... साफ़ है कि वर्तमान समय की कठिनाइयों को धरातल पर आंककर मोदी सरकार ने ठीक ही किया है और अगर उसकी योजनानुसार कार्य किया जाता है तो कोई कारण नहीं कि हमारे देश में रेल और बसों के कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर पर 'भारी बोझ' कुछ कम हो जाए! इस नीति के अंतर्गत छोटे शहरों के बीच एक घंटे का समय लेने वाली उड़ानों के लिए अधिकतम किराया सीमा 2,500 रुपये तय करने की बात कही गयी है, क्योंकि सरकार की योजना एक ऐसा ईकोसिस्टम तैयार करने की है, जिससे हवाई यात्रा को आर्थिक रूप से सुगम बनाकर हवाई यात्रियों की संख्या बढ़ाई जा सके. लोगों के आवागमन के बढ़ते बोझ को उठा पाना अकेले ट्रेनों (Indian Train system) के बस की बात नहीं रह गयी है और यह बात अब हर एक को बखूबी समझ लेनी चाहिए! ऐसे में अगर हवाई यात्रा को बढ़ावा दिया गया तो लोगों की परेशानी निश्चित तौर पर कम होगी. हालाँकि, इसमें कई व्यवहारिक कठिनाइयां भी हैंतो. अब जब किराया कम किया जा रहा है तो ऐसे में जाहिर है कि विमान कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ेगा, तो इसीलिए इसमें एयरलाइन कंपनियों के फायदे को भी ध्यान में रखने की बात है जिससे उन्हें देश के छोटे शहरों के बीच उड़ानें भरने के लिए प्रोत्साहंन मिल सके (New Aviation Policy) ! इस मामले को कुछ यूं समझा जा सकता है कि किराये की अधिकतम सीमा तय होने की वजह से एयरलाइन कंपनियों को होने वाले नुकसान का 80 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार देगी. जाहिर है, घूम फिरकर पब्लिक पर ही इसका बोझ पड़ेगा इसलिए बेहद जरूरी है कि इस पूरे प्रयास का सरलीकरण किया जाए तो इसमें तेजी भी उतनी ही आवश्यक है. ...