लखनऊ ब्यूरो-: पिछले 15 सालों में उत्तर प्रदेश खॅूखार आतंकवादियों का गढ बन चुका है। लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, गोरखपुर, आगरा और कानपुर जैसे शहरों के चप्पे में इनके ‘स्लीपिंग माड्यूल्स‘ का जाल सा बिछ गया है। यह बात पूर्ववर्ती सरकारों के पुलिस प्रशासनिक तंत्र को बहुत अच्छी तरह मालूम रही है। लेकिन, इनमें से किसी को भी छूने तक की उनमें हिम्मत नहीं रही है। जिसने यह दुस्साहस किया भी, तो उसे इसका खामियाजा भुगतने में देर नहीं लगी। हद तो उस समय हो गयी, जब इनमें से कुछ को छुडाने के लिये ‘ऊपर‘ के इशारे पर नौकरशाहों ने लोकहित की आड में अदालत तक से लिखित अनुरोध किया था। इनमें से कुछ तो छूट गये और कुछ इसलिये रह गये कि अदालत ने सरकार से पूछ लिया था कि इन आतंकवादियों को रिहा करने के पीछे किस तरह का लोकहित है?
जानकार सूत्रों के अनुसार, अब तो बगदादी के आई.एस. ने भी प्रदेश में अपनी घुसपैठ बना ली है। इसकी पुष्टि एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने किया था। लेकिन, ‘ऊपर‘ से मिली जोरदार फटकार के बाद उसने बिना देर किये इसका खंडन भी कर दिया था लेकिन, इस सच को अब नहीं झुठलाया जा सकता है कि ये आतंकी संगठन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जडों को मजबूत करने के बाद अब पूर्वांचल पर अपना जाल फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिये नेपाल की सीमा से लगा नौतवना वरदान साबित हो रहा है। नेपाल से हथियारों के जखीरों के साथ बम बनाने के सामान भी भेजे जा रहे हैं। हाल ही में आतंकवादियों ने आगरा में ताजमहल तक को उडा देने की धमकी दी है। नतीजतन, वहाँ पुलिस की गश्त काफी बढा दी गयी है।
बताया जाता है कि भोपाल-उज्जैन ट्रेन विस्फोट कांड में पकडे गये खोरासान ग्रुप के संदिग्ध आतंकवादियों ने पिछले दशहरे में लखनऊ आये प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की रैली स्थल से लगभग 250 मीटर दूर कम तीव्रता का विस्फोट किया था। इसे ट्रायल के तौर पर किया गया था, ताकि आगे चलकर भारी तीव्रता वाला विस्फोट किया जा सके। इसके कुछ ही दिनों के बाद आगरा में ताजमहल को भी उडा देने की धमकी दी गयी है। लखनऊ शहर मे गोमतीनगर, इंदिरानगर, विकासनगर, हजरतगंज, नरही, जियामऊ और हुसैनगंज जैसे इलाकों में काफी बडे पैमाने पर आतंकियों के रहने के अड्डे बन गये हैं।
कुछ ही समय लखनऊ में हुई एक मुठभेड़ में मारे गये आतंकी सैफुल्लाह के पास से बरामद डायरी से पता चला है कि लखनऊ के तीन स्कूल आतंकियों के निशाने पर रहे है।। इनके निशाने पर तीन मुस्लिम विद्वान भी रहे हैं। इनका इरादा यहां इतना भयंकर खूनखराबा करने का था, जिससे जबरदस्त सांप्रदायिक संघर्ष हो सकता था। रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के प्रमुख ठिकाने भी इनके निशाने पर थे। इनकी सुरागरसी करने में सूबे की पुलिस की खुफिया एजेंसियां पूरी तरह नाकाम रही हैं। इन्हें इस बात की कोई भी जानकारी नहीं थी कि रिहायशी इलाके में आर.डी.एक्स. की खेप कैसे आ गयी थी? कैसे बम बनाने की पूरी सामग्री जुटाई गयी थी
इस तरह यह कहना गलत नहीं होगा कि आई.एस. के निशाने पर लखनऊ भी आ गया है। सैफुल्लाह लखनऊ की हाजी कालोनी में बादशाह खान के जिस मकान में रह रहा था, उसे आतंकी संगठन का उत्तर भारत का मुख्यालय बनाने का प्रयास चल रहा था। उज्जैन में ट्रेन बम विस्फोट करने के लिये यहीं पर तैयार किये गये पाइप भेजे गये थे। आशंका है कि सफुल्लाह की मौत के बदले आतंकी संगठन लखनऊ में कोई गंभीर वारदात करने की कोशिश कर रहे हैं।
आतंकी संगठन उ.प्र. में पढेलिखे नवजवानों पर अपना डोरा डाल रहें हैं। तकनीकी और डिग्री कालेजों में इनकी घुसपैठ शुरू हो गयी है। इसके लिये इन्हें लैपटाप, मोबाइल आदि देने के अलावा बहुत अच्छी कमाई का भी भरोसा दिया जा रहा है। सैफुल्लाह, आतिफ,इमरान फैसल, दानिश जैसे दर्जनों मुस्लिम युवा इसके सबूत रहे हैं। जाजमऊ में बी.काम की पढाई करते समय ही यह फेसबुक के जरिये इनके संपर्क में आ गया था। सूबे के दूसरे अनेक शहरों में भी यही कोशिशें की जा रही हैं।
कानपुर महान्रगर की बात करें, तो खुफिया रिपोर्ट और पकडे गये पाकिस्तानी एजेंटों से मिली जानकारी के अनुसार, आयुध सैन्य के साथ ही प्रौद्योगिकी संस्थान, हवाई अड्डा और गैस प्लांट जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की वजह से कानपुर तो स्लीपिंग माड्यूल्स की पाठशाला जैसा बन गया है। चकेरी में पकडे गये संदिग्ध आतंकी सगे भाई फैसल और इमरान इसका अकाट्य सबूत है। यहां की रहमानी मार्केट में तो भीड ने पुलिस दल पर हमला कर संदिग्ध आतंकी शकील को छुडा लिया था। इनके हौसले इतने बुलंद हैं कि 2006 में कानपुर के रोशननगर मे विस्फोट कर इन लोगों ने नौ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इसी तरह 2009 में नजीराबाद में हुए विस्फोट में एक बच्ची की मौत हो गयी थी। इसके बाद 2010 में कल्याणपुर के बारासिरोही में विस्फोट से पांच लोगों की मौत हो गयी थी। ऐसी ही दूसरी तमाम मिसालें दी जा सकती हैं। प्रायः हर मामले में पुलिस ने लीपापोती का ही प्रयास किया है।