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कालाधन, कैशलेश समाज और सरकार के वो पचास दिन

7 दिसम्बर 2016

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featured image (जहाँगीर आलम) आसनसोल :- जब पूर्व प्रधानमंत्री ने चेतावनी दी तब वर्तमान गंभीर हुए और मुस्कुरा कर भोजन करने चले गये. एक ने कहा एक ने सुना और सदन रुक गया. 60 फीसदी ग्रामीण और 40 फीसदी शहर के झोपड़पट्टी में गुजर-बसर करने वालो पर कब किसी पीएम ने बात की है.भारत का सत्य यही है की कष्ट और नाजायज पैसो पर न्यूनतम की जिंदगी गुजर रही है. गाँव से लेकर शहर तक बिना चढ़ावे के कुछ भी तो संभव नहीं. यहाँ हरेक कार्य का शुल्क तय है. नोटबंदी को लेकर भले ही टोल फ्री कर दिए गए थे, लेकिन हरेक राज्य में पुलिसिया वसूली को कौन रोक सकता. यहाँ तो चेक, क्रेडिट कार्ड भी नहीं चलते सब नकदी में होता है. लेकिन किसी की क्या मजाल जो कोई नेता या मंत्री इसपर कुछ बोल जाए. नोटबंदी के बाद से सभी राजनितिक दल जनता की परेशानियों की दुहाई देते नहीं थक रहे है, चाहे वे आपस में मतभेद रखते हो. मतलब हरतरफ जनता के सरोकार की बातें हो रही है. लेकिन देश में संकट की बातें करने से हर कोई बच रहा है. जबकि यह नियम बनाते कौन है जिससे निजी स्कुल व अस्पताल चलाने वाले खरबोंपति हो जाते है, देश का प्रधानमंत्री रिजर्व बैंक का अधिकार तक छीन लेता है. जबकि इन धनकुबेरो के तार हर राजनितिक व सत्ता दल से जुड़े होते है. तो क्या पचास दिनों तक जनता को प्रताड़ित करने के बाद सच में देश का माहौल बदल जायेगा. यदि मोदी जी जनता को यकीं दिलाते है की हो जायेगा तब हर नागरिक तैयार है देश बदलने के लिए. लेकिन यह संभव नहीं है. वर्ष 1989 में ऐसे ही एक प्रधानमन्त्री उम्मीदवार कालेधन स्विस बैंक में होने की बात कही, जिसका जनता ने जोरदार स्वागत किया और बीपी सिंह प्रधानमंत्री बन गए. उन्होंने पहली बार बोफोर्स घोटाले की कमीशन का पैसा स्विस बैंक में होने की बात कही और जनता ने सोचा की यदि वे प्रधामंत्री बन गए तो सच में ऐसा हो जायेगा. लेकिन आश्चर्य है कि 25 वर्ष बाद वही डायलाग मोदी जी ने हर गली-मोहल्ले में बोलना शुरू किया. लोगो ने फिर तालियाँ बजायी और मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए. लेकिन वे यूटर्न लेते हुए देश में ही कालेधन तलाशने लगे. जिससे देश को चलाने वाली जड़े ही हिलने लगी.चूँकि राजनीति , कार्पोरेट घराने, बिल्डर आदि से ही देश की अर्थव्यवस्था जुडी हुई है. वही घोटाले, अवैध कारोबार, उग्रवाद तक की जड़े राजनितिक गलियारे से ही होकर गुजरती है. तो नोटबंदी से काली अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाने की परिभाषा थोड़ी अटपटी सी लगती है. कालेधन बनाने वाले धंधे डालर पर टिकी है और देश से अधिक विदेशो में यह ज्यादा सफल व आसानी से संचालित किया जाता है. जबकि 627 कालेधन के बैंक धारको की सूचि सर्वोच्चयन्यायलय को सौपी जा चुकी है लेकिन इसपर पूर्व या वर्तमान प्रधानमंत्री कार्यवाही करने में खुद को अक्षम महसूस कर रहे है. मोदी सरकार कालेधन का चेहरा बदलकर इनकम टेक्स पर ले गयी. जबकि देश में खनन की लुट से लेकर सरकारी नीतियों में घोटाले भी कालेधन की श्रेणी में आते है. नोटबंदी के बाद से मोदी सरकार के हर नेता व मंत्री संसद के बाहर और भीतर मनमोहन सरकार के दौरान किये गए घोटाले का जिक्र कर रहे है यदि इसपर ध्यान दिया जाए तो राजनितिक सत्ता ही कटघरे में खड़ी दिखेगी. जो सत्ता मिलने तक कालेधन स्विस बैंक में होने की बाते करते है और सत्ता हासिल होते ही खुद को लाचार-मजबूर बता कर जनता का ध्यान भटकाकर दुसरे मुद्दे पर ले जाती है.जब मुद्दा और हिस्सा दोनों कालाधन हो होगा तो कौन किसके पक्ष में कार्यवाही करेगा और जब कालेधन की पोषण शक्तियां राजनीति से मिलती हो तो आरोप-प्रत्यारोप बेमाने से लगते है. नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही सरकार के फैसले लगातार बदलते रहे है, जालीनोट, कालाधन व आतंकवाद जैसे मुद्दों के बाद अब कैशलेस समाज पर आकर खड़ी हो गयी है. फिलहाल देखे तो मोदी जी इवोल्यूशन के बजाय रिवोल्यूशन का रास्ता अख्तियार कर चुके है और जब इस रास्ते में सरकार आ ही गयी है तो क्या जिस तरह कैशलेस समाज की बात कही जा रही है उसका रास्ता कही वर्चुअल चुनाव से तो नहीं जुड़ता है. देखा जाए तो मोदी जिस तरह से मोबाईल और इंटरनेट के सहारे देश में कैशलेस समाज की स्थापना कर चाह रहे है, उससे यही जाहिर होता है की देश का भविष्य आने वाले समय में मोबाईल एप्लीकेशन का रहेगा. तो मोदी का अगला मन्त्र वर्चुअल चुनाव भी हो सकता है. वर्चुअल चुनाव से जनता और सरकार दोनों को राहत मिलेगी. जनता को कतारों में रहने का झंझट ख़त्म होगा, तो सरकार को फर्जी मतदान, ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप, पोलिंग स्टेशनों पर धमकाए जाने की समस्या और मतदाताओ को प्रभावित करने के लिए लाखों का खेल से छुटकारा मिल जायेगा. इस चुनावी प्रक्रिया से इंटरनेट और मोबाइल एप्लीकेशंस के जरिए आप अपने रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर या ईमेल या ऐसी ही किसी व्यवस्था से सीधे घर बैठे मतदान कर सकेगे और शायद मोदी जी अगले चुनाव में इसे लागु भी कर दे और चुनावी प्रचार में पावंदी लगाकर उसे सीधे इंटरनेट एप्लीकेशंस से ही जोड़ दिया जाए. जिससे काफी सुविधाए और मिल जाएगी. देश हाईटेक होगा तो जनता भी खुश और सरकार भी.

