आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- ईसीएल की राजमहल परियोजना की त्रासदी ने कई जिंदगियां निगल ली. लेकिन एक सवाल सबके जेहन में छोड़ गयी की आखिर इसका जिम्मेवार कौन है? आखिर इतनी मौतों का सौदागर कौन है? किसने चंद रुपयों की लालच में लाशो का सौदा कर दिया? ईसीएल में सक्रीय सभी श्रमिक संगठनो इसकी जांच सीबीआई से कराने की मांग की है, वही यह सवाल अपने आप में इसलिय महत्व रखता है, क्योंकि राजमहल त्रासदी भारत की ओपन कोलमाईन्स की सबसे बड़ी त्रासदी है और इतने दिन बीत जाने के वावजूद कोई कार्यवाई होता नहीं दिखा. यहाँ तक की अब रेस्क्यू टीम भी सुस्त दिख रही है. जिसे आप "ऊंट के मुह में जीरा का फोरन कह सकते"इस हादसे में तकरीबन 93 लोग दबे हैं जिनमे 18 की लाश की पुष्टि की गई अब बिजली की समस्या को देखते हुए ब्लैक आउट का डर दिखाकर रेस्क्यू भी स्थिर कर दी गई. जहाँ लाशें दफन थी वहां फोरलेन सड़क बन चूका है, एनडीआरएफ की टीम भी आई लेकिन सिर्फ लाशें ढोने के लिए क्योंकि इन एनडीआरएफ वाले को सिर्फ बाढ़ से निपटने का अनुभव ही था ,इस परिस्थियों से निपटने के लिए भारत सरकार को क्या मुक्कमल रेस्क्यू की व्यवस्था करनी थी ये तो सरकार ही जाने. लेकिन दफन जिंदगी आज भी चीख रही है, उस काले हीरे की कोख में की आखिर मेरी मौत का सौदागर कौन ?घटना से पहले भी मजदूरों द्वारा काम को रोकने की सलाह दी गई थी. वावजूद डर देकर काम कराया गया. इस घटना के ठीक तीन दिन पहले ईसीएल सीएमडी ने निरक्षण किया था फिर उनके द्वारा क्लीन चिट कैसे दे दी गयी. पी.एम.ओ से लेकर डीजीएमएस तक आशुतोष चक्रवर्ती ने पत्र लिखकर खतरे से आगाह किया था. इसपर डीजीएमएस के द्वारा पत्र के जवाब में यह कहा गया था कि यह यह तथ्य विहीन है. खदान पूरी तरह सुरक्षित है. और तो और खदान को 2015 से पर्यावरण नियंत्रण से अनापत्ति प्रमाण पत्र भी प्राप्त नही है. वही जब घटना घट चुकी है तो अधिकारी से लेकर मंत्रीयो तक सिर्फ एक ही आश्वासन मिलता दिख रहा है कि जांच चल रही है दोषियों को बक्शा नहीं जायेगा. उनपर शख्त कार्यवाई होगी. इसके अलावा कुछ भी कहने से मुकर रहे हैं. सरकार संवेदना देकर मुवावजे में कुछ पैसे की घोषणा भले ही कर दे लेकिन सरकार को चाहिये कि उन परिवारों को जिनका बेटा,पति,भाई इसमें दफन हो गया है उसे उसकी अस्थि भी मिल जाए ,बाहर से जो भी हो लेकिन पर्दे के पीछे भी एक अलग खेल खेला जा रहा है. इसे आप रंगीन या हंसीन भी कह सकते हैं. बाहर लोग मातम मना रहे हैं और अंदर के गलियारे यानि ईसीएल के आला अधिकारियों में लजीज व्यंजन के साथ विदेशी कीमती शराब की मांग पर मांग बढ़ रही है. मंत्री सवालों से भाग रहे हैं और मजदूर कराह रहा है. ईसीएल अधिकारी मस्ती में हैं और प्रशासन आदेश का इंतिजार कर रही है. वही इसके खिलाडी इस खेल को "मैनेज" नाम दिया है. इतनी बड़ी त्रासदी पर कुछ लोग भी पहले हरकत में आये थे. अपनी भूमिका बाँधी थी. पर ईसीएल प्रबंधन ने इस खेल में सबको लाइन पर लाकर खड़ा कर दी है और सरकार चुप्पी साधे है? सवाल यह है कि क्या मजदूरों के जान की कीमत ऐसे ही लगती रहेगी और शासन-प्राशासन तमाशबीन बने देखते रहेंगे या न्याय भी होगा. इतिहास के पन्नो में यह त्रासदी मौत की आउटसोर्सिंग नाम से जानी जाएगी. लेकिन जवाब आज भी नदारत है उस सवालों का की मौत का सौदागर कौन है? इन सवालों के जवाब ढूंढने में सरकार को कई वर्ष भी लग सकते हैं, क्योंकि इसके बाद की कहानी कुछ ऐसे ही चलती रहेगी. जाँच टीम की अलग-अलग टुकड़ी मुआयना करेगी. फिर ज्यादा दवाब आने पर इसे सीबीआई जांच का आदेश देकर अपना पल्ला झाड़ लेगी और फिर अंततः सिर्फ कागजों पर दब कर रह जायेगी यह काला अध्याय, और फिर शुरू होगा संवेदना और श्रद्धाजंलि जिसे मोमबत्ती जला कर शांत कर दिया जायेगा. लेकिन न ही गगन के पिता को उनके पुत्र की अस्थि मिलेगी और न ही उन परिजनों के आत्मा को शांति जिन्होंने अपना सबकुछ लूटा दिया इस खदान में. अब यह भी देखना है कि परिजनों को भी खदान तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है या वो भी इस रंगीन दुनियां के हंसीन शाम के लपेटे में आकर अपने भवनाओं का भूर्ण हत्या कर दे रहे हैं. यह त्रासदी जितनी बड़ी है उससे भी बड़े खेल ईसीएल के अधिकारी अंदर बैठे खेल रहे हैं. जहाँ मालिक ही मजदूरो की परवाह नहीं करे तो उस मजदुर की जिंदगी ईश्वर भरोसे ही चलती है. घटनाये तो पूर्वकालिन है, लेकिन यही रवैया रहा तो आगे भी सिलसिला जारी रहेगा और मरने वाले मजदुर ही होंगे.