डॉ. शुभ्रता मिश्रा
7वें वेतन आयोग के आने के बाद से आम गैर सरकारी लोगों को सरकारी कर्मचारियों के बढ़े हुए वेतनों से ईर्ष्या होना कितना लाज़मी है इसके मानदण्ड निर्धारित करना थोड़ा मुश्किल है। प्रायः हमारे देश में सरकारी कर्मचारियों की छवि सुस्त और कामचोर लोग होने की बन गई है। लेकिन इसे पूरी तरह से सच नहीं माना जा सकता क्योंकि यही वह सरकारी तंत्र है, जो लोकतंत्र की रीढ़ के बल पर पर खड़ा होकर अब तक देश को चलाता आया है और चला रहा है। भ्रष्टाचार और घोटालों के मामले आते हैं, पर सरकारी तंत्र चलता रहता है। हमारी आदत हो गई है, तंत्र को कोसने की, पर कहीं न कहीं यह सोच अब बहुत जरुरी है कि प्रशासनिक तंत्र के बिना तो और भी गर्त में जाने की आशंका बढ़ जाएगी। अतः प्रशासनिक तंत्र को अधिक सशक्त करने की आवश्यकता है। देश में इस महीने सीधे केंद्र सरकार के अन्तर्गत आने वाले संस्थानों के करीब 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और करीब 53 लाख पेंशनधारियों को बढ़ा हुआ वेतन मिल गया है। हाँलाकि अभी भी देश के अनेक केंद्रीय स्वायत्त संस्थानों के सभी कर्मचारी स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उनको उनका बहुप्रतीक्षित बढ़ा वेतन नहीं मिला है। खैर ! वेतन तो वेतन है बढ़ा है तो आज नहीं कल मिलेगा। लेकिन 7 वें वेतन आयोग का जो दूसरा मुद्दा कर्मचारियों की पदोन्नति को लेकर विवाद का विषय बना हुआ है, वह निःसंदेह प्रशासनिक तंत्र की गुणवत्ता के लिए एक अतिगम्भीर शोचनीय विषय है।
हमारे देश में मुठ्ठी भर कुछ धोखेबाज सरकारी लोगों के चलते आम भारतीय के दिमाग में यह बात कहीं गहरे बुरी तरह बैठ गई है कि सरकारी कर्मचारी काम नहीं करते हैं और सरकारी दफ्तर मौजमस्ती व मनोरंजन के केंद्र हैं। परन्तु यदि देखा जाए तो प्रशासनिक स्तर पर सरकारी नौकरी पाने वालों में से अधिकतर वे प्रतिभाशाली लोग होते हैं, जो कड़े संघर्षों और अध्ययन के बाद चयन परीक्षाएं उत्तीर्ण करके सरकारी नौकरी पाते हैं। पूरा सरकारी तंत्र ऊपर से लेकर नीचे तक इन्हीं चयनित योग्य प्रतिभा सम्पन्न कर्मचारियों से चल रहा है। यदि आम लोगों की बात मान भी लें कि सरकारी लोग ठीक नहीं हैं, तो भी हम यह नहीं कह सकते कि सरकारी लोग काम नहीं करते, क्योंकि ऐसा होता तो देश कैसे चल रहा होता, कैसे आगे बढ़ रहा होता। सोचिए, आज यदि सरकारी तंत्र हटा दिया जाए तब तो देश को लूटने वालों में होड़ सी मच जाएगी। अपवाद कहाँ नहीं होते, अतः सरकारी तंत्र के तथाकथित अपवादों को छोड़ दिया जाए, तो उन सबको दोषी नहीं कहा जा सकता जो सरकारी तंत्र में निःसंदेह दिनरात निष्ठा से काम कर रहे हैं। दोष लोगों का नहीं वरन् तंत्र व्यवस्था का है।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद प्रमोशन के नए मापदंडों ने तंत्र व्यवस्था में कहीं न कहीं और दोष उत्पन्न हो जाने की गुंजाइश पैदा कर दी है। सामान्य भाषा में कहें तो अब पदोन्नति गुड से वेरी गुड के मापदण्ड पर पहुँचा दी गई है। और ये वेरी गुड देने वाला यदि अपनी किसी निजी शत्रुता के वशीभूत होकर वेरी गुड नहीं देता है, तो उस कर्मचारी के लिए 7वें वेतन आयोग की वेतन वृद्धि कोई मायने नहीं रखेगी। सीधे सीधे कहा जाए तो सरकारी तंत्र में बॉसिज़्म की प्रवृत्ति बढ़ेगी और जिसका खामियाजा स्वाभिमानी प्रवृत्ति वाले उन सरकारी कर्मचारियों को भरना पड़ेगा जो गलत फैसलों के विरुद्ध खड़े होने के लिए स्वयं को रोक नहीं पाते। यूँ भी ये बात सभी समझते हैं कि सरकारी तंत्र में पहले से भी कर्मचारियों की पद्दोन्नति के नियम पेशेवर नहीं कहे जा सकते थे और बहुत कुछ बड़े अधिकारियों की मनमर्जी से होता आया था।
उस पर सातवें वेतन आयोग के इन नए प्रावधानों ने उचित प्रमोशन मिलने वाली प्रक्रिया को और अधिक मुश्किल बना दिया है। इसके बाद से अब सरकारी तंत्र में चापलूसों और बॉस की खुशामद करने वाले प्रमोशन की दौड़ में सबसे आगे रहेंगे, और इस कारण सरकारी तंत्र के और अधिक बिगड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। भविष्य में सरकारी तंत्र के खराब होने और दुरुपयोग होने की सम्भावना अधिक दृष्टिगोचर हो रही है। समय रहते इसे सुधारने की महती आवश्यकता है, क्योंकि देश की प्रगति के लिए बढ़े हुए वेतन और बढ़े हुए पदों से कहीं अधिक जरुरी बढ़े हुए नैतिक मानदण्ड हैं, जो प्रशासनिक तंत्र को शुद्धरुप में बनाए रखेंगे। प्रशासनिक तंत्र की नैतिक शुद्धता में देश की तरक्की निहित है और देश है तो हम हैं, वरना पड़ोस के हाल से सभी वाकिफ हैं।