आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- सुबह का अलार्म बजते ही माएं झट से उठ जाती है, क्योकि रात में ही उसने अलार्म सेट किये होती है कि सुबह कही देर ना हो जाए, उठने में और उसके लाडले को स्कुल जाने में. जब सुबह उठकर माएं अपने बच्चो के लिए टिफिन का इन्तेजाम करती है, तो पिता बच्चो को ड्रेस पहनाने और टाई लगाने में व्यस्त रहते है और पूरा ख्याल रखते है कि उनके लाडले का कुछ छुट ना जाये. सारी तैयारी पूरी करके जल्दी-जल्दी बस स्टॉप तक जाते है और बस का इन्तेजार करते है. जैसे ही बस आती है उसपर अपने लाडले को बेहद एहतियात से चढ़ा कर घर आ जाते है. लेकिन कुछ ही देर में दिल दहला देने वाली खबर सुनाई पड़ती है, कि उस बस का दुर्घटना हो गया है, जिसपर उन्होंने अपने लाडले को छोड़कर आये थे और जैसे-तैसे, गिरते-भागते वहां पहुंचते है. जहाँ का मंजर जहन्नम से भी खौफनाक होता है, उनके लाडले का ड्रेस, टाई, टिफिन, किताबो के रूप में बस्ते में रखे उनके सपने और उनका लाडला सभी सड़क पर बिखरे मिलते है. वे बच्चे जो देश की भविष्य थे. जिन्होंने अभी ठीक से दुनिया भी नहीं देखि थी. उन्हें क्या पता था कि जो ज्ञान उन्हें स्कुल के किताबो में पढाया जाता है, उसका ठीक विपरीत देश का सिस्टम है. क्योकि जीस बस में बच्चे जा रहे थे उसका परमिट नहीं था. जो ट्रक बस से टकराई वो अवैध बालू लादे सड़क पर सरपट दौड़ रही थी. स्कूल बंद करने के आदेश के बावजूद स्कुल चालु थे और जिसमे वे पढ़ने जा रहे थे उस स्कुल का मान्यता भी नही थी और जहाँ यह घटना घटी उस गाँव में अस्पताल भी नहीं है. तो क्या इन बच्चो के मौत की जिम्मेवार हमारी सिस्टम नहीं है? क्योकि इसी सिस्टम में कमजोरी के कारन आज देश भर में निजी स्कुल कुकरमुत्ते की तरह पनप गए है. और निजी स्कुलो को तो सिर्फ मुनाफे से मतलब होता है. इसी खोटे सिस्टम की वजह से स्कूली बसे बिना परमिट के घुस देकर चलते है, तो अवैध बालू लदी वाहने घुस देकर सड़को पर पागल कुत्ते की तरह दौड़ती है और दुर्घटना के बाद अस्पताल भी नसीब नहीं होती. तो यह हादसा नहीं बल्कि सिस्टम द्वारा किया गया मासूमो का मर्डर है. देशभर में कई ऐसी स्कूले बिना मन्यता और वैध अनुमति के धड़ल्ले से संचालित हो रहे है. सरकारी स्कुलो में तो कही-कही बलैक बोर्ड भी नहीं दिखती और अशिक्षित शिक्षक मिल जाते है. सड़को पर हमारी सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात रहती है, जो इन मौत के वाहनों को अवैध वसूली कर हमपर ही छोड़ देती है. वही बिना परमिट के स्कूली बसे बेरोक-टोक चल रही है. और यह भी सच है कि एक निजी स्कुल खोलने के लिए जिन-जिन विभागों की अनुमति लेनी पड़ती है, उसके एवज में स्कुल प्रबंधन अधिकारयो, पुलिस-प्रशासन से लेकर नेताओं तक को लाखो का रिश्वत देते है, जबकि उससे कही अधिक कम खर्चे में सरकारी स्कुल खोले जा सकते है. तो इन बच्चो के मौत के पीछे कौन गुनाहगार है यह अब बताने की आवश्यकता नहीं. एटा के अलीगंज के असदपुर गाँव में हादसे के दौरान जिन 25 बच्चो की जाने गयी उसपर कौन सा सिस्टम और सरकार मातम मना रही है, यह विचारने का समय है या फिर अपने बच्चो की बारी आने का इन्तेजार करने के आलावा हमारे पास और कोई दूसरा विकल्प नही बचता है.