सुप्रभातम्
जब भी कुछ लिखते लिखते आत्मानुभूति प्रसन्नता की ओर अग्रेसर ले चलें तब वो अभिव्यक्ति सर्वकालीन-सर्वानुभूति में बदलते देर नहीं लगती. मन की ऐसी स्थिति में ऐश्वर्य की चमत्कृति होती है जो हमें दूसरों से अलग पहचान देती हैं.
आयासपूर्ण लेख न से बेहतर होगा हम चुपचाप कुछ नया पढ़ते रहें और अपने विचारों को संजोकर उस पर चिंतन करते रहें. विचारों की समृद्धि जैसे जैसे बढ़ती जाएंगी, कलम अपनेआप दौड़ती हुई हमें कहाँ से कहाँ ले जाएगी वो हमारी कल्पना भी हम नहीं कर सकते. साहित्य आयास का रूप नहीं, अनायास का मूर्त रूप है.
शर्त यही कि वो मूर्त से अमूर्त तक इतनी सहजता से पाठकों को ले जाएं कि पाठकों के चित्त में प्रसन्नता ही व्याप्त हो जाएं.
अभिव्यक्ति अधिकार से नहीं, भक्ति और समर्पण की ज़मीं पर फूलती-फलती हैं.
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पंकज त्रिवेदी
(बस यूँही मन से जो आया)