आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- नशा हमारे परिवार, समाज और देश के लिए दीमक की तरह है, इसकी जद में ज्यादातर युवा पीढ़ी रहते है. इसके कारोबारी भी स्कुल-कालेजो को सबसे आसान जरिया मानते है. इसके लिय वे लोग अपने दलालों को इन जगहों पर सक्रीय कर देते है. लेकिन उन्हें नहीं मालूम की वे अपनी बुनियाद को ही हिला रहे है, खोखला कर रहे है. नशीले पदार्थ जैसे चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन या कोकिन हमारे समाज के लिए बेहद खतरनाक शाबित हो रहे है. दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह महानगर कोलकाता और आसनसोल शिल्पांचल में भी इसका मकडजाल फैलता जा रहा है. ड्रग्स कारोबारियों के खिलाफ पुलिस-प्रशासन समय-समय पर अभियान चलाती रहती है, लेकिन नशे के सौदागरो पर इसका असर पड़ता नहीं दिख रहा है. आसनसोल के रेलपार में नशीली पदार्थो की बिक्री पर चिंता जताते हुए ही आसनसोल नगरनिगम द्वारा नशा मुक्ति जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. नशीली पदार्थो को धीमा जहर भी कहते है, क्योकि ये जिंदगी को धीरे-धीरे बर्बाद कर देती है. पुलिस को इसपर सख्ती से और लगातार कार्यवाही करते रहने की आवश्यकता है, क्योकि पुलिस की निगाह से बचने के लिए ये अपने कारोबार में हमेशा बच्चों और महिलाओं का इस्तेमाल करते है. जिससे इनपर किसी को शक ना हो. चूँकि पुलिस द्वारा कई मामलों में बच्चों को गोद में लेकर महिलाएं ड्रग्स बेचतीं पकड़ी भी की जा चुकी हैं. वही छोटे-छोटे बच्चे ड्रग्स बेचनेवाले गिरोह के सबसे बेहतरीन मोहरा होते है. क्योकि एकबारगी इन बच्चों और महिलाओं पर जल्द ही संदेह नहीं हो पाता है, इसलिए ड्रग्स का कारोबार करने वाले इसका इस्तेमाल ज्यादा करते है. नशीली पदार्थो के कारोबारियों का आसान शिकार स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी बनते हैं. सिगरेट व नशा के अन्य साधन के माध्यम से किशोरों व युवाओं को नशे का आदि बनाया जाता है. नशे की लत लगने के बाद ड्रग्स के लिए युवा कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते है. मनोवै ज्ञान िक के अनुसार आज की युवा पीढ़ी भावनात्मक संकट के शिकार है जिसके कारन इन्हें ड्राग्स माफिया व दलाल आसानी से अपना शिकार बना लेते है. कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को सफलता की ऊँचाईयो पर देखना चाहते है. वे इसके लिए हर जतन करते भी है, लेकिन भावनात्मक सहयोग नहीं मिलने पर वे किसी ऐसे व्यक्ति के करीब जाना चाहते हैं, जो उन्हें समझ सके. इसी का फायदा ड्रग्स बेचनेवाले गिरोह के लोग उठाते लेते हैं. यानी वे ड्रग्स देकर उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं कि इससे उनका दर्द कम हो जायेगा. इस तरह युवा उनके बहकावे में आकर नशे का आदि बन जाता है उसके बाद वे जैसा चाहते है युवाओ को वैसा ही करना पड़ता है. कोलकाता के इकबालपुर, श्यामबाजार, रासबिहारी, बड़ाबाजार क्षेत्र में कई ऐसे लोगों को देखा गया, जो ड्रग्स के लिए भीख मांग रहे थे. जानकारों के अनुसार जब ड्रग्स के लिए रुपये नहीं जुटा पाते हैं, तो नशे का आदि युवा चोरी से लेकर बड़ा अपराध भी करने में कोई गुरेज नहीं करता है. उसका मनोभाव कुछ ऐसा हो जाता है कि उसे भीख मांगना भी गलत नहीं लगता. नशे की लत छुड़ाने के लिए परिजनों का सहयोग भी बेहद अहम् है. ड्रग्स की लत में फंसे व्यक्ति को कम से कम तीन से छह महीने पुनर्वास सेंटर में रहना आवश्यक होता है. मनोचिकित्सक की निगरानी व कुछ दवाइयों के द्वारा पीड़ित का इलाज किया जाता है. महानगर के गार्डेनरीच, मटियाबुर्ज, बेलियाघाटा, सियालदह व बालीगंज रेलवे स्टेशन के समीप, वाटगंज, साउथ पोर्ट, राजाबाजार, जोड़ासांको, गरियाहाट के गरचा तथा आसनसोल के रेलपार, हुसैनिया मोड़, लच्छीपुर, आसनसोल उत्तर इलाके समेत कई क्षेत्रो में ड्रग्स माफियो का जाल बिछा है. बताया जाता है कि एक पुड़िया ड्रग्स की कीमत 100 से 110 रुपये है. एक पुड़िया बेचने के एवज में बच्चों और महिलाओं को 20 से 30 रुपये बतौर कमीशन मिलते हैं. कुछ बच्चे अपने अभिभावक के कहने पर यह धंधा करते हैं, क्योंकि उन्हें रुपयों की जरूरत होती है. सूत्रों के अनुसार ड्रग्स बेचनेवाले गिरोह के लोगों को गिरफ्तार करने के लिए समय-समय पर पुलिस की ओर से विशेष अभियान चलाया जाता है. स्कूल-कॉलेज के आसपास भी पुलिस की कड़ी नजर रहती है. ड्रग्स बेचनेवालों की गिरफ्तारी के अलावा ड्रग्स के चंगुल में जकड़े लोगों की लत छुड़ाना भी महत्वपूर्ण है. इसके लिए पुलिस विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चलाती है. स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों को ड्रग्स से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जाता है. पुनर्वास सेंटर के जरिये कई लोगों की नशे की लत को छुड़ाना में पुलिस को सफलता मिली है. मनोवैज्ञानिको का मानना है कि चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन की तरह ही सिगरेट और शराब को भी ड्रग्स की श्रेणी में रखना उचित होगा. इसकी वजह से ही स्कूल-कॉलेज के काफी विद्यार्थी इसकी लत में पड़ जा रहे हैं और अपना भविष्य खतरे में डालते जा रहे है.