्या मोदी सरकार विदेशी
निविशको का भरोसा जितने में नाकाम रही. सबकुछ काफी आगे से बढ़ रहा है हमें भी बढ़ना
होगा. मगर कौन से ऐसे कारक है जो बाधा डाल रही है. इन कारको पर सरकार भी कही काबू
तो कही बेकाबू नजर आती है. बात बिलकुल साफ़ है. स्वच्छता, सुन्दरता,
सराहनीय की कल्पना करना कोई गलत बात नहीं है मगर स्थिति अवस्था पर
भी पैनी नजर बनाना जरुरी है. कही इनकी नकारात्मक लपटों में सब कुछ समाप्त न हो
जाये. तीन तलाक, बीफ, लव जिहाद,
घर वापसी, अल्पसंख्यक, हरियाणा
में जाट, महाराष्ट्र में मराठो को सडक पर उतरना, घाटी में लगातार घटना ऐसे कई सारे मुद्दे है जिसको देश झेल रही है. जागो फिर जागो और जगाना ही होगा क्योकि चुनौतियां अब थोक में बढ़ने लगी है. हमारे पास वक्त है ताकत है संसाधनों का जखीरा भी मगर छोटी-छोटी बातो पर
ही बेवजह हम चुक जाते है. अवस्थाये, स्थिति, मुसीबते, टकराव आती रहेंगी. मगर हमें विचलित नहीं
होना है, अपने समझदारी, अक्लमंदी का
बेजोड़ नमूना पेश करना होगा. क्योकि बात देश हित की है और देश से बड़ा कुछ नहीं
होता.. देश है तो हम है इसके बिना हमारा वजूद कहाँ.