सोच और वास्तविकता की क्यूं, आपस में ठनी रही है ? इंसान सोचता कुछ हैं,और होता कुछ और हैं ।हर चीज में क्यूं, प्रकृति विरोधाभास प्रकट करती है ?
आज इंसान को इंसान से, दुनिया में, प्यार न रहा ।सच है अब किसी को किसी का, दुनिया में, ऐतबार न रहा ।लोग फरेब करते हैं,अपनों से ।
जब भी मेरा दिल, उदास होता है, मेरी मां और ख्वाबों का, साथ होता है ।जब भी कभी जीवन में, मिली उदासी , मां के आंचल के साया में, मिटती रही उदासी ।आज न मां का
ये कैसी प्रारब्ध की, विडम्बना है ? बड़े महलों में, छोटे लोगों को रहते देखा ।छोटी झोपड़ियों में,बड़े लोगों को रहते देखा । महल लाख बड़ा हो, दिल उनका संकुचित हो चला
तेरे प्रेम में ,पागल हुआ मन, अब चैन हैं, पाता नहीं ।जिस तरफ देखूं मैं, इक पल , तेरे अश्क से, बच पाता नहीं ।मेरी तो हर सुबह और शाम, &nb
प्रेम से वो जिगर मांगे,वो भी दे दूंगा । कैसे भी हो,मैं जिन्दगी को, उन पर कुर्बान कर दूंगा ।दिल से चाहने की, इक मिशाल दे दूंगा । मानता हूं, छल-कपट मे
मां का महकता आंचल, वहीं सौगात थी मेरी, आज उन स्मृति श्रृंखलाओं में, जुड़कर,ही कुछ महक रहा हूं, मैं । आज स्मृतियां ही,सज
जिस देवी मां को, ढूंढते फिरते हैं, मन्दिरों में । वह तो घर में ही, रहती, विराजमान हैं ।फिर क्यूं, मानव को हो गया, इतना अज्ञान है ? मां की कभी सेवा
लोगों में नसीहत देने का, अंदाज आ गया है । किसी से सीख लेने का, अंदाज न आया ।चरणों को स्पर्श कराने में,गर्व मना रहे हैं । &nbs
कितनी गुमनाम सी हो गयी है, जिन्दगी । लगता है, तुम्हारे नाम हो गयी है, ये ज़िन्दगी ।अपना तो, होशो-हवास न रहा । तुम्हारे ही ख्यालों में , गुजर रही है, ये ज
वो बदल गये,मौसम से, क्यूं, दुनिया के, रश्मो-रिवाज भूल गये ?मोहब्बत में वादे करके, वो क्यूं बेवफा हो गये ? अब इस दुनिया में , इन्सान की बात का कोई वजूद न र
अगर किसी के साथ, अच्छा न करो, तो बुरा करने की, हिम्मत न करो ।अगर किसी के साथ वफ़ा न करो, तो बेवफा बनने की, जुर्रत न करो ।ईश्वर सब देखकर, लेखा करता है ।&nb
जिन्दगी की राह में, गुनगुना रहा हूं । इक नयी महफ़िल, सजाने जा रहा हूं ।लोग इसे, सपना समझते हैं । पर हम इन नयी राहों को, अपना स
कोई साथ न हो, कोई बात नहीं ।ख्वाबों का साथ है । ये हैं, सौगात बड़ी ।ख्वाबों के साथ ही, बैठकर, कुछ समय बिता लेता हूं ।दिल के अरमानों की इक,
मैं समय हूं । हर पल रहने वाला, गतिशील ।न मैं, रुका हूं । न, मैं रुकूंगा ।मैं रहूंगा, हरपल प्रयत्नशील । मेरा साथ ,जिसको भा जाता है ।वह पल में, क्या
महकने लगी, दुनिया मेरी, इक सुन्दर सुवास, आ गयी ।जिन्दगी में तेरे आने से इक सुन्दर, प्रभात आ गयी ।तुझको पाने की हसरत थी,
जिन्हें चलना सिखाया था,हमने, हमें,वो आज दौड़ना, सिखा रहे हैं ।वक्त की बदौलत, हमें वो खिल-खिलाकर, हंसना सिखा रहे हैं ।सच है कहावत, कभी नाव पानी पर, &
वर्तमान में जियो, पर अतीत को, बिसराओ मत ।सुन्दर छोटी खुशियों को गले, लगाते चलो ।बड़ी खुशियों के इन्तजार में, छोटी खुशियों को, बिसराओ न
तुम्हारे सोलह श्रृंगार को देखकर, इक ग़ज़ल याद आयी । आकाश में सतरंगी इन्द्रधनुष की, छवि मेरे दिल में उतर आयी । खनकती चूड़ियों की झंकार, मेरे मन भायी ।शायद
मुझे पहचान बनाने या शोहरत, कमाने का शौक नहीं है ।बस इतना काफी है,कि लोग मेरी उपस्थिति, पसन्द करते हैं ।न मिलने पर,पूछते हैं,कि कहां थे ? &nbs