नई दिल्ली : टेलीविज़न की टीआरपी वॉर के पत्रकार स्टूडियो से बाहर निकलकर चौदवीं का चाँद भी देखते हैं , ऐसा राणा यशवंत ने करके दिखाया है. इंडिया न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर राणा यहवंत जहाँ पिछले कुछ वर्षों में इंडिया न्यूज़ को दसवीं पायदान से नंबर एक की दौड़ में लेकर आये वही उन्होंने कुछ यादगार कविता ओं को भी बड़े बेहतर ढंग से कागज़ पर उकेरा है. इस बात की तस्दीक देश के नामवर कवि केदार नाथ सिंह ने आज राणा के काव्य संग्रह 'अँधेरी गली का चाँद' का विमोचन करते समय की है.
राणा टीवी के उन गिने चुने पत्रकारों में हैं जो परदे के पीछे भी है और परदे के सामने भी. वो दिन भर खबर खंगालते है, बनाते हैं और मौक़ा मिलने पर अपना ख़ास शो एंकर भी करते हैं. इन्ही ख़बरों की घूमती दुनिया के बीच कविता के क्षितिज पर वो शब्द भी उकेर देते हैं." ..थोड़ा खिड़की में लटका है/ ज्यादा ओट में अटका है.....आसमान में चलता है/ मगर आंगनों की बात करता...अँधेरी गली का चाँद. शायद इसलिए मंगरेश डबराल उन्हें टीवी के असंवेदनशील समाज में एक संवेदनशील पत्रकार मानते है. उदय प्रकाश भी कहते हैं कि राणा ने शोर शराबे भरे न्यूज़रूम में जिस तरह कविता तलाश ली है वो एक बड़ी बात है.
राणा का कलम सिर्फ चाँद के पीछे नही दौड़ता है. उनका जहां तो चाँद सितारों से आगे निकल कर ख़बरों को भी कविता में ढाल रहा है. वो हर मुमकिन मुद्दे पर लिखते हैं. उन्होंने तो मेधा पाटकर को भी कविता में पीरो दिया है. वो ठाकरे और ना जाने किस किस पर कविता लिखने का साहस जुटाते हैं.
बहरहाल आज के टीवी चैनल, रेटिंग की जिस अंधी और अँधेरी गली में तथ्यों को मसलकर आगे बढ़ रहे है वहीँ राणा जैसा कवि ह्रदय पत्रकार आज इसी अँधेरी गली में चाँद बनने की कोशिश कर रहा है. ये कोशिश कामयाब हो हम सभी यही दुआ करेंगे.