नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार वर्तमान में देशभर में 5 करोड़ BPL (गरीबी रेखा से नीचे) रहने वाले परिवारों के लिए मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए 'प्रधानमंत्री उज्जवला योजना' चल रही है। इस योजना के लिए केंद्र सरकार ने 8000 करोड़ रुपये का बजट भी तय किया है लेकिन यह योजना क्या जरूरतमंदों तक पहुँच भी रही है? यह जानने के लिए आपको पहाड़ी राज्य उत्तराखंड जाना होगा। पहाड़ी सूबे उत्तराखंड में इस योजना के तहत 4.38 लाख परिवारों को चिन्हित किया गया था।
एक रिपोर्ट के अनुसार मई 2015 तक राज्य में कुल 1.17 लाख परिवारों को इस योजना से लाभान्वित भी किया जा चुका है लेकिन यह योजना अभी तक उत्तराखंड की पहली लोक गायिका कबूतरी देवी तक नहीं पहुँच पायी, जो कि लम्बे समय से सरकारों की उपेक्षा का शिकार रही हैं। कबूतरी देवी की बेटी हेमंती देवी ने 'इंडिया संवाद' को फोन पर बताया कि ''कबूतरी देवी इस सुविधा से वंचित हैं क्योंकि उनका नाम उज्जवला स्कीम में नहीं आया है''। कबूतरी देवी उत्तराखंड की पहली लोक गायिका मानी जाती है।
70-80 के दशक में आकाशवाणी के नजीबाबाद और लखनऊ केंद्र से कबूतरी देवी गढ़वाली लोक गीतों को घर-घर तक पहुंचाती रही। उस वक़्त आकाशवाणी से एक गीत की रिकॉर्डिंग के कबूतरी को 25 से 50 रूपये मिलते थे। अपने पति की मृत्यु की बाद इन्होंने आकाशवाणी के लिये और समारोहों के लिये गाना बन्द कर दिया था। इस बीच इनका एक मात्र पुत्र पहाड़ की नियतिनुसार पलायन कर गया और शहर का ही होकर रह गया। लेकिन पहाड़ को मन में बसाये कबूतरी को पहाड से बाहर जाना गवारा नहीं था।
70 वर्ष से भी ज्यादा आयु की कबूतरी देवी पिथौरागढ़ जिले के क्वीतड़ गांव में रहती हैं। बेहद ग़रीब इस लोकगायिका को सरकार से मिलने वाली मामूली पेंशन की रकम का ही आसरा है। पेंशन भी छह-छह महीने बाद आती है। कबूतरी देवी की बेटी हेमंती देवी ने फोन पर बातचीत में बताया कि गैस के चूल्हे के लिए प्रशासन से बात की थी लेकिन उन्होंने कहा कि गरीबी रेखा वाले राशन कार्ड की लिस्ट में कबूतरी देवी का नाम ही नहीं है।
निजी तौर पर गैस कनेक्शन लेने में लगभग 5000 रुपये का खर्च आएगा। उनके पास इतने पैसे नहीं हैं। हेमंती देवी ने बताया कि उन्होंने स्थानीय पत्रकारों से इस समस्या के बारे में बात की थी और साधना न्यूज़ के प्रतिनिधि ने अपनी तरफ से मदद का आश्वासन दिया है। हेमंती देवी का कहना है कि वो अपने पति के साथ मिलकर सिलाई का काम और स्थानीय स्तर पर घरेलू कामकाज करती हैं । उनका कहना था कि वे लोग बड़ी मुश्किल से जी रहे हैं।
सूबे की सच्चाई यह है कि राज्य सरकार ने गायक कैलाश खेर को महज एक भजन गाने के लिए 3.36 करोड़ खर्च किये। जिसकी किस वर्तमान बीजेपी सरकार अभी तक चुका रही है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि राज्य सरकार के पास कैलाश खेर के गानों का भुगतान करने के लिए तो पैसा है लेकिन अपनी ही एक स्थापित लोक गायिका की मदद का इरादा सरकारी नियम-कानूनों की पाबंदी से बंधा हुआ है।
ऐसा लगता है कि उत्तराखंड की नयी सरकार जो पहाड़वाद, स्थानीय संस्कृति की रक्षा और संरक्षण जैसी बड़ी बड़ी बातें और लुभावने वादे करके सत्ता में आई है, वह भी पिछली सरकार की उन्हीं प्रशासनिक बुराइयों को सिर्फ दो महीने में ही अंगीकार कर चुकी है।