लखनऊ ब्यूरो-: उत्तर प्रदेश सरकार में ‘पंचम तल‘ का अर्थ है मुख्य मंत्री कार्यालय। एनेक्सी यानी लाल बहादुर शास्त्री भवन के पंचम तल में मुख्य मंत्री कार्यालय है। प्रदेश की सरकार चलाने वाले हुक्मरान यहीं बैठते हैं। इन्हें मुख्य मंत्री के हुक्म का इंतजार रहता है। मुख्य मंत्री कोई भी हो। नये मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने अभी तो सिर्फ नमूने के तौर पर राजधानी लखनऊ में एक-दो ही औचक निरीक्षण किया है। अब वह पूरे प्रदेश में औचक निरीक्षण की बात करने लगे हैं। कब से करेंगे? यह अभी ठीक नहीं है। लेकिन, उनकी हनक ऐसी बन गयी है कि भ्रष्ट नौकरशाह पसीना पसीना हो रहे हैं। उनके चेहरे की रंगत देखिये, तो लगता है कि जैसे उनकी सांस जैसे थमने को ही है।
एक भी मंत्री या विधायक योगी जैसा नहीं
कल ही योगी ने भाजपा विधायकों की अपनी बैठक में ‘यह करिये और यह नहीं‘ विषयक अच्छा खासा प्रवचन दिया था। लेकिन, वहां मौजूद एक भी विधायक के मुंह से यह नहीं फूट सका कि ‘माननीय मुख्य मंत्री जी अपने सरकारी आवास में आम तख़्त पर सोयेंगे। वह भी उस पर सिर्फ एक चादर डालकर। आप सच्चे योगी हैं। महान हैं।‘ इस तरह का कसीदा नहीं पढ सके। अच्छा ही हुआ। लेकिन, इन विधायकों में से कम से कम किसी को तो यह कहना चाहिये था कि वे भी अब न वातानुकूलित कमरे में सोयेंगे और न ए.सी. कार में ही चलेंगे। इस तरह योगी सरकार और पहले की सरकारों के मंत्रियों में फर्क ही क्या रह गया? इस पर भी मुसीबत यह कि उनके एक एक काम पर योगी की चैाकस नजर रहेगी, जैसे दिल्ली में प्रधान मंत्री मोदी की रहती है।
इस तरह योगी क्या हुए विलासी सोच वालों के लिये आफत हो गये।
बहरहाल, इस बैठक में मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने भ्रष्ट अधिकारियों को किनारे लगाने के संकेत भी दे दिये हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिये वह जल्दी ही जिले जिले का औचक निरीक्षण शुरू करने जा रहे हैं। अभी अधिकारियों को इसलिये नहीं हटाया गया है कि उनसे विभागीय कार्यों की जानकारी ली जा रही हैं। बजट प्रक्रिया भी चल रही है। वक्त भले ही लग रहा हो, लेकिन योग्य और सख्त अधिकारियों को ही अहं पद दिये जायेंगे। मजे की बात तो यह कि उनकी बात जैसे ही सूचना विभाग के एक बडे अधिकारी के कान तक पहुंची, उसके चेहरे की रंगत ही उड गयी। उसे देखकर लगा कि जैसे उसके प्राण गले में आकर अटक गये हों। एक झटका लगने की देर है। वह लगा तो.............।
बुआ जी और भतीजे की भी सरकार के चहेते इस नौकरशाह की भी सांस अटकी
यह नौकरशाह कभी ‘बुआजी‘ की आंखों की पुतली रहा है। अरबों की कमाई की। उनकी सरकार गयी, तो भतीजे जी के इर्दगिर्द मंडराने लगा। शुरू में तो भतीजे ने इसे बुआजी का खासमखास समझ कर अपने पास फटकने तक नहीं दिया। लेकिन, अपने करिश्माई हथकंडों से बहुत जल्दी यह नौकरशाह भतीजे का भी कंठहार बन गया। इसके बाद तरह तरह के गुल खिलाये जाने लगे। योगी की सरकार बनी, तो यह उनके पीछे भी पीछे छाया की तरह चलने लगा। एक दिन योगी ने घूमकर इसकी ओर देखा और बडी बेरुखी से कहा कि देख रहा हॅू कि आप तीन दिनों से मेरे पीछे पडे हैं। मैं आपकी एक एक नस जानता हूँ। आपके बारे में बहुत कुछ जान चुका हॅू। छोडूगा नहीं। चले जाइये यहां से। इस तरह झिडके जाने के बाद ही इस नौकरशाह को योगी के पीछे मंडराते हुए नहीं देखा गया। अब वह अपना सिर पकड कर बैठा है।
सरकार का वरदहस्त रहा है नकल माफियाओं पर
बहरहाल, इन दिनों चल रही बोर्ड की परीक्षाओं में हो रही अंधाधुंध नकल को रोकने के लिये इस सरकार ने बहुत ही कडा रवैया अपनाया है। योगी मुख्य मंत्री इस बात को बहुत अच्छी तरह से समझ गये हैं कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना हर साल अरबों रु की काली कमाई वाला यह धंधा चल ही नहीं सकता है। इसकी भनक पाते ही अखिलेश सरकार में भी माध्यमिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव जितेंद्र कुमार अकुलाय उठे। आरोप है कि इस काले धंधे में इन्होंने भी बहुत बढचढ कर भूमिका निभायी थी। इस सरकार में भी यह अभी इसी पद पर विराजमान हैं। अब इन जैसे दूसरे भी अधिकारियों ने अपनी सफाई में यह कहना शुरू कर दिया है कि पिछली सरकार में पंचम तल (यानी मुख्य मंत्री कार्यालय) से मिले आदेशों का पालन करना उनकी विवशता रही है।
