"सोमेश वो देखो उस महिला को सड़क के किनारे इतनी रात गए बैठी है! चलो ना देखते हैं"
"पारु रहने दो ना किस झमेले में फंस रही हो! पता नहीं कौन है! और इतने रात गए क्यों सड़क पर बैठी है!"
इसलिए तो कह रही हूँ ना सोमेश हम ऐसे नहीं जा सकते!" कहते हुए पारु गाड़ी का दरवाजा खोल बाहर निकल गई उस महिला के पास पहुँच कर बोली
सुनिए! कौन हैं आप? किसी मदद की जरूरत है तो कहिये!" कहते हुए उसके बांह को हिलाया तो वो औरत लुढ़क गई, पारु का दिल जोर से धड़का!
ंसोमेश देखो तो शायद ये बेहोश हो गई चलो ना हॉस्पिटल ले चले सोमेश ने उस महिला को उठाया और दोनों उसे हॉस्पिटल लेकर गए पता चला वो महिला बेहोश थी कुछ देर के इलाज के बाद होश आया तो वो महिला कुछ बताने के लिए तैयार नहीं थी, मुझे जाने दीजिए जाने दीजिए की रट लगा रखा था और डाक्टर ने उसे अकेले छोड़ने से मना किया था.. दोनों ने किसी तरह उसे अपने घर चलने के लिए मना लिया।
रास्ते मे पुलिस चौकी पर रुक कर सोमेश ने खबर दे दी और चुपके से खिंचे गए तस्वीर को भी पुलिस को देकर गाड़ी अपने घर की तरफ घुमा ली।
घर पहुँच पारु ने उस महिला को गेस्ट रूम मे ठहराया, जाते ही वो महिला बिस्तर पर पसर गई, सोमेश को देख अनायास ही मुस्कराने लगी, उस पल अचानक पारु भय से काँप उठी, अजीब सी भयावह नजर से उसने पारु को देखा बड़ी बड़ी आँखों मे काजल की मोटी रेखा! होंठो पर चढ़ी लिपस्टिक की मोटी परत! लंबे खुले बाल, उस अधेड़ महिला के रूप लावण्य को देखकर ऐसा लगा जैसे बड़े जतन से उसने अपने रूप को सहेजा हो!
चालीस की उम्र थी लगभग लेकिन युवाओं को भी अपने नजरों के पाश मे बाँध ले ऐसी क्षमता थी, उसके रूप मे! देखने पर भले घर की लग रही थी लेकिन जिस तरह सोमेश को देख मुस्कराई पारु ऊपर से नीचे तक काँप गई उस पल लगा जैसे कोई गलती कर दी उसने, लगा कहीं उसका सर्वस्व छीन कर ना ले जाएं!
फ़िर हिम्मत कर बोली "प्लीज आप सो जाइए! पानी रख दिया है कोई जरूरत होगा तो मुझे आवाज़ दीजियेगा, मेरा नाम पारु है!"
सोमेश की तरफ मुड़ी तो देखा सोमेश अपलक उसे निहार रहा था, उसे देख प्राण सुख गए उसकी जान जैसे हलक मे आ गया ! मुँह सुख सा गया होंठो पर कंटीले झाड़ से उग आएँ, लगा उसका भय सच होने जा रहा है!
"सोमेश चलो चलते हैं!"
"सोमेश!!! हा हा हा सोमेश..."
उस महिला ने सोमेश का नाम लिया और हँस पड़ी अजीब सी मादकता थी उसकी आवाज़ मे जैसे जीवन भर का नशा हो तड़प, अजीब सी प्यास अजीब सी तृष्णा दिख रही थी उस महिला के आवाज़ और चेहरे पर !
उसके मुँह से सोमेश का नाम सुन काँप उठी पारु माथे पर पसीने के बड़े बड़े बूंद उभर आए सोमेश की तरफ देखा तो वो भी आश्चर्य मे डूबा उसे निहार रहा था!
उसने झटपट सोमेश का हाथ पकडा और कमरे से बाहर चली गई, अपना डर सोमेश से भी नहीं कह पा रही थी समझ ही नहीं पा रही थी कि कौन सा डर है कैसा डर है!
"आह ये रात कैसे बितेगी!! कब सुबह होगी! रात भर इसी चिंता मे बीती कि कहीं उस महिला को घर लाकर गलत तो नहीं कर दिया? सोमेश जैसे उसे निहार रहा था! उसने सोमेश का नाम क्यों लिया? बला की खूबसूरती की तपिश से कहीं उसके घर को आग ना लग जाएं! ओह! कैसी गलती कर दी मैंने काश उस पल सोच समझ कदम उठाया होता!"
सोचते सोचते रात बीती भोर की आहट हुई भुजंगा चिड़िया के बोलने से समझ आ गया कि हां सुबह होने वाली है तिमिर का पहरा अभी दिख रहा था लेकिन भुजंगा ने एहसास करा दिया कि सुबह बस आने वाली है।
उठी झटपट नहा धोकर तैयार हुई, तैयार होते हुए उस अधेड़ महिला का खयाल आया उसने भी अपने आँखों मे काजल की रेख खिंची, हल्का सा लिपस्टिक लगाया जो घर मे कम ही लगाती थी, लेकिन आज जाने कैसा भय था वो बार बार आईने मे खुद को निहार रही थी गुलाबी शिफाॅन की साड़ी डाल तैयार हुई बालो को ढीला जुड़ा बना लिया ऐसे तैयार हुई जैसे सोमेश को पसंद है, अजीब से भय और संदेह के बीच झूल रही थी रात सोमेश का उस महिला को अपलक निहारना भूल ही नहीं पा रही थी!
"छि! ये कैसी दुविधा मे पड़ गई हूं मैं! सोमेश के बारे में क्या सोच रही हूँ? और वो भी एक अनजान औरत को देखकर कर!"
सोचते हुए सोमेश के पास पहुंची देखा मासूम निष्कलंक बच्चे सा सो रहा था, अपनी सोच को अपने आप को धिक्कारते हुए मुस्करा उठी और फिर धीरे से सोमेश को जगाया।
सोमेश ने आँखे खोली देखा सामने चारु बैठी, उसे देख उछलकर बैठ गया...
"वाह मेम सहाब आज पूरे जन्नत का एश्वर्य और खूबसूरती एक साथ क्या अपने आशिक को मारने का इरादा है!"
कहते हुए उसे अपने आगोश मे ले लिया, पारु भी उसके आगोश मे समा गई मन का सारा भ्रम और डर रात के अंधेरे के साथ खत्म सा हो गया, मुस्कुराती हुई पति से अपने आप को छुड़ा कर उठी और बाहर गई.
गेस्ट रूम मे गई, देखा तो सामने कुर्सी पर वो अधेड़ महिला बैठी थी, विषाद, बेचैनी की एक भी लकीर चेहरे पर नहीं था, चेहरे पर सारा पुता सारा सौंदर्य प्रसाधन धोकर निकाल दिया था, दूध सी उजली बड़ी बड़ी आँखों वाली वो महिला ग़ज़ब की सुन्दर दिख रही थी! निश्चल पवित्र! एक तेज सा था उनके चेहरे पर जो एक आभा मंडल का निर्माण कर रहा था, आज वो बहुत शांत दिख रही थी पारु देखते ही मुस्करा उठी, "माफ़ी चाहती हूँ आप को तकलीफ हुई मेरे वज़ह से प्लीज ये मेरे घर का नंबर है एक बार फोन कर दीजिए..
जी जरूर.. उसके हाथ से लिखे नंबर का काग़ज़ लेते हुए बोली..
"आप ऐसे सड़क पर क्यों थी क्या बात है कुछ कहने लायक हो तो कहिये.!"
उसने कुछ नहीं कहा नजरे झुका ली... फिर बोली
"मेरा नाम अमृता है प्लीज आप फोन कर दीजिए या एक फोन दीजिए मैं खुद कर लूँ!"
पारु ने फोन लगाया..
"हैलो! मैं पारु! अमृता जी हमारे घर हैं!"
"क्या मम्मी आप के पास हैं प्लीज आप अपने घर का पता बता दीजिए!"
पारु ने पता बता दिया फिर रसोई मे गई राधा से कह कर चाय बनवाया और ख़ुद जाकर अमृता के साथ बैठ गई.. वो शांत थी कुछ बोल नहीं रही थी राधा चाय रख कर गई।
"आप चाय पी लीजिए, मैं आती हूँ कहकर उठी तो अमृता ने रोक लिया.
"बैठो ना प्लीज! तुम पूछ रही थी ना मैं सड़क पर बदहवास सी क्यों घूम रही थी?.. मैं अच्छे घर की महिला हूँ दो बच्चों की माँ हूँ कुछ सालो पहले मेरे पति अचानक से मुझे छोड़ किसी दूसरे के साथ दूसरी दुनिया बसा ली, जीवन पथ के दो राही अलग अलग राह पर निकल गये।अकेले बच्चों को पाला पोसा। अपना बिजनेस खड़ा किया। कभी कभी जाने क्या हो जाता है मुझे! मैं बेपरवाह सी निकल पड़ती हूँ सड़कों पर उसे ढूंढ़ने जो मेरा था ही नहीं, और उस पल मैं अपना आज भूल जाती हूँ ना मुझे अपना घर याद रहता और ना अपने बच्चे .. ये मेरे मन का रोग है जिससे मैं और मेरे बच्चे परेशान है! शायद मेरे अंदर की स्त्री की तड़प है..!"
"माफ़ी चाहूँगी आप दोनों को मेरे वज़ह से परेशानी हुई,आप लोगों ने मुझे रात भार सम्भाला उसके लिए बहुत बहुत धन्यावाद!"
कहते हुई वो महिला जाने के लिए खड़ी हुई बाहर हॉल तक पहुँची तो दरवाजे की घंटी बजी राधा ने दरवाजा खोला सामने टीन ऐज के दो बच्चे खड़े थे एक लड़की और एक लड़का माँ को देखते ही माँ के गले लग गए.
"माँ कहा चली गई थी आप? रात भर आप को ढूंढ़ा है!"कहते हुए दोनों रोने लगे वो महिला भी रो रही थी सोमेश भी बेड रूम से बाहर आया, सोमेश और पारु के सामने दोनों बच्चे हाथ जोड़ खड़े हो गए पारु ने दोनों के माथे पर हाथ फिराया और उन्हें बैठने को कहा, कुछ पल बैठे राधा से कहकर उनके लिए नाश्ता मंगाया, उन्होंने थोड़ा बहुत खाया फिर उठ खड़े हुए शायद वो जल्दी से जल्दी माँ को अपने घर ले जाना चाहते थे।
उन तीनों ने पारु और सोमेश से से विदा ली। उस भद्र महिला को जाते देख पारु के आँखों में आँसू थे सोमेश के खोने के भय से वो काँप उठी थी जबकी उस महिला ने तो अपना सर्वस्व खो दिया था उसकी बेचैनी उसके तड़प को महसूस कर पारु के आँखों से आँसू बह चले और वो सोमेश के सीने से लग गई।