देहरादून: देवभूमि उत्तराखण्ड में बीजेपी सरकार ने पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार में जोड़-जुगाड़ से पुनर्नियुक्ति पाने वाले सेवानिवृत्त अफ़सरों पूरी सूची बनवाना शुरू कर दी है। क़रीबी सूत्रों कि मानें तो 25 से ज्यादा अफ़सरों पर गाज गिरना तय माना जा रहा है।
दरअसल, हरीश रावत सरकार में कुछ अधिकारी लंबे वक़्त से पूर्व सेवानिवृत्त होने के बावजूद बार बार पुनर्नियुक्ति पा रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि भारी-भरकम वेतन के अलावा भत्ते और सुविधाएं खर्च करने के बावजूद इनका कोई विशेष योगदान नज़र नहीं आ रहा है। सेवानिवृत्त होने के बाद किसी योग्य अधिकारी की सेवाएं यदि राज्य या केंद्र सरकार लेना चाहती है तो उसे पुनर्नियुक्ति देने की व्यवस्था है। ऐसे में इन्हें विभिन्न विभागों में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी यानी ओएसडी का पद दिया जाता है। इसके अलावा भी कई विभिन्न आयोगों में भी इन्हें रखा जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इन्हें सरकारी गाड़ी, अच्छा वेतन, बंगला और नौकर-चाकर आदि की सुविधाएं भी इन्हें मुहैया होती हैं। यह सरकार के विवेक पर है कि वह उसे बढ़ा भी सकती है। वैसे तो इसका सिर्फ एक पैमाना काबिलियत ही होता है, मगर पुनर्नियुक्ति पाने वाले ज्यादातर लोग सरकार के क़रीबी माने जाते हैं। उत्तराखण्ड में कई नौकरशाह इसी हुनर के चलते लंबे वक़्त से सेवानिवृत्त होने के बाद भी पुनर्नियुक्ति पाते रहे हैं।
जल्द होगी सेवा विस्तार पर कार्यवाही
डीएस गर्ब्याल और सीएस नपल्च्याल को चुनाव के ठीक पहले जब आचार संहिता लागू होते ही सेवानिवृत्ति के पूर्व ही पुनर्नियुक्ति देने के आदेश जारी हुए थे। सूचना विभाग में तो एक ऐसे अधिकारी को पुनर्नियुक्ति मिली, जो विभिन्न अखबारों के पत्रकारों से पूछकर प्रेस विज्ञप्ति तैयार करने के लिए जाने जाते हैं। मुख्य सचिव कार्यालय के क़रीबी सूत्रों की मानें तो बीते वर्षों में पुनर्नियुक्ति पाने वाले सभी अफ़सरों की फाईल को तलब किया गया है। जिसमें इस बात की छानबीन होगी कि कौन अधिकारी कितना योग्य है और सेवानिवृत्ति के बाद जो ज़िम्मेदारी उसे दी गई उसमें उसकी परफॉर्मेंस कैसी रही। यह पूरी रिपोर्ट CM TSR के सामने रखी जाएंगी।
कांग्रेस सरकार के वक़्त समाज कल्याण विभाग के निदेशक विष्णु सिंह धनिक को भी करीब डेढ़ साल से सेवा विस्तार दिया जाता रहा। बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाला उन्हीं के वक्त हुआ, बावजूद इसके उन्हें सेवा विस्तार देकर इसी पद पर बनाए रखा गया। TSR की नज़र इस तरह के हर उन अधिकारियों पर है जो कि लंबे वक़्त से जुगाड़ बनाकर लगातार पदों पर बने हुये हैं।