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तुमको बुलाऊँगा कभी

17 दिसम्बर 2015

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तुमको बुलाऊंगा कभी

फिर से जलाउंगा कभी_

        अभी  कफ़स  में  हूँ  तेरे

        पर निकल जाऊंगा कभी_

तेरे  दर  से  गुजरा  हूँ

करीब  आऊंगा  कभी_

        एक शख्स और हैं मुझमे

        आना  मिलाऊंगा   कभी_

ये  भी  मालूम  हैं  मुझे

जान से  जाऊँगा कभी_

        ईश्क  गज़ल औ  मैकदा (कुमार)

        यूँ तो  मर जाऊंगा कभी_।।


कफ़स = पिंजरा

मैकदा = शराबखाना


©®कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'

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कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'

कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'

आदरणीया प्रियंका जी आप ही कोई शीर्षक सुझाये आपका आभार

19 दिसम्बर 2015

कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'

कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'

चन्द्रेश जी बहुत आभार

19 दिसम्बर 2015

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

दुर्गेश जी लिखा बेहतरीन है पर इसका शीर्षक बदल दें.

17 दिसम्बर 2015

17 दिसम्बर 2015

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रचनाएँ
Kumardurgesh
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मन की बातें जो कलम तक आ पहुंचे
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तुमको बुलाऊँगा कभी

17 दिसम्बर 2015
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तुमको बुलाऊंगा कभीफिर से जलाउंगा कभी_        अभी  कफ़स  में  हूँ  तेरे        पर निकल जाऊंगा कभी_तेरे  दर  से  गुजरा  हूँकरीब  आऊंगा  कभी_        एक शख्स और हैं मुझमे        आना  मिलाऊंगा   कभी_ये  भी  मालूम  हैं  मुझेजान से  जाऊँगा कभी_        ईश्क  गज़ल औ  मैकदा (कुमार)        यूँ तो  मर जाऊंगा कभी_

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कागज़ पेन औ फूल

19 दिसम्बर 2015
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कागज पेन  औ फूलों  का  पहाड़ रखा हैंदरअसल उसकी यादों का जुगाड़ रखा हैं_            ऐसे तो मियां बड़े शरीफ हैं हम लेकीन            मेरी ही एक 'डायरी' ने बिगाड़ रखा हैंमुहब्बत वाला 'खत' औ साथ वाली 'फोटो'मेरे  कमरे   में  बहुत  सा  कबाड़  रखा  है।।©®कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'

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कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'

19 दिसम्बर 2015
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