तुमको बुलाऊंगा कभी
फिर से जलाउंगा कभी_
अभी कफ़स में हूँ तेरे
पर निकल जाऊंगा कभी_
तेरे दर से गुजरा हूँ
करीब आऊंगा कभी_
एक शख्स और हैं मुझमे
आना मिलाऊंगा कभी_
ये भी मालूम हैं मुझे
जान से जाऊँगा कभी_
ईश्क गज़ल औ मैकदा (कुमार)
यूँ तो मर जाऊंगा कभी_।।
कफ़स = पिंजरा
मैकदा = शराबखाना
©®कुमार दुर्गेश 'बेपरवाह'