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चिरंजीव कुमार

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जितना लेख लिखने में दिमाग लगाया अगर उतना खुद प्रधानमंत्री बनके देश सेवा में लगाते तो हम ज्यादा खुश होते

4 जनवरी 2017

आलोक सिन्हा

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बहुत अच्छा लेख है आपका |

17 दिसम्बर 2016

प्रदीपः

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कहीं हम बेवकूफ तो नहीं बन रहे इस सिलसले में

11 दिसम्बर 2016

प्रदीपः

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कहीं हम बेवकूफ तो नहीं बन

11 दिसम्बर 2016

प्रदीपः

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11 दिसम्बर 2016

मिताली गोयल

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आलम भाईआपने सही कहा यहाँ गाड़ी बिना पैसे के आगे बढ़ती ही नहीं ये देश का दुर्भाग्य हैं हाँ एक बात तो हैं मोदी जी ने एक ठोश कदम लिया पर तैयारियां अब अधूरी नगर आने लगी हैं ,सरकारी विभाग वाकई मत पूछो( बैंक) ...... अब क्या कहे.......... आपके इस लेख के लिए साधु वाद

9 दिसम्बर 2016

जहाँगीर आलम

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धन्यावाद

9 दिसम्बर 2016

रवि कुमार

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काफी सही और ज्ञानवर्धक बात कही

8 दिसम्बर 2016

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शहर बदल

5 अक्टूबर 2016
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जहाँगीर आलम:-शहर का अपना मिजाज होता है, यहाँ के लोगो की जीवन शैली भी अलग होती है. हर बात में दिखावा झलकता है, हर किसी को एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ मची रहती है. ऐसा ही हो रहा है अपने शहर आसनसोल में. इसके फिजा, हवा में बदलाव आने लगे है. शहर आसनसोल शादियों पुराना शहर, विश्वभर के लोग जानते है इस शहर

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सूबा, सरकार और दरकार.....

8 नवम्बर 2016
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आसनसोल (जहाँगीर नेमतपुरी) :- कहा जाता है, जो दिखता है वहीआकडा होता है. हुक्मरान तो कुछ भी कह देते है और उसे आज़ादी भी है. मगर सच्चाई कीलकीर सिर्फ कह देना ही नहीं होता है. क्योकि आकडे, स्थिति,तस्वीर और वर्तमान भी बोलती रहती है. जी हाँ कुछ ऐसी ही स्थितितस्वीर और आकड़ो से हमारा देश गुजर रहा है. मगर अफ़सोस

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नाकाम सरकार को युवा देशभक्ति की दरकार

8 नवम्बर 2016
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वर्तमान परिपेक्ष में देशभक्ति का सही परिभाषा बदलने की कोशिश की जा रही है. परिभाषा से छेड़छाड़ कही देश में उन्माद न पैदा कर दे...आसनसोल (जहाँगीर नेमतपुरी) :- किसी ने कहा है कि हर मर्ज की दवा होती है, मगर इस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता है. हमारा मुल्क कुछ ऐसी ही बिमारियों मे

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सियासत, समाजवाद और सत्ता

26 नवम्बर 2016
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- जिस प्रधानमंत्री का मुद्दा शुरूआती दौर से ही गरीबी और विकास की रही हो, उस प्रधानमंत्री के ऐसे फैसले पर आश्चर्य कैसा? लेकिन सवाल तो उठते थे और उठते रहेंगे. ये बात और है की सरकारे अपने कार्यकाल के दौरान गरीबो और ग्रामी

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कालाधन, कैशलेश समाज और सरकार के वो पचास दिन

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(जहाँगीर आलम) आसनसोल :- जब पूर्व प्रधानमंत्री ने चेतावनी दी तब वर्तमान गंभीर हुए और मुस्कुरा कर भोजन करने चले गये. एक ने कहा एक ने सुना और सदन रुक गया. 60 फीसदी ग्रामीण और 40 फीसदी शहर के झोपड़पट्टी में गुजर-बसर करने वालो पर कब किसी पीएम ने बात की है.भारत का सत्य यही है की कष्ट और नाजायज पैसो पर न्य

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राजनीति, भ्रष्टाचार का पालनहार

19 दिसम्बर 2016
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- सवाल तो देश में आज भी वही है जो आजादी के बाद रहे थे. शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार आदि जैसे अहम् विषयो से देश आज तक आगे नहीं बढ़ पाया है. हाँ इन बीते दशको में देश की जनसंख्या जरुर बढ़ी है. लेकिन समस्या जस की तस ही रही. यानी कह सकते है की सात दशक पहले जिस त

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पचास दिनों के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं

31 दिसम्बर 2016
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आसनसोल ( जहाँगीर आलम) ) :- दुकाने सजी है और उनमे जरुरत के सामान भी उपलब्ध है, पर्यटकों की संख्या में भी कोई खासा कमी नहीं है. लेकिन इन सबो के बावजूद ग्राहक नहीं दिख रहे. ये हालात है, झारखण्ड-बंगाल की सीमा पर स्थित एक मात्र पर्यटक स्थल मैथन डैम की. जहाँ लोगो की भीड़ तो है

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...तो यह सिलसिला जारी रहेगा और मरने वाले मजदुर ही होंगे

10 जनवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- ईसीएल की राजमहल परियोजना की त्रासदी ने कई जिंदगियां निगल ली. लेकिन एक सवाल सबके जेहन में छोड़ गयी की आखिर इसका जिम्मेवार कौन है? आखिर इतनी मौतों का सौदागर कौन है? किसने चंद रुपयों की लालच में लाशो का सौदा कर दिया? ईसीएल में सक्रीय सभी श्रमिक संग