इस संबंध में स्वयं जितेंद्र कुमार की मानें, तो उनके ही निर्देश पर पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के आनलाइन परीक्षा केद्रों के निर्धारण का प्रस्ताव तैयार किया गया था। लेकिन, पंचम तल के आदेश पर ही इसे रोकने के लिये दबाव डाला गया था। इसके लिये पिछली सरकार में कहा गया था कि इतनी सख्ती करेंगे, तो हमारे नेताओं के सेंटर्स का क्या होगा? इस तरह हर स्तर नकल माफियाओं के लिये रास्ता आसान बनाया गया।
सिर्फ दहाडने से काम नहीं चलेगा
योगी सरकार में भी अब भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने का सिलसिला शुरू हो रहा है। इसे लेकर चर्चित उपमुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य आये दिन दहाडते रहते हैं। बाल विकास एवं पुष्टाहार योजना की मंत्री अनुपमा जायसवाल ने विभागीय निदेशक से पूछा है कि शासन की स्वीकृति के बिना ही पंजीरी आपूर्ति करने वाली फर्मों को 312 करोड रु का भुगतान कैसे कर दिया गया? पंजीरी के नमूने फेल होने के बाद भी कार्रवाई क्यों नही की गयी? आचार संहिता के दौरान पंजीरी वितरण करने के टेंडर करने के मामले में इतनी हडबडी क्यों की गयी? इसके अलावा, इस प्रकरण में न्याय विभाग ने भी अपनी तरफ से कई आपत्तियां लगातें हुए कई महत्वपूर्ण सवाल उठाये थे। लेकिन, वाह रे अखिलेश सरकार! उसने इसे भी नजरंदाज करते हुए टेंडर प्रक्रिया को आगे बढा दिया।
दांतों तले अंगुली दबाने वाली दास्तान
इस सिलसिले में सबसे ज्यादा हैरतअंगेज और सनसनीखेज दास्तान सपा नेता बुक्कल नवाब उर्फ एम.ए.खान को सरकारी जमीन पर बिना स्वामित्व जांचे ही आठ करोड रु के मुआवजे का दिया जाना है। कल ही हाइकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राकेश श्रीवास्तव की पीठ ने प्रमुख सचिव राजस्व को इसलिये जमकर लताड लगायी थी कि सात मार्च को दिये गये पीठ के निर्देश के बावजूद, उन्होंने न तो जिम्मेदार अधिकारियों के नाम सामने रखे और न ही किसी के खिलाफ कार्यवाही ही की है।
आरोप है कि बुक्कल नवाब ने हजरतगंज से कुछ ही फासले पर स्थित जियामऊ और आसपास के इलाके में अपना मालिकाना हक जताया था। गोमती नदी के किनारे विकास कार्य शुरू होने पर सरकार ने जब भूमि अधिग्रहण किया, तो बुक्कल नवाब ने गोमती के डूब क्षेत्र को भी अपना बताते हुए मुआवजे का दावा किया था। इस पर शासन ने इस जमीन की जांच कराये बिना ही उन्हें उस पर आठ करोड रु. से भी अधिक का मुआवजा दे दिया। 2015 में गोमती के पानी में डूबी हुई जमीन पर दुबारा काम शुरू हुआ। इस पर बुक्कल नवाब ने फिर दावा किया, तो उन्हें पुनः मुआवजा देने की तैयारी शुरू कर दी गयी। इसके विरुद्ध हाइकोर्ट में दायर याचिका के बाद कोर्ट ने अखिलेश सरकार को आदेश दिया कि वह अक्टूबर, 2016 में उच्चस्तरीय समिति बनाकर तीन महीने के अंदर ही अपनी रिपोर्ट दे। लेकिन, सरकार ने कोर्ट के इस आदेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इसके बाद कोर्ट ने कडे आदेश देकर उक्त कमेटी बनवाकर जांच शुरू कराई। इस पर राजस्व विभाग की ओर से कोर्ट को बताया गया कि जिन दस्तावेजों के आधार पर बुक्कल नवाब ने मुआवजे के लिये अपना दावा जताया था, उसके दस्तावेज फर्जी निकले हैं। कई जगह राजस्व विभाग के रिकार्डं में भी बदलाव किये गये हैं। जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 1920 में ही जिस भूमि को लखनऊ नगर निगम ने अपने अधिग्रहण में ले लिया था, उसे निजी भूमि बताते हुए फिर से अधिगृहीत करवा लिया गया और करोडों रु उसका मुआवजा भी दिलवाया गया।
एक-दो मिसालें और। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने कल ही सुलतानपुर रोड पर पूर्व राज्य मंत्री एवं बिल्डर नटवर गोयल की पत्नी के अवैध निर्माण को सील कर दिया है। इस दस मंजिली इमारत को बिना मानचित्र स्वीकृत कराये ही बनाया गया था। इसी तरह अहमामऊ में लगभग 20 हजार वर्गमीटर के क्षेत्रफल में बनायी जा रही शिमला काटेज रिसार्ट पर भी सील लगा दी गयी है।
लगता है कि यही सब देखते हुए योगी सरकार ने लखनऊ विकास प्राधिकरण के इंजीनियरों की कमाई की जांच करने का आदेश दे दिया है। यह जांच जूनियर इंजीनियर से लेकर चीफ इंजीनियर तक के विरुद्ध की जायेगी। इसमें उन्हें बताना होगा कि नियुक्ति के बाद से हर पांच साल पर उनकी चल-अचल संपत्ति में कितना इजाफा हुआ है? प्रदेश के अन्य जिलों के भी विकास प्राधिकरणों में ऐसी ही जांच होने जा रही है।