(जहाँगीर आलम) आसनसोल :- जब पूर्व प्रधानमंत्री ने चेतावनी दी तब वर्तमान गंभीर हुए और मुस्कुरा कर भोजन करने चले गये. एक ने कहा एक ने सुना और सदन रुक गया. 60 फीसदी ग्रामीण और 40 फीसदी शहर के झोपड़पट्टी में गुजर-बसर करने वालो पर कब किसी पीएम ने बात की है.भारत का सत्य यही है की कष्ट और नाजायज पैसो पर न्यूनतम की जिंदगी गुजर रही है. गाँव से लेकर शहर तक बिना चढ़ावे के कुछ भी तो संभव नहीं. यहाँ हरेक कार्य का शुल्क तय है. नोटबंदी को लेकर भले ही टोल फ्री कर दिए गए थे, लेकिन हरेक राज्य में पुलिसिया वसूली को कौन रोक सकता. यहाँ तो चेक, क्रेडिट कार्ड भी नहीं चलते सब नकदी में होता है. लेकिन किसी की क्या मजाल जो कोई नेता या मंत्री इसपर कुछ बोल जाए. नोटबंदी के बाद से सभी राजनितिक दल जनता की परेशानियों की दुहाई देते नहीं थक रहे है, चाहे वे आपस में मतभेद रखते हो. मतलब हरतरफ जनता के सरोकार की बातें हो रही है. लेकिन देश में संकट की बातें करने से हर कोई बच रहा है. जबकि यह नियम बनाते कौन है जिससे निजी स्कुल व अस्पताल चलाने वाले खरबोंपति हो जाते है, देश का प्रधानमंत्री रिजर्व बैंक का अधिकार तक छीन लेता है. जबकि इन धनकुबेरो के तार हर राजनितिक व सत्ता दल से जुड़े होते है. तो क्या पचास दिनों तक जनता को प्रताड़ित करने के बाद सच में देश का माहौल बदल जायेगा. यदि मोदी जी जनता को यकीं दिलाते है की हो जायेगा तब हर नागरिक तैयार है देश बदलने के लिए. लेकिन यह संभव नहीं है. वर्ष 1989 में ऐसे ही एक प्रधानमन्त्री उम्मीदवार कालेधन स्विस बैंक में होने की बात कही, जिसका जनता ने जोरदार स्वागत किया और बीपी सिंह प्रधानमंत्री बन गए. उन्होंने पहली बार बोफोर्स घोटाले की कमीशन का पैसा स्विस बैंक में होने की बात कही और जनता ने सोचा की यदि वे प्रधामंत्री बन गए तो सच में ऐसा हो जायेगा. लेकिन आश्चर्य है कि 25 वर्ष बाद वही डायलाग मोदी जी ने हर गली-मोहल्ले में बोलना शुरू किया. लोगो ने फिर तालियाँ बजायी और मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए. लेकिन वे यूटर्न लेते हुए देश में ही कालेधन तलाशने लगे. जिससे देश को चलाने वाली जड़े ही हिलने लगी.चूँकि
राजनीति , कार्पोरेट घराने, बिल्डर आदि से ही देश की अर्थव्यवस्था जुडी हुई है. वही घोटाले, अवैध कारोबार, उग्रवाद तक की जड़े राजनितिक गलियारे से ही होकर गुजरती है. तो नोटबंदी से काली अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाने की परिभाषा थोड़ी अटपटी सी लगती है. कालेधन बनाने वाले धंधे डालर पर टिकी है और देश से अधिक विदेशो में यह ज्यादा सफल व आसानी से संचालित किया जाता है. जबकि 627 कालेधन के बैंक धारको की सूचि सर्वोच्चयन्यायलय को सौपी जा चुकी है लेकिन इसपर पूर्व या वर्तमान प्रधानमंत्री कार्यवाही करने में खुद को अक्षम महसूस कर रहे है. मोदी सरकार कालेधन का चेहरा बदलकर इनकम टेक्स पर ले गयी. जबकि देश में खनन की लुट से लेकर सरकारी नीतियों में घोटाले भी कालेधन की श्रेणी में आते है. नोटबंदी के बाद से मोदी सरकार के हर नेता व मंत्री संसद के बाहर और भीतर मनमोहन सरकार के दौरान किये गए घोटाले का जिक्र कर रहे है यदि इसपर ध्यान दिया जाए तो राजनितिक सत्ता ही कटघरे में खड़ी दिखेगी. जो सत्ता मिलने तक कालेधन स्विस बैंक में होने की बाते करते है और सत्ता हासिल होते ही खुद को लाचार-मजबूर बता कर जनता का ध्यान भटकाकर दुसरे मुद्दे पर ले जाती है.जब मुद्दा और हिस्सा दोनों कालाधन हो होगा तो कौन किसके पक्ष में कार्यवाही करेगा और जब कालेधन की पोषण शक्तियां राजनीति से मिलती हो तो आरोप-प्रत्यारोप बेमाने से लगते है. नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही सरकार के फैसले लगातार बदलते रहे है, जालीनोट, कालाधन व आतंकवाद जैसे मुद्दों के बाद अब कैशलेस समाज पर आकर खड़ी हो गयी है. फिलहाल देखे तो मोदी जी इवोल्यूशन के बजाय रिवोल्यूशन का रास्ता अख्तियार कर चुके है और जब इस रास्ते में सरकार आ ही गयी है तो क्या जिस तरह कैशलेस समाज की बात कही जा रही है उसका रास्ता कही वर्चुअल चुनाव से तो नहीं जुड़ता है. देखा जाए तो मोदी जिस तरह से मोबाईल और इंटरनेट के सहारे देश में कैशलेस समाज की स्थापना कर चाह रहे है, उससे यही जाहिर होता है की देश का भविष्य आने वाले समय में मोबाईल एप्लीकेशन का रहेगा. तो मोदी का अगला मन्त्र वर्चुअल चुनाव भी हो सकता है. वर्चुअल चुनाव से जनता और सरकार दोनों को राहत मिलेगी. जनता को कतारों में रहने का झंझट ख़त्म होगा, तो सरकार को फर्जी मतदान, ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप, पोलिंग स्टेशनों पर धमकाए जाने की समस्या और मतदाताओ को प्रभावित करने के लिए लाखों का
खेल से छुटकारा मिल जायेगा. इस चुनावी प्रक्रिया से इंटरनेट और मोबाइल एप्लीकेशंस के जरिए आप अपने रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर या ईमेल या ऐसी ही किसी व्यवस्था से सीधे घर बैठे मतदान कर सकेगे और शायद मोदी जी अगले चुनाव में इसे लागु भी कर दे और चुनावी प्रचार में पावंदी लगाकर उसे सीधे इंटरनेट एप्लीकेशंस से ही जोड़ दिया जाए. जिससे काफी सुविधाए और मिल जाएगी. देश हाईटेक होगा तो जनता भी खुश और सरकार भी.