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तीन तालाक का फायदा अब तो महिलाये भी उठाने लगी

16 जनवरी 2017
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आसनसोल (जहांगीर आलम) :- केंद्र सरकार ने हाल ही में तीन तालाक का मुद्दा उठाते हुए यह दलील दी थी की शरियत के इस फैसले से मुस्लिम समुदाय की महिलाये पीड़ित है, उनका वैवाहिक अधीकारो का हनन हो रहा है. मुस्लिम पुरुष तीन तालक का फायदा उठाते हुए कभ

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खोखले सिस्टम की भेट चढ़ गयी कई मासूम जिन्दगियां

21 जनवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- सुबह का अलार्म बजते ही माएं झट से उठ जाती है, क्योकि रात में ही उसने अलार्म सेट किये होती है कि सुबह कही देर ना हो जाए, उठने में और उसके लाडले को स्कुल जाने में. जब सुबह उठकर माएं अपने बच्चो के लिए टिफिन का इन्तेजाम

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विदया की मंडी में तब्दील होता विदया का मंदिर

2 फरवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- बच्चो का इम्तेहान ख़त्म और अभिभावकों की अग्नि परीक्षा शुरू हो गयी. तक़रीबन सभी अभिभावक इसी जद्दोजहद में लगे दिख रहे कि उनके बच्चे का एडमिशन भी एक अच्छे स्कुल में हो जाए. इनमे से कई नए नव

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देश की भविष्य के साथ खिलवाड़, पड़ेगा मंहगा

8 फरवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- ये बच्चे ही हमारे देश की भविष्य हैं और इन्ही पर भविष्य में देश की उन्नति निर्भर है. लेकिन आज देश के इन भविष्यो के साथ खिलवाड़ कर हम अपने देश को ही कमजोर करने की भरपूर चेष्टा में लगे है. जिसका परिणाम भी हमें ही भुगतना होगा. इन्हें सम्पूर्ण रूप से शिक्षित बनाना सिर्फ अभिभावकों क

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स्कुल-कॉलेज के विधार्थी है इनके सॉफ्ट टार्गेट

14 फरवरी 2017
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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- नशा हमारे परिवार, समाज और देश के लिए दीमक की तरह है, इसकी जद में ज्यादातर युवा पीढ़ी रहते है. इसके कारोबारी भी स्कुल-कालेजो को सबसे आसान जरिया मानते है. इसके लिय वे लोग अपने दलालों को इन जगहों पर सक्रीय कर देते है. लेकिन उन्हें नहीं मालूम की वे

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जिला अस्पताल के समुचित लाभ में सड़क जाम बना रोड़ा

19 फरवरी 2017
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आसनसोल (जहांगीर आलम ) :- वर्ष 2011 में 34 वर्षो की वाम सरकार को पछाड़ते हुए तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की सत्ता में अपना कब्ज़ा ज़माया. जिसके बाद जनता के अनुरूप ही तृणमूल ने राज्य समेत आसनसोल में कई विकासमूलक कार्य किये और अबतक जारी है. तृणमूल की ममता सरकार ने सर्वाधिक

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सिर्फ एक दिन, एक दिवस, नहीं बल्कि हर पल, हर समय महिलाओ को दे सम्मान

10 मार्च 2017
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सिर्फ एक दिन, एक दिवस नहीं बल्कि हर पल, हर समय महिलाओं को दे सम्मान आसनसोल (जहांगीर आलम) :- आज विश्व भर में महिलाओ को सम्मान देने के मकसद से महिला दिवस का पालन किया जा रहा है. इसी क्रम में आसनसोल शहर के विभिन्न स्थानों व संस्थानों में भी महिला दिवस मनाया गया. लेकिन क्या

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होली के रंग में रची-बसी भारतीय राजनीति

10 मार्च 2017
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होली के रंगों में रची-बसी भारतीय राजनीति आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- भारत विविधताओं का देश है, जो इन्द्रधनुष की भाँती कई धर्मो, अनेक सभ्यता-संस्कृति का बेजोड़ नमूना पेश करता है. अनेको धर्म, सैकड़ो त्यौहार, अनगिनत जातियों से लैस हमारा देश पूरी दुनियां में अपना मिशाल कायम करता है

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एक दूसरे पर लगाते रहेंगे आरोप-प्रत्यारोप

22 मार्च 2017
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जहाँगीर आलम (आसनसोल) :- गोवा में 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को दुबारा मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला है. जबकि चुनाव में सबसे अधिक सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी को यहां विपक्ष में बैठना पड़ रहा है. वही पूर्वोत्तर के राज्य मण

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पानी के लिए बह रहे पानी की तरह पैसे

22 मार्च 2017
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जल समस्या से निजात, आवंटित हुए 225 करोड़ रूपए . 20 मार्च 2017 सोमवार का दिन कुल्टी वासियों के लिए खुशियों भरा शौगात लेकर आया. दशको से पीने की पानी का दंश झेल रहे इस इलाके के लाखो लोगो को अब पानी मयस्सर हो पायेगी. इसकी घोषणा कुल्टी बोरो कार्य

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डीवीसी-नागरानी या राजकुमार

23 मार्च 2017
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जहाँगीर आलम (आसनसोल) :- पश्चिम बंगाल के कल्यानेश्वरी मंदिर के निकट मार्किट कॉम्प्लेक्स डीवीसी की जमीन पर आसनसोल नगर निगम द्वरा अवैध कब्जा कर शोचालय निर्माण का मामला शांत भी नहीं हुवा था कि उक्त जमींन पर एक और दावेदार सामने आकर सबको अचंभित कर दिया. ऐसे में आसनसोल नगर निग

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अस्तित्व में आया राज्य का 23 वां जिला "पश्चिम बर्दवान"

9 अप्रैल 2017
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आसनसोल :- दशको से शहरवासियो की मनोकामना व मांग शुक्रवार को पूर्ण हो गई. आसनसोल के पुलिस लाइन मैदान से शुक्रवार की दोपहर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आसनसोल एवं दुर्गापुर को मिलाकर व बर्धमान जिला के दो भाग करके पश्चिम बर्दवान नाम से नए जिले की घोषणा की. जिससे राज्य

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क्या पहचान हो हमारी

9 अप्रैल 2017
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“मेरा खजूर-बताशा तुम्हारा पहचान बन गया || चाँद मेरा और सूरज तुम्हारा पहचान बन गया || चले थे कहकर सबका साथ-सबका विकास करेंगे, मगर हरा और गेडुआ हमारा पहचान बन गया” || --------------------------------------- “एक दुसरे को जलील करना हमारा शान बन गया || जानवर के वास्ते इं

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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता

4 मई 2017
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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता हैजहाँगीर आलम :- स्वच्छ-सुन्दर और उत्तम समाज की कल्पना की चाह बगैर स्त्री के मुमकिन नहीं, स्त्रियों की बलिदान-योगदान को परिभाषित करना संभव भी नहीं है.सुंदर स्त्री हर माईने में समाज के लिए आदर्श स्वरूप है, जिसे आसानी के साथ देख

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तीसरी कड़ी का वर्चस्व

4 मई 2017
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तीसरी कड़ी का वर्चस्व वर्तमान समय में अख़बार भी लोगो की रोजमर्रा की दिनचर्या में शामिल है, अधिकांश लोग सुबह-सुबह अख़बार पढ़ना पसंद करते है. कई लोग पूरी दिलचस्पी के साथ हर खबर को गंभीरता से पढ़ते है, तो कुछ लोग हेड लाईन पढ़कर ही संतुष्ट रहते है. चूँकि अखबारों में देश-विदेश से ले

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कौन होगा अगला पीएम

22 जून 2018
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इन चार वर्षो के दौरान कई राज्यों में विभिन्न चुनाव हो गये. कही भाजपा ने बहुमत पाई तो कही बिना बहुमत के ही जोड़तोड़ कर सरकार बनाई. लेकिन सबसे अहम् वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव होगा और सभी की निगाहे अबकी बनने वाली सरकार और प्रधानमंत्री पर टिकी है. शायद इसबार भाजपा की सरकार और मो

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