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विदया की मंडी में तब्दील होता विदया का मंदिर

2 फरवरी 2017

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आसनसोल (जहाँगीर आलम) :- बच्चो का इम्तेहान ख़त्म और अभिभावकों की अग्नि परीक्षा शुरू हो गयी. तक़रीबन सभी अभिभावक इसी जद्दोजहद में लगे दिख रहे कि उनके बच्चे का एडमिशन भी एक अच्छे स्कुल में हो जाए. इनमे से कई नए नवेले बालक भी है, जिनकी प्रारंभिक शिक्षा का इन्तेजाम उनके अभिभावक करने में जुट गए है. रोज सुबह-सवेरे स्कुलो के दर पर अभिभावकों की हाजरी लग रही है, लम्बी-लम्बी कतारों में खड़े ये अपने बच्चे की भविष्य को लेकर गंभीर भी दिख रहे है. इन निजी स्कुल प्रबंधनो की लोकलुभावने स्कीमे आकर्षित तो कर रही है, लेकिन इनके डोनेशन राशि सुनकर अभिभावकों को चक्कर आने लगते है. जिसके बाद एक नयी उम्मीद लेकर दूसरी स्कुल के तरफ कदम अपने आप बढ़ने लगते है. लेकिन दुसरे स्कुल वाले क्या बेवकूफ है, जो बिना डोनेशन और कम मासिक शुल्क में आपके बच्चे को शिक्षा देंगे. आखिर करोडो खर्च किये है तब जाकर इतना आलीशान स्कुल का निर्माण हो पाया है, कोई मजाक तो नहीं कि आप मुह उठाये चले गए और बच्चे का एडमिशन करवा लिया. दरअसल आज यह दृश्य पुरे देश की है . लेकिन इससे आसनसोल भी अछूता नहीं है. यहाँ छोटे-बड़े सैकड़ो निजी विधालय है, जो सरकारी स्कूली शिक्षा प्रणाली की देन ब्यान करते है. ये दर्शाते है कि सरकार की सारी योजनाये इनके आगे विफल है. सरकार शिक्षा का अधिकार की बात तो करती है, लेकिन यह धरातल पर कैसे पहुंचे इसका कोई उपाय सरकार के पास भी नहीं है. सरकार की इसी नाकामी का फायदा ये निजी स्कुल संचालक आसानी से उठा पा रहे है, जिसका खामियाजा आज हर वर्ग के अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है. सूत्रों के अनुसार आसनसोल के कई नामी-गिरामी स्कुलो में इन दिनों बच्चो के नामांकन के लिए डोनेशन के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम की रिश्वत खुलेआम ली जा रही है. जो सक्षम है वो थोड़ी बहुत कम बेसी करवाकर इस झंझट से मुक्ति पा ले रहे है, लेकिन ऐसे लोग तो गिनती के है और बाकियों का क्या होगा? जो सक्षम नहीं है, उनके बच्चे को अच्छी शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं है. केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए नोटबंदी का सहारा लिया लेकिन आज इन निजी स्कुलो की हरकत देखकर लगता है कि भ्रष्टाचार की जड़े इतनी मजबूत है कि उन्हें हिला पाना भी नामुमकिन सा लगता है. श्वेत पत्र के संवादाता जब इन विषयो की पड़ताल में निकले तो पाया की लगभग सभी निजी स्कुलो में डोनेशन खुलेआम मांगी जा रही है. स्कुलो की ब्रांडिंग के अनुसार यह रकम दो हजार रुपय से लेकर तीस हजार रूपए तक की है. उसपर भी सालाना शुल्क हजारो रूपए में है. वही मासिक शुल्क भी अपने मन मुताबिक तय कर रखी है. इसी क्रम में आसनसोल एडीडीए स्थित नारायणा स्कुल में बाकायदा पूरी लिस्ट बनी हुई है, जिसपर अंकित है कि एडमिशन शुल्क 26,000 रूपए, सालाना शुल्क 15,000 रूपए, मासिक शुल्क 2200 रूपए (तीसरी वर्ग के लिए) बाकी क्लास अनुसार है. यही हाल तक़रीबन सभी निजी स्कुलो में है. लेकिन जब नारायणा स्कुल के अधिकारी से पूछा गया की इतनी भारी रकम किस बात के लिए लिया जा रहा है, तो गोलमोल जवाब देकर, कुछ रकम कम करने की बात कही गई. इस विषय पर रानीगंज मारवाड़ी महिला सम्मलेन की मंजू गुप्ता ने अपने विचार रखते हुए कहे कि निजी स्कूली की मनमानी सीमा पार कर गयी है. अभिभावकों का शोषण किया जा रहा है. वही शहर के कई स्कुल है जो सीबीएससी की मानकता भी पूरी नहीं करती है, कुछ स्कुलो का निर्माण भी अवैध है. जिससे बच्चो को आने वाले दिनों में जान का भी खतरा हो सकता है. उन्होंने कहा कि यह समस्या सरकारी स्कुलो की नाकामी से उतपन्न हुई है, यदि सरकार बातो से ज्यादा शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने व सरकारी स्कुलो को बेहतर करने में ध्यान देती है तो शायद इसपर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है. मंजू गुप्ता ने बताया कि निजी स्कुलो में किताबो का चुनाव भी सीबीएसई प्रणाली से अलग है. हर वर्ष किताबो को बदल दिया जाता है, जो बिकुल अनैतिक है. अपने मन मुताबिक निजी स्कुल किताबो का चयन करते है और फिर अपने प्रकासको से प्रकाशित करवा कर अपने हिसाब के किताब दुकानों में रखवाते है. यानी यह सारा खेल मोटी कमाई का है, जबकि कुछ किताबो से ही बच्चो की पढाई करवाई जा सकती है. अधिक किताबो के कारन बच्चो पर बोझ भी बढ़ता है, जिससे आगे चलकर बच्चो को पीठ की समस्या हो सकती है. लेकिन इस ओर शासन-प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है. उन्होंने बताया कि आसनसोल के कई निजी स्कुलो में प्राइवेट ट्यूशन भी दिए जा रहे है, जो अभिभावकों की जेबों पर अतिरिक्त भार पैदा करते है. यदि सरकार इसपर विशेष ध्यान नहीं देती है तो वो दिन दूर नही जब ये शिक्षा की मंदिर शिक्षा की मंडी कहलाने लगेगी. आज शिक्षा की देवी माँ सरस्वती की पूजा सभी स्कुलो में की जा रही है, कल से फिर इन्ही स्कुलो में शिक्षा का सौदा शुरू हो जायेगा.

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सुंदर स्त्री की पारदर्शिता ही समाज की आदर्शता हैजहाँगीर आलम :- स्वच्छ-सुन्दर और उत्तम समाज की कल्पना की चाह बगैर स्त्री के मुमकिन नहीं, स्त्रियों की बलिदान-योगदान को परिभाषित करना संभव भी नहीं है.सुंदर स्त्री हर माईने में समाज के लिए आदर्श स्वरूप है, जिसे आसानी के साथ देख

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4 मई 2017
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कौन होगा अगला पीएम

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