... जाहिर है, न्यायपालिका पर बोझ तो है ही, किन्तु इस बोझ के चक्कर में उसकी 'विश्वसनीयता' प्रभावित न हो, यह बात न्यायपालिका को खुद भी सोचनी होगी. इसके लिए अमेरिका का उदाहरण देने की जगह अगर हमारी न्यायपालिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक भी दिन बिना छुट्टी लिए अनवरत कार्य करने का ज़िक्र करती तो कहीं न कहीं जजों में 'प्रेरणा' का भाव आता. हालाँकि, प्रधानमंत्री ने इसकी कमी जरूर पूरी कर दी. आंकड़ों में देखा जाय तो, 1987 के बाद से जब विधि आयोग ने जजों की संख्या को प्रति 10 लाख लोगों पर 10 न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी, तब से ही कुछ नहीं हुआ है.’ इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री ने साफगोई से आश्वासन देते हुए कहा कि यदि संवैधानिक अवरोधक कोई समस्या पैदा नहीं करें, तो शीर्ष मंत्री और उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ जज बंद कमरे में एक साथ बैठकर इस मुद्दे पर कोई समाधान निकाल सकते हैं. जाहिर है, न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी आवश्यक है और यह तय करना सभी की जिम्मेदारी है कि आम आदमी का न्यायपालिका में भरोसा बना रहे. इसके लिए, न्यायपालिका को 'जजों की कमी' का मुद्दा खुद उठाने की बजाय, इस प्रकार से दिखना होगा ताकि जनता को 'तारीख पर तारीख' से छुटकारा मिले और वह खुद न्यायपालिका की सहूलियतों के लिए आवाज उठाये. हाँ, इसके लिए वह अपनी तकनीकी क्षमताओं को बढाए और इसके लिए 'वीडियो कांफ्रेंसिंग', जांच एजेंसियों की क्षमता, भ्रष्टाचार और वकीलों की मनमानी पर लगाम, हिंदी भाषा में कामकाज शुरू करने जैसे कई उपाय हैं, जिन्हें आजमाया जाना चाहिए. और हाँ, कुछ हफ़्तों की विशेष छुट्टियों पर ...