1.आशा की किरण( बचपन)= मनुष्य का प्रथम पड़ाव या प्रथम पाठशाला बचपन है। अपने मात-पिता की आशा की किरण कहां जाता है। जिससे भविष्य काल की बहुत आशा रहती है। क्योंकि लास्ट पड़ाव में या बुढ़ापे में जो व्यक्ति या मनुष्य नही कर सकता है। वह केवल अपनी संतान या बच्चे के अलावा किसी से नहीं रहती। क्योंकि जीवन में सर्वश्रेष्ठ पढ़ाब बचपन के अलावा और दूसरे पड़ाव का नहीं रहता है। क्योंकि बचपन में काम, क्रोध ,मद लोभ, सांसारिक जीवन में पूरी जीवन व्यतीत दुर होता है। जिसमें भूत, भविष्य, नहीं वर्तमान में जीवन जीने की आशा रहती है। केवल वर्तमान का ही लोभ प्यार करने वाले की तरफ खींचने को चाहता है।