नई दिल्लीः यूं तो निजाम बदलते ही जमे-जमाए अफसरों के पैर उखड़ जाते है, मगर यूपीपीसीएल के एमडी एपी मिश्रा इसके अपवाद हैं। बसपा राज में सीनियर आईएएस नवनीत सहगल के दम पर यूपी के पॉवर महकमे में एमडी बनकर घुसे एपी मिश्रा ने सपा सरकार आने पर मुलायम कुनबे को ऐसा मोहा कि अब उनके आगे मौजूदा आईएएस चेयरमैन संजय की भी नहीं चल रही है। पॉवर महकमे में करप्शन का ऐसा करंट एपी मिश्रा दौड़ा रहे कि खुद तो कमा रहे रिश्तेदारों को भी मालामाल कर रहे हैं। शिकायत है कि बतौर एमडी पद का दुरुपयोग कर वे रिश्तेदारों के नाम से कंपनी खड़ी कराकर अरबों की बिलिंग का ठेका सौंप दिए हैं। कुछ कंपनियां यूपी कॉडर के मठाधीश आईएएस अफसरों के परिचितों की भी हैं।
90 प्रतिशत बिलिंग टारगेट, मगर आधा काम कर पूरा भुगतान
नियम के मुताबिक बिलिंग कंपनियों को 90 प्रतिशत बिलिंग करनी जरूरी है। यानी 90 प्रतिशत उपभोक्ताओं तक समय से बिल पहुंचाने की जिम्मेदारी है। मगर अधिकतम 60 से 65 प्रतिशत ही कंपनियां बिलिंग कर रहीं हैं। जबकि भुगतान पूरा हो रहा है। सूत्र बता रहे यह सब यूपीपीसीएल के एमडी की सांठगांठ से चल रहा है। पचास फीसदी से अधिक उपभोक्ता समय से बिल न मिलने की शिकायत करते हैं। इससे यह बात साबित होती है कि यूपी में बिलिंग का क्या खेल चल रहा।
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ये कंपनियां मिश्रा के परिचितों की बताई जा रहीं
लखनऊ में बिलिंग का ठेका पाई एसएमएम इंफ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी गोडा के सुरेंद्र मोहन मिश्रा की है। ये एपी मिश्रा के रिश्तेदार हैं। इसके अलावा सीजीसी कंस्ट्रक्शन इंडिया लखनऊ, एन सॉफ् प्राइवेट लिमिटेड बंगलुरु कंपनी भी मिश्रा की नजदीकी लोगों की बताई जा रही है।
महिला आईएएस से जुड़ी कंपनी को भी दिया लाभ
सीजीसी कंस्ट्रक्शन इंडिया लिमिटेड कंपनी एक सीनियर महिला आईएएस अधिकारी के रिश्ते में भाई लगने वाले शख्स की बताई जाती है। लखनऊ शहर में डालीगंज, यूनिवर्सिटी, अमीनाबाद, सहित दस डिजीजन की बिलिंग इस कंपनी के जिम्मे हैं। मगर, 50 प्रतिशत काम करने के बाद भी कंपनी यूपीपीसीएल से पूरा भुगतान ले रही है। बगैर काम के भुगतान होने पर कंपनियों के स्तर से यूपीपीसीएल के बाबुओं से लेकर आला अफसरों को कमीशन दिया जाता है। ताकि दोनों तरफ से हंसी-खुशी सरकारी पैसे की लूट चलती रही।
एक बिल बनाने की कीमत आठ रुपये
यूपीपीसीएल के स्टाफ के मुताबिक कंपनियों को 8.50 रुपये की दर से बिलिंग का भुगतान होता है। यानी हर बिल पर 8.50 रुपये। इस प्रकार पूरे सूबे में देखें तो करीब सवा करोड़ उपभोक्ता हैं। आठ लाख उपभोक्ता तो सिर्फ राजधानी लखनऊ में हैं। मगर पूरे प्रदेश में हर महीने महज पचास प्रतिशत उपभोक्ताओं की ही बिलिंग हो पाती है। कोढ़ में खाज की बात यह है कि जितनी बिलिंग होती है उतनी भी उपभोक्ताओँ तक समय से नहीं पहुंचती है। इसमें से महज 70 प्रतिशत बिलिंग ही उपभोक्ताओं तक पहुंच पाती है। इस प्रकार समय से 40 फीसदी लोग ही बिजली बिल का भुगतान करते हैं। जबकि कंपनियों को 90 प्रतिशत बिलिंग के मानक न पूरा करने पर भी पूरा पैसा दिया जा रहा। इससे सरकारी राजस्व को चूना लगाया जा रहा।
क्या है यूपीपीसीएल
उत्तर प्रदेश में बिजली व्यवस्था के लिए पहले उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद काम करती रही। मगर, बाद में 14 जनवरी 2000 को परिषद को यूपी पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड में बदल दिया गया। एपी मिश्रा पहले ऐसे टेक्नोक्रेट हैं जो सत्ता से संबंधों के दम पर बगैर आईएएस होते हुए यूपीपीसीएल के एमडी पद पर कब्जा कर लिए। जबकि कारपोरेशन के गठन के बाद से अब तक आईएएस ही एमडी बनते आए हैं। क्योंकि कारपोरेशन में चेयरमैन और एमडी के पद आईएएस के लिए ही तय हैं।