नई दिल्ली : अपने सांसद योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से गोरखपुर के निवासी बेहद उत्साहित हैं लेकिन सबसे ज्यादा उत्साहित गोरखपुर की गीताप्रेस है। पिछले कई समय से घाटे चल रही गीता प्रेस बंद होने की कगार पर है लेकिन अब उसे उम्मीद है कि पहली बार कोई सीएम गोरखपुर से बना है और वह भी कट्टर हिंदूवादी तो उनकी स्थित सुधरेगी।
गोरखपुर की गीता प्रेस 95 साल से हिन्दू धर्म की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक किताबों को छापता रहा है। गीता प्रेस अब तक 580 मिलियन श्रीमद भगवत गीता और रामचरित मानस बेच चुका है। गीता प्रेस ट्रस्ट बोर्ड के चीफ राधेश्याम खेमका का कहना है कि यूपी के नए सीमा आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से है इसलिए अब उनका आत्मविश्वास बढ़ा है।
खेमका का कहना है कि ''योगी आदित्य नाथ अपनी धार्मिक संस्कृति से जुड़े हुए हैं, पारम्परिक जीनवशैली अपनाते हैं। उन्हें उम्मीद है कि ऐसे में हिंदू सांस्कृति की और लोगों का रुझान बढ़ेगा, जिससे उनके प्रकाशन के किताबों की सेल्स बढ़ने उम्मीद है। यह चिंता का विषय है कि वर्तमान पीढ़ी को हमारी प्राचीन संस्कृति और धर्म के बारे में जानकारी नहीं है, क्योंकि उन्हें इस तरह का वातावरण प्रदान ही नहीं किया गया।
एक वक़्त था जब गीता प्रेस में बड़ी संख्या में कर्मचारी थे लेकिन वर्तमान में इसमें लगभग 200 कर्मचारी काम करते हैं। यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। देश-दुनिया में हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री कर रही गीताप्रेस को भारत में घर-घर में रामचरितमानस और भगवद्गीता को पहुंचाने का श्रेय जाता है।
गीता प्रेस की पुस्तकों की बिक्री 18 निजी थोक दुकानों के अलावा हजारों पुस्तक विक्रेताओं और 42 प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर बने गीता प्रेस के बुक स्टॉलों के जरिए की जाती है। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा कल्याण (हिन्दी मासिक) और कल्याण-कल्पतरु (इंग्लिश मासिक) का प्रकाशन भी होता है।