
नई दिल्लीः कभी अंग्रेजों के जमाने में जेलर कुख्यात हुआ करते थे, मगर यूपी के एक जेलर बीएस मुकुंद भी इसी कटेगरी में नजर आ रहे हैं। मुकुंद का नाम सुनते ही आम कैदी कांप उठते हैं। इसलिए नहीं कि यह जेलर बहुत सख्त है, चहारदीवारी में तगड़ा अनुशासन रखता हो कि कोई परिंदा भी न पर मार सके। बल्कि इसलिए कि माफिया और रसूखदार नेताओं के इशारे पर नाचने के कई किस्से हैं और दामन पर कैदियों को टॉर्चर करने के इन पर ढेरों इल्जाम हैं। शिकायतों पर सस्पेंड और ट्रांसफर होने के बाद भी बीएस मुकुंद नहीं सुधरे। लखनऊ कारागार में डिप्टी सीएमओ सचान की संदिग्ध मौत के पांच साल बाद फिर सुर्खियों में है। वजह वही है कस्टडी में एक अहम केस के आरोपी की संदिग्ध मौत का मामला। दादरी के बहुचर्चित बिसाहड़ा हत्याकांड के आरोपी रवि की कस्टडी में संदिग्ध मौत पर मुकुंद को फिलहाल जेल मुख्यालय से संबद्ध किया जा रहा है। आखिर क्या वजह है कि इसी जेलर की कस्टडी में ही अक्सर हाईप्रोफाइल केस से जुड़े कैदियों की संदिग्ध मौत हो जाती है। जबकि पुलिस या सीबीआई को उन कैदियों से पूछताछ से अहम सुबूत मिलने की उम्मीद आती है तभी मुकुंद की जेल से उस कैदी के टपक जाने की खबर आती है। यहां हम जज बनकर मुकुंद पर इल्जाम तय नहीं कर रहे, सिर्फ यह सवाल उठा रहे कि आखिर इसी जेलर की जेल में ही किसी हाईप्रोफाइल केस से जुड़े कैदियों की संदिग्ध मौत क्यों हो
जाती है।
पिटाई से हुई दादरी कांड के आरोपी की मौत
बिसहाड़ाकांड के बहुचर्चित मामले के आरोपी रवि की भी उसी ग्रेटर नोएडा की जेल में मौत हुई, जिस जेल की कमान बीएस मुकुंद के हवाले है। आरोपी के परिवार वाले मुकुंद पर टॉर्चर कर मौत के घाट उतारने का आरोप लगा रहे। आरोपों को इसलिए बल मिल रहा है क्योंकि मुकुंद की वर्दी पर इससे पहले लखनऊ कारागार में सचान की हत्या का दाग लग चुका है। तब सीबीआई ने कई दफा मुकुंद से बातचीत की। हालांकि निलंबित होने के बाद मुकंद बाद में बहाल हो गए और ऊंचे रसूख के दम पर सपा सरकार में भी जिस जेल में चाहा, वहीं पर तैनाती पा ली।
स्टिंग से पहले आ चुका है मुकुंद की जेल का सच
कुछ दिन पहले ग्रेटर नोएडा की जेल का एक वीडियो वायरल हुआ था। जिसमें कैदियों पर अमानवीय जुल्म ढाया जा रहा था। इसमें कुछ कैदियों की खूब पिटाई की जा रही थी। इस वीडियो के आधार पर परिजन कह रहे हैं कि रवि की मौत जेल में मुकुंद के इशारे पर हुई टॉर्चर के कारण हुई। बिसहाड़ा गांव के लोग मुकुंद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग को लेकर पुतला भी फूंका। वहीं सरकार से मुआवजे की भी मांग कर रहे हैं।
जौनपुर से बसपा नेता कराई थी लखनऊ में तैनाती
सूत्र बताते हैं कि एनआरएचएम घोटाले में जब डिप्टी सीएमओ सचान पर गिरफ्तारी का खतरा मंडराया मायावती राज में हुए पांच हजार करोड़ के एनआरएचएम घोटाले में शामिल मंत्रियों और अफसरों में खलबली मच गई। वजह कि डिप्टी सीएमओ पूरे घोटाले के बड़े राजदार थे। कहीं सीबीआई से सचान पूरे राज उगल न दें, इसके लिए घोटाले में शामिल रसूखदारों ने सचान को मरवाने का प्लान तैयार किया। इससे पहले पूरी प्लानिंग के साथ मुकुंद को लखनऊ जिला जेल में तैनाती दिलाई गई थी। बाद में जब सचान लखनऊ कारागार पहुंचे तो हत्या कर आत्महत्या के बीच कहानी उलझा दी गई। सूत्र बताते हैं कि जौनपुर से लखनऊ कारागार मुकुंद की तैनाती एक रसूखदार बसपा नेता ने कराई थी। इस नेता का भी एनआरएचएम घोटाले से नाता रहा।
डिप्टी सीएमओ सचान की संदिग्ध मौत पर सस्पेंड हुए थे मुकुंद
मायावती के राज में जब एनआरएचएम का बहुचर्चित घोटाला हुआ तो डिप्टी सीएम वाईएस सचान लखनऊ कारागार मे बंद हुए।22 जून 2011 को संदिग्ध परिस्थितियों में इस हाईप्रोफाइल केस से जुड़े सचान की जेल के अंदर से मौत की कबर हुई तो सूबे में तूफान मच गया। मायावती के सामने मुसीबत खड़ी हो गई। उस दौरान तत्कालीन सीजेएम राजेश उपाध्याय की जांच रिपोर्ट हत्या की ओर इशारा कर रही थी। इस मामले में जेलर बीएस मुकुंद सहित डिप्टी जेलर सुनील कुमार सिंह, प्रधान बंदी रक्षक बाबूराम दुबे और बंदीरक्षक पहींद्र सिंह की भूमिका संदिग्ध पाई गई।पांच जेलकर्मियों को शासन से सस्पेंड कर जनाक्रोश को थामने की कोशिश की थी।
फोटो-डिप्टी सीएमओ डॉ. सचान की 2011 में लखनऊ कारागार में हुई थी संदिग्ध मौत
ये तथ्य सचान की हत्या की ओर कर रहे थे इशारा
1-सीजेएम की जांच रिपोर्ट के मुताबिक डॉ. सचान का शव जेल के निर्माणाधीन हिस्से में कमोड पर बैठने की मुद्रा में पाया गया था।
2-अगर वह सुसाइड करते तो शरीर लटकने की स्थिति में होता।
3-फर्श से साढ़े तीन फीट की ऊंचाई पर दीवार पर छह सेमी. और 12 सेंटीमीटर के खून के धब्बों के दो निशान थे। कमोड पर बैठे-बैठे अगर सचान की जान निकल गई तो इतनी ऊंचाई तक खून के धब्बे कैसे लगे?
4-टॉयलेट का बेसिन निकालकर बाहर रखा गया था। उसमें खून के छह-सात धब्बे थे। अगर सचान ने कमोड पर बैठ कर गले में फंदा लगाकर नस काटा तो बेसिन में खून के धब्बे कैसे पहुंचे?
5-सचान एक डॉक्टर थे। आत्महत्या करनी होती तो वह दो तरीके नहीं अपनाते। टॉयलेट में ऐसा कोई प्वाइंट नहीं हैं जहां से फांसी लगाई जा सके।
6-यह संभव नहीं है कि कोई व्यक्ति कमोड पर बैठकर अपने हाथों, जांघों व गर्दन की नसों को काट दे ओर कमोड पर बैठे-बैठे उसकी जान निकल जाए।
7-पंचनामा में मौके से किसी धारदार हथियार के न मिलने का जिक्र है। स्वीपर को ड्रेनेज के भीतर से दाढ़ी बनाने वाला आधा ब्लेड मिला था। उस पर एक तरफ खून का निशान था। उस ब्लेड से गहरे घाव नहीं किए जा सकते। अगर उस ब्लेड का इस्तेमाल किया गया होता तो खून के धब्बे ब्लेड पर दोनों तरफ होते।
8-सचान के शरीर पर चोट नंबर 1, 3 व छह की चौड़ाई एक सेमी. से अधिक थी। चोट नंबर आठ में इकोमासिस मौजूद था। पोस्टमार्टम करने वाली डॉ. मौसमी के मुताबिक चोट नंबर आठ धारदार भारी हथियार से आया था।
9-निर्माणाधीन भवन के सभी दरवाजे बंद थे। उनमें ताले लगे थे। जेल प्रशासन ने टॉयलेट का ही दरवाजा क्यों खुला रखा था।
10-सचान के शरीर पर चोट के आठ निशान थे। एक या दो चोट ही जान लेने के लिए पर्याप्त हैं। संभव है कि एक या दो चोट लगाकर अन्यत्र हत्या की गई और लाकर कमोड पर बैठा दिया गया।
11-सचान का शरीर कमोड पर विपरीत दिशा में था। टॉयलेट का दरवाजा सामने है। कमोड पर विपरीत दिशा में बैठकर नस काट जाती तो सारा खून कमोड के भीतर जाता। संभव है कि किसी ने उनकी हत्या की और खून फैलने से पहले ही निकल गया। इसीलिए उसके पैरों के निशान खून पर नहीं मिले।
12-डॉ. सचान डिप्रेशन के मरीज नहीं थे। इसलिए वह आत्महत्या नहीं कर सकते।
13-डॉ. सचान के शरीर पर चोट के कुल नौ निशान पाए गए थे। आठ चोटें मृत्यु से पहले की हैं जबकि चोट नंबर-9 गर्दन पर मिला लिगेचर मार्क है। अर्थात नवीं चोट मृत्यु होने के बाद की गई थी।
14-डॉ. सचान दाहिने हाथ का प्रयोग करते थे। उनके बाएं हाथ पर मिले घाव के अलावा दाहिने हाथ की कोहनी के सामने धारदार हथियार से की गई दो गहरी चोटें हैं। बाएं हाथ में गहरे घाव होने के बाद वह दाहिने हाथ पर गहरे घाव नहीं कर सकते।
15-यदि कोई व्यक्ति गले में फंदा लगाने के बाद हाथ की नसें काटता है तो फंदे से एंटीमार्टम साइन मिलता, जो डॉ. सचान के गले पर नहीं था। उनके गले पर मिला निशान मृत्यु के बाद का है।
16घटना वाले दिन सुबह छह बजे शाम चार बजे के बीच हुई गिनती में डॉ. सचान को क्यों नहीं तलाशा गया।

जौनपुर जेल में अनाज घोटाले का भी है दामन पर दाग
जौनपुर जिला कारागार में 2010 में बीएस मुकुंद जेलर थे। जेल के अंदर खाली जमीन पर खेती होती है। सूत्रों के मुताबिक अपनी तैनाती के दौरान जेलर ने बाहर बाजार में फसल बेचकर पैसे को सरकारी मद में जमा करने के बजाए निजी इस्तेमाल किया। उस दौरान यह भी मामला सुर्खियों में रहा। सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि हर बार जेलर बीएस मुकुंद की कार्यप्रणाली पर ही सवालिया निशान लगते हैं